Tuesday 26 February 2019

कश्मीर को मुख्यधारा में लाने का स्वर्णिम अवसर

कश्मीर को अपनी पुश्तैनी जायजाद समझ्ने वाली पार्टियां नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी समय के अनुसार रंग बदलने में माहिर हैं जब-जब ये किसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन में होती हैं तब  उनका रवैया पूरी तरह से अलहदा रहता है। फारुख अब्दुल्ला दिल्ली में आकर भारत माता की जय के नारे लगाते हैं तो महबूबा मुफ्ती पत्थरबाजी करने वालों को सुधरने की नसीहत देने में नहीं हिचकतीं। लेकिन ज्योंहीं ये अपनी दम पर सत्ता हासिल करतीं या विपक्ष में आती हैं तब इनके सुर बदल जाते हैं। ये खेल आज़ादी के बाद से अनवरत जारी है। पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा बरती गई सख्ती से अब्दुल्ला और महबूबा दोनों भनभनाए हुए हैं। हालांकि सेना ने उनकी पार्टी के किसी नेता या कार्यकर्ता की गिरेबाँ पर हाथ नहीं डाला लेकिन अलगाववादियों पर कसी नकेल के कारण दोनों की नींद हराम है। यासीन मलिक की गिरफ्तारी पर जिस तरह से महबूबा ने सवाल उठाए उससे ये बात साबित हो गई कि देश विरोधी तत्वों के प्रति उनके मन में कितनी हमदर्दी है। सर्वोच्च न्यायालय में धारा 35 ए की सुनावाई होने के पहले केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में एहतियातन सुरक्षा बलों की अतिरिक्त टुकडिय़ां तैनात करने के साथ ही अलगाववादी नेताओं की धरपकड़ की। इस पर उमर अब्दुल्ला ने नसीहत दी कि राज्यपाल को चुनाव कराने के जिस काम के लिए भेजा गया है वे उसे करें। लेकिन महबूबा मुफ्ती ने एक कदम आगे बढ़कर तो भारत सरकार को धमकी दे डाली। गत दिवस एक बयान में उन्होंने 35 ए को छेडऩे के विरुद्ध चेतावनी देते हुए कह दिया कि ऐसा होने पर वह सब देखना पड़ेगा जो 1947 से आज तक नहीं देखा गया और फिर कश्मीर के लोग कौन सा झंडा उठाने के लिये मजबूर होंगे कहा नहीं जा सकता। महबूबा के इस बयान से उनका गुस्सा कम हताशा ज्यादा झलकती है। इसी तरह उमर अब्दुल्ला इस तरह बात कर रहे हैं जैसे राज्यपाल किसी अन्य देश से आए हों। उमर और महबूबा के बाप - दादा भी ऐसे ही जहर बुझे बयान देकर कश्मीरी जनता के रहनुमा बने रहने का स्वांग रचते रहे हैं। असलियत ये है कि उनके सामने गिरगिट भी पानी भरने लगती है। उमर के दादा शेख अब्ददुल्ला शुरू में प्रखर राष्ट्रवादी बने रहे लेकिन बाद में वे कश्मीर को स्वतंत्र देश बनाकर उसके शासक बनने के ख्वाब देखने लगे। जब पण्डित नेहरू को अपने इस भरोसेमंद दोस्त की वास्तविकता पता चली तब उन्होंने शेख को सत्ता से हटा दिया और उसके बाद अब्दुल्ला परिवार कश्मीर में जनमत संग्रह की रट लगाने लगा। कम लोगों को याद होगा कि इंग्लैंड में डॉक्टरी की शिक्षा लेते समय फारुख जनमत संग्रह मोर्चा चलाते हुए विदेशों में भारत विरोधी दुष्प्रचार करते थे। मरहूम मुफ्ती मो. सईद भी लंबे समय तक अब्दुल्ला परिवार के साथ चिपके रहे लेकिन जब उन्हें लगा कि शेख पूरी तरह से अपने परिवार तक ही सीमित हैं तब उन्होंने पीडीपी बनाकर अपना अलग अस्तित्व बनाया लेकिन उनकी पार्टी भी नेशनल कान्फ्रेंस की तरह ही कुनबे में सिमटकर रह गई। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि कश्मीर घाटी में अलगाववाद को पनपाने में अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार का बड़ा योगदान है क्योंकि इनकी वजह से बाकी नेता सत्ता से वंचित होकर दूसरे रास्ते पर चले गये। ये दुर्भाग्य ही है कि पहले कांग्रेस और फिर भाजपा दोनों कश्मीर घाटी को समस्याग्रस्त बनाये रखने के लिये जिम्मेदार इन पार्टियों के मायाजाल में फंसती रहीं। 2014 के विधानसभा चुनाव में जब किसी को बहुमत नहीं मिला तब भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन कर सरकार बनाने का दांव चला। वह कितना कामयाब रहा ये बताने की जरूरत नहीं है। सरकार गिराने के बाद जब भाजपा ने सख्ती दिखाई तब महबूबा पाकिस्तान की जुबान बोलने लगीं। ये अच्छा ही है कि केंद्र सरकार घाटी में अलग़ाववाद के विरुद्ध कड़े कदम उठाते हुए आगे बढ़ रही  है। पुलवामा की घटना के बाद तो सेना को खुली छूट दे दी गई। भारत सरकार के कड़क रवैये से पाकिस्तान भी घबराहट में है। लेकिन अब्दुल्ला और मुफ्ती की चिंता का कारण धारा 35 ए की समाप्ति की अटकलें हैं। सर्वोच्च न्यायालय में आज से शुरू हो रही सुनवाई को लेकर भी ये चर्चा है कि अगर प्रकरण ज्यादा खिंचने के आसार हुए तो मोदी सरकार अध्यादेश के जरिये जम्मू - कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को  बदलने का दुस्साहस करेगी । लोकसभा चुनाव करीब होने से भाजपा पर भी ऐसा कुछ करने का दबाव है जो प्रधानमंत्री के 56 इंची सीने के दावे को सही साबित कर सके । ताजा खबरों के मुताबिक आज तड़के भारतीय वायुसेना के विमानों ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर में बमबारी करते हुए आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के कई अड्डे नष्ट कर दिए । इस हमले में 200 से 300 आतंकवादियों के मरने की खबर है । उच्चस्तरीय राजनीतिक क्षेत्रों में चल रही चर्चाओं के अनुसार पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान पर जिस तरह से अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ा उसने भारत का उत्साह बढ़ाया है और उसी के बल पर मोदी सरकार कश्मीर समस्या के ठोस हल की तरफ कदम बढ़ाने जा रही है । धारा 35 ए और 370 में किसी भी तरह का बदलाव कश्मीर घाटी में अलगवावाद की जड़ें खोदने में कारगर तो होगा ही इसके बाद वह मुख्यधारा से भी जुड़ सकेगी । महबूबा का कल का बयान उसी के डर का नतीजा है । उसके पहले उमर अब्दुल्ला का बयान भी उसी दबाव के कारण दिया गया। पुलवामा घटना के बाद प्रधानमंत्री ने बेहद गुस्से में पाकिस्तान को चेताया था कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी जिसकी भारी कीमत उसे चुकानी पड़ेगी । कश्मीर घाटी में अलगाववादी ताकतों की कमर तोडऩे के बाद आज किया गया हवाई हमला इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार आर पार के मूड में आ गई है । देश इस समूची कार्रवाई में सरकार के साथ है। विपक्ष भी पुलवामा कांड के बाद से ही साथ देने का आश्वासन दे रहा है । आज सुबह की कार्रवाई के बाद पूरी दुनिया को ये सन्देश चला गया कि भारत पलटवार करने में सक्षम है । ऐसी स्थिति में अगर कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने वाले संवैधानिक प्रावधान खत्म किये जाते हैं तो देश और विदेश में ज्यादा चूं - चपाट नहीं होगी । देशहित का  तकाजा है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ तात्कालिक स्वार्थों को परे रखकर एकजुट हों । आपस में लडऩे के लिए बहुत मौके आएंगे लेकिन मौजूदा समय एकजुटता के प्रदर्शन का है । भारतीय वायुसेना को उसके साहसिक और सफल अभियान हेतु पूरे राष्ट्र की बधाई और केंद्र सरकार को भी जिसने सेना को अपने साथियों के बलिदान का बदला लेने के लिए खुला हाथ दिया ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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