Friday 1 February 2019

बेरोजगारी : तमाम उपलब्धियों पर भारी

आज दोपहर तक ये स्पष्ट हो जाएगा कि अच्छे दिन आने वाले हैं का वायदा बांटकर सत्ता में आई मोदी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद आगामी लोकसभा चुनाव के पहले देश की जनता को क्या सौगात देती है? किसानों और मध्यमवर्गीय नौकरी पेशा लोगों के साथ नोटबन्दी और जीएसटी से हलाकान हुए व्यापार-उद्योग जगत की मिजाजपुर्सी करने का मानसिक दबाव प्रभारी वित्तमंत्री पीयूष गोयल से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है जो अभी भी लोकप्रियता की दौड़ में अव्वल बने रहने के बावजूद 2014 वाले स्तर से नीचे आए हैं। दिसम्बर 2018 में तीन राज्य जिस तरह से भाजपा के हाथ से खिसके उससे फिर एक बार मोदी सरकार का शोर थोड़ा मद्धम पड़ा है। हालाँकि बतौर प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अनेक ऐसे कार्य किये जो उनकी योग्यता और क्षमता को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा और शासन व्यवस्था में सुधार की दिशा में उनकी कोशिशें दुस्साहसिक कही जाएंगी क्योंकि हमारा देश परिवर्तन को आसानी से स्वीकार नहीं करता। श्री मोदी की इस बात के लिए भी प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने विश्व मंच पर भारत की छवि को काफी उज्ज्वल बनाया और उसे एक संभावना भरे सक्षम और शक्तिसम्पन्न राष्ट्र के तौर पर मान्यता दिलवाई। उन पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि वे विदेश यात्राओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर अपने को वैश्विक व्यक्तित्व के तौर पर स्थापित करने में लगे रहे किन्तु ये कहना गलत नहीं होगा कि कूटनीतिक क्षेत्र का अनुभव नहीं होने पर भी उन्होंने विदेशी मोर्चे पर शानदार काम किया। उनके विदेशी दौरों पर उंगली उठाने वाले ये भूल जाते हैं कि उसका अकल्पनीय लाभ अप्रत्यक्ष तौर पर देश को मिला है। लेकिन ये बात भी सही है कि मोदी सरकार ने लीक से हटकर जो दीर्घकालीन नीतियां बनाईं उनकी वजह से आम जनमानस को लगा कि उसने 2014 के वायदे पूरे नहीं किये। वैश्विक मंदी के दौर में भी आर्थिक विकास की दर को 7 फीसदी से ऊपर रखना निश्चित रूप से एक बड़ी उपलब्धि है जिसका लोहा पूरी दुनिया मान रही है। भारत ने विकासशील अर्थव्यव्यस्था में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का जो चमत्कार किया वह वाकई उल्लेखनीय है जो कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी नहीं कर सके थे। विदेशी निवेश भी बीते पांच वर्षों में छप्पर फाड़कर आया। कर्ज पर ब्याज दरें कम हुई जिससे घर बनाने या खरीदने वालों को फायदा हुआ। किसानों की आत्महत्या की श्रृंखला के बावजूद कृषि उत्पादन में वृद्धि विरोधाभासी होते हुए भी एक सच्चाई है। लेकिन ये बात भी पूरी तरह सही है कि आर्थिक क्षेत्र में सतही तौर पर दिखाई दे रही रंगीनियों के पीछे एक अंधेरा भी है और वह है बेरोजगारी का जो मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता मानी जा रही है। आज जो आंकड़े आये उनके अनुसार बेरोजगारी के आंकड़े बीते कई दशकों में सर्वोच्च स्तर पर जा पहुँचे हैं। नीति आयोग हालांकि इस बारे में गोलमोल जवाब दे रहा है लेकिन सच्चाई किन्हीं आंकड़ों की मोहताज नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस आंकड़े को लेकर मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। यूँ भी तमाम आर्थिक विशेषज्ञ रोजगार रहित विकास को लेकर प्रधानमंत्री और भाजपा को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। देश का जो युवा वर्ग श्री मोदी का प्रशंसक और समर्थक माना जाता है वह भी रोजगार के मुद्दे पर उनसे असंतुष्ट है। उसकी नाराजगी और विपक्ष की आलोचना गलत नहीं है क्योंकि देश आर्थिक विकास की राह पर बढ़ते हुए एक तरफ जहां चीन, फ्रांस और  ब्रिटेन जैसी आर्थिक महाशक्तियों को पीछे छोडऩे का दावा करने की स्थिति में आ गया है वहीं देश के करोड़ों युवा पढ़-लिख कर भी काम की तलाश में भटक रहे हैं। नोटबंदी के बाद कारोबार में आए ठहराव ने दूबरे में दो आसाढ़ की कहावत को चरितार्थ कर दिया। मोदी सरकार के लिए इस मुद्दे पर जवाब देना कठिन हो रहा है क्योंकि वह 2 करोड़ रोजगार प्रति वर्ष देने के नाम पर सत्ता में आई थी। यद्यपि केंद्र सरकार के सबसे सफल माने जाने वाले मंत्री नितिन गडकरी तर्क देते हैं कि बीते पांच वर्ष में राजमार्ग, फ्लायओवर, बंदरगाह और हवाई अड्डे जैसे जो बड़े प्रकल्प निर्माणाधीन हैं उनकी वजह से बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन हुआ है जो शासकीय आंकड़ों में दर्ज नहीं होने से सार्वजनिक जानकारी में नहीं आ सका। श्री गडकरी की छवि और रिकार्ड लफ्फाजेबाज का न होकर तथ्य आधारित वायदे करने वाले राजनेता की रही है इसलिए उनके दावे को भले ही नकारा न जा सके लेकिन ये कहना भी गलत नहीं है कि सरकारी क्षेत्र में नौकरियां घटते जाने से स्थिति पूर्वापेक्षा खराब हुई है। निजी क्षेत्र में रोजगार की जो स्थिति है वह ऊपर से भले चमकदार दिखे लेकिन उसमें वेतन के साथ ही नौकरी की सुरक्षा भी नहीं रहती। शिक्षा के निजीकरण के बाद देश में निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ आ गई। जिसके कारण प्रतिवर्ष लाखों इंजीनियर तो तैयार हो रहे हैं लेकिन या तो उन्हें रोजगार नहीं मिलता या फिर उनकी शिक्षा और योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा। ये स्थिति केवल चुनाव के समय बहस और विवाद की न होकर देश के ठोस आर्थिक विकास के लिए अत्यावश्यक है। आज के अंतरिम बजट में इस दुरावस्था को दूर करने के लिए जो उपाय वित्तमंत्री करते हैं ये बहुत महत्वपूर्ण नहीं होंगे क्योंकि अव्वल तो उनका परिणाम आने में समय लगेगा वहीं दूसरी तरफ  उन पर चुनावी लाभ लेने का आरोप भी चस्पा हो जाएगा। मोदी सरकार 2019 में वापिस आएगी या देश किसी और को अवसर देगा ये तो मई के बीच में पता चलेगा किन्तु रोजगार विहीन विकास किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। कहना गलत नहीं होगा कि बीते पांच वर्ष देश का ध्यान किसानों की बदहाली पर केंद्रित रहा किन्तु आगामी समय बेरोजगारी पूरे देश को आंदोलित करती रहेगी। करोड़ों बेरोजगार युवा देश में उथल पुथल मचा सकते हैं। हालांकि बेरोजगारी भत्ता और न्यूनतम आय सुनिश्चित करने जैसी बातें सामने आ रही हैं लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देश में युवाओं को खैरात की बैसाखी देकर विकास की इमारतें खड़ी नहीं की जा सकतीं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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