Wednesday 27 February 2019

मोदी : इतिहास बनाने का ऐतिहासिक मौका

कल पूरे दिन देश हर्षोल्लास में डूबा रहा। भारतीय वायुसेना ने पराक्रम और पेशेवर दक्षता का जो प्रमाण पेश किया उसके समक्ष पूरा भारत नतमस्तक हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ये दिखा दिया कि संकट के समय परिपक्व नेतृत्व किस तरह का होना चाहिए। पुलवामा की घटना के बदले स्वरूप की गई सैनिक कार्रवाई  युद्ध अथवा हमला न होकर आत्मरक्षार्थ उठाया कदम था। इसका जो सीमित उद्देश्य था वह पूरा होने के बाद वायुसेना के विमान वापिस आ गए। विदेश विभाग सहित सेना की ओर से जारी किसी भी बयान में  न तो अतिरेक था और न ही युद्धोन्माद। एक जिम्मेदार और सभ्य देश के रूप में भारत ने विश्व के सभी प्रमुख देशों को इसकी जानकारी देकर राजनयिक औपचारिकताओं का भी विधिवत निर्वहन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी रात जागकर सेना का मनोबल बढ़ाया वहीं उसके बाद दिन भर विभिन्न आयोजनों में वे जिस सामान्य तरीके से शामिल हुए उसने पूरे देश को प्रभावित किया। कुल मिलाकर राजनीतिक नेतृत्व की दृढ़ता और सेना के साथ बेहतर समन्वय की वजह से भारत की शक्ति पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गई वहीं पाकिस्तान हंसी का पात्र बन गया। इस दौरान सबसे सकारात्मक बात ये रही कि लगभग पूरे विपक्ष ने सेना और सरकार का समर्थन किया। हालांकि चंद सिरफिरे पिछली सर्जिकल स्ट्राइक की तरह कल की कार्रवाई पर भी सन्देह करने से बाज नहीं आए किन्तु जनता ने पूरे देश में विजयोल्लास मनाकर उनको उपेक्षित कर दिया। दरअसल आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लड़ाई का ये एक छोटा सा कदम ही था। पाकिस्तान बौखलाहट में ऐसा कुछ किये बिना नहीं रहेगा जिससे इमरान सरकार और फौज अपना चेहरा छिपा सके। गौर करने वाली बात ये है कि कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कल की कार्रवाई को निर्दोष लोगों की जान जाने और हिंसा प्रेरित बताते हुए कश्मीर की जनता के लिए खतरा बताया। पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों के सरगना भी इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे। पुलवामा की घटना के उपरांत भारत की राजनयिक मोर्चेंबंदी की वजह से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में जिस तरह से अलग-थलग पड़ गया उसके बाद भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। सबसे ज्यादा देखने वाली बात ये होगी कि इमरान कितने दिन सत्ता में रह पाते हैं क्योंकि अतीत गवाह है जब-जब भी भारत ने पाकिस्तान को सैनिक दृष्टि से शिकस्त दी तब-तब वहां सेना ने तख्ता पलटकर सत्ता पर कब्जा किया।  इमरान यूँ भी राजनीतिक तौर पर नवाज शरीफ  की तुलना में बेहद कमजोर हैं और सेना प्रमुख जनरल वाजबा के रहमोकरम पर चल रहे हैं। पुलवामा हमले के बाद यदि वे थोड़ी सी भी समझदारी दिखाते तब भारत शायद कल की कार्रवाई नहीं करता। अब चूंकि मोदी सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी है और कश्मीर घाटी के भीतर सुरक्षा बलों ने जबरदस्त दबाव बना दिया है तब पाकिस्तान की सेना बदहवासी में जो कदम उठा सकती है उनके प्रति सतर्कता रखनी जरूरी है। वैसे इस पिटाई के बाद जब तक पाकिस्तान और उसके पालतू आतंकवादी सतर्क हों कश्मीर घाटी में अलग़ाववाद की जडें उखाड़कर फेंकने का काम पूरा कर लेना चाहिए। कल सुबह के बाद मोदी सरकार बहुत से दबावों से मुक्त हो गई है। जनमत साथ होने से विपक्ष भी ज्यादा बोलने से बचेगा। इस स्थिति का लाभ लेते हुए ऐसा कुछ करना चाहिए जो भले ही प्रधानमंत्री और भाजपा को तात्कालिक लाभ न दे सके किन्तु जिससे देश के दूरगामी हितों की पूर्ति होती हो। ये कहना गलत नहीं होगा कि श्री मोदी में कड़े निर्णय लेने और उन पर डटे रहने का माद्दा है। किसी भी संकट के समय न तो वे विचलित होते हैं और न ही सफलता पर इतराते हैं। जनता के बीच उनकी छवि भी अच्छी है और संवाद की कला में भी वे माहिर हैं। बिना किसी अनुभव और पृष्ठभूमि के उन्होंने विश्व मंच पर भारत को जिस प्रकार एक आर्थिक और सामरिक महाशक्ति के तौर पर प्रतिष्ठित किया वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। बीते एक पखवाड़े में पाकिस्तान की जैसी कूटनीतिक घेराबन्दी भारत ने की वह प्रधानमंत्री की कोशिशों का ही परिणाम है। उनकी विदेश यात्राओं पर हुए खर्च का मुद्दा उठाने वालों को भी ये समझ में आ गया होगा कि उनसे देश को कितना कुछ हासिल हुआ। ये सब देखते हुए यदि देश का जनमानस श्री मोदी से कश्मीर समस्या के स्थायी हल की अपेक्षा करने लगा  है तो वह स्वाभाविक ही है। किसी भी देश के इतिहास में ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब नेतृत्व के प्रति देशवासियों के मन में भरोसा हो वहीं नेतृत्व भी उस भरोसे को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध हो। प्रधानमंत्री को चाहिए वे अपनी चिरपरिचित कार्यशैली को बढ़ाते हुए कश्मीर में अलग़ाववाद को समाप्त करने के लिए हर जरूरी कदम उठाएं। जब देश का भविष्य दांव पर हो तब चुनाव की चिंता छोड़ देनी चाहिए। विपक्ष का भी फर्ज है वह सरकार के साथ बिना पूर्वाग्रह के खड़ा रहे। देश की आंतरिक सुरक्षा को जो खतरा है उसकी मुख्य वजह कश्मीर घाटी है। यदि ये अवसर गंवा दिया गया तो आने वाली पीढिय़ां भी इस दर्द को भोगने मजबूर होती रहेंगी। आस्तीन के सांपों को ज्यादा मोहलत देना आत्मघाती होता है। सत्तर साल के कटु अनुभवों के बाद भी यदि हमने उनसे सबक नहीं लिया तो फिर आर्थिक समृद्धि और सामरिक शक्ति का लाभ ही क्या?

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment