Thursday 21 February 2019

गरीबों के मसीहा की अय्याशी : लोकतंत्र बना लूटतंत्र

देश-विदेश की अनेक खबरें ऐसी हैं जिन पर लंबा चौड़ा सम्पादकीय लिखा जा सकता है लेकिन उन सबसे हटकर पटना के एक बंगले को आज के विषय के तौर पर चुना क्योंकि ऐसी बातों पर भी चर्चा होनी चाहिए जो हमारे लोकतंत्र के नव सामन्तों की सोच को अनावृत्त करती है। संदर्भ, बिहार की राजधानी पटना के उस बंगले का है जिसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को खाली करना पड़ा। न्यायालय ने उन पर 50 हजार का जुर्माना भी ठोंका है। सत्ता से हटने की बाद तेजस्वी से राज्य सरकार ने उक्त बंगला खाली करने को कहा लेकिन वे अड़ गए। बात देश की सबसे बड़ी अदालत तक जा पहुँची जिसने लालू प्रसाद यादव के इस साहेबजादे को उससे बेदखल कर दिया। उसके बाद वह बंगला वर्तमान उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को आवंटित कर दिया गया। गत दिवस जब वे उसका मुआयना करने पहुँचे तो उनकी आंखें फटी रह गईं। चौंकिये मत, तेजस्वी उस बंगले की एक कील भी अपने साथ नहीं ले गए। लेकिन श्री मोदी उस बंगले में सात सितारा होटल जैसी सुविधाएं और राजसी शैली के निर्माण को देखकर हतप्रभ रह गए। उन्होंने समाचार जगत के लोगों को गरीबों के मसीहा के लाड़ले बेटे के राजसी रहन-सहन का प्रत्यक्ष दर्शन करवाते हुए कह दिया कि वे इतने आलीशान बंगले में नहीं रह सकेंगे क्योंकि उनका ज्यादातर समय इसके शाही स्वरूप को बनाये रखने में ही चला जायेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से उस बंगले में आकर रहने का अनुरोध करने की बात भी कह डाली। समाचार माध्यमों के प्रतिनिधि जब बंगले के भीतर पहुँचे तब उन्हें समझ आया कि तेजस्वी उसे खाली क्यों नहीं करना चाह रहे थे। ये जानकारी भी आ रही है कि बंगले की शान-शौकत लोगों की निगाह में न आए इसके लिए श्री यादव बहुत सतर्क रहा करते थे। बंगले में प्रवेश भी बिना अनुमति प्रतिबंधित था। कभी-कभार किसी आयोजन के समय उसे बड़े परदों से ढंक दिया जाता था। बताया जाता है नीतीश सरकार में लोक निर्माण विभाग तेजस्वी के पास ही था। यूँ भी इसे सबसे भ्रष्ट महकमों में शुमार किया जाता रहा है। उस दौरान उन्होंने बेरहमी से बंगले की साज-सज्जा पर सरकारी धन लुटाया जिसका विवरण अधिकारिक तौर पर तो नहीं उजागर हुआ किन्तु देखने वालों का अनुमान है कि 25-30 करोड़ की होली तो आसानी से खेली गई। यदि तेजस्वी अपने निजी मकान में इस तरह के शाही इंतजाम करते तब शायद उस पर उँगली उठाने का अधिकार हर किसी को नहीं होता। बसपा सुप्रीमो मायावाती की तरह वे अपने लाखों समर्थकों से जन्मदिवस या अन्य किसी जश्न के जरिये करोड़ों कमाकर राजमहल बनवा लेते तब भी बात कुछ कुछ समझ में आती लेकिन तेजस्वी ने ऐशो आराम के जो भी प्रबंध उक्त बंगले में किये वे सब सरकारी खजाने के बलबूते किये गए। और यदि उसमें निजी धन खर्च हुआ तब एक तो सरकारी बंगले में वैसा करने का औचित्य समझ से परे है और फिर वह भ्रष्टाचार की कमाई ही रही होगी। ऐसा लगता है तेजस्वी ये मानकर बैठे रहे कि वह बंगला उन्हें जीवन भर के लिए मिल गया था। कुछ समय पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा खाली किये गए सरकारी बंगले को लेकर भी काफी हल्ला मचा था लेकिन उसकी मुख्य वजह ये थी कि श्री यादव उसमें से बहुत सारा कीमती सामान न सिर्फ  निकाल ले गए बल्कि उसमें बड़े पैमाने पर इस तरह से तोडफ़ोड़ भी की गई जैसे किसी से शत्रुता निभाई जा रही हो। उल्लेखनीय है अखिलेश को भी सर्वोच्च न्यायालय के फरमान पर ही वहां से  बेदखल किया गया था। सवाल ये है कि लोकतंत्र के इन तथाकथित सेवकों का ये मालिकाना आचरण क्या उस जनादेश का अपमान नहीं है जो गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के नाम पर हथियाया जाता है? पाठक ये न समझें कि हमारा निशाना केवल लालू और मुलायम सिंह के बेटे ही हैं। दरअसल ये तो दो उदाहरण मात्र हैं। लेकिन विहंगम दृष्टि डालें तो  देखने में आएगा कि कमोबेश नेता नामक अधिकांश प्राणी जनता के धन को बेरहमी से लुटाने में तनिक भी संकोच नहीं करते। हालांकि अभी भी मानक सरकार, ममता बैनर्जी और ऐसे ही कुछ राजनेता हैं जिनकी सादगी और सरलता प्रभावित करती है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या हजारों में एक ही रह गई है। तेजस्वी जिन लालू और राबड़ी देवी के पुत्र हैं वे बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपने आपको गरीबों का हमदर्द बताते नहीं थकते। सत्ता में आने के बाद किसी भी नेता को सुविधाजनक रहन-सहन का अधिकार है। मंत्री से मिलने-जुलने सैकड़ों लोग प्रतिदिन आते हैं। निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता और पार्टी कार्यकर्ताओं की आवभगत भी उसे करनी पड़ती है। उस लिहाज से राजधानी में सरकारी बंगले उन्हें दिए जाते हैं। शासकीय कामकाज निपटाने के लिए उसी में एक छोटा सा कार्यालय भी रहता है। सुरक्षाकर्मियों सहित घरेलू कर्मचारियों के लिए भी आउटहाउस की व्यवस्था होती है। लालू जी सरीखे नेता शासकीय आवास में डेरी जैसे उपक्रम भी कर लिया करते हैं। लेकिन तेजस्वी ने जिस शाही अंदाज का परिचय दिया वह न केवल आपत्तिजनक बल्कि निंदनीय भी है। डॉ. लोहिया के ये अनुयायी जिस सामन्ती जीवनशैली का प्रदर्शन करते हैं वह देखकर दुख होता है। मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई का भ्रमण कर चुके लोग बताते हैं कि उन्होंने जो निवास बनाया है वह किसी राजप्रासाद से कमतर नहीं है। कल जैसा सुशील मोदी ने बताया उसके मुताबिक तो तेजस्वी द्वारा खाली किये बंगले को प्रधानमंत्री निवास के समकक्ष कहना गलत नहीं होगा। वैसे ये बीमारी सभी पार्टियों के नेताओं को लग गई है। सरकार बदलने पर नए मंत्री बंगले में लाखों रुपये खर्च करवा देते हैं। मनमोहन सरकार के मंत्री शशि थरूर तो बंगले की साज-सज्जा के चलते कई महीने हजारों रु. रोज के पाँच सितारा होटल में मेहमानी करते रहे। और भी उदाहरण हैं जिनमें सरकारी धन पर अय्याशी साफ -साफ  दिखाई देती है। गांधी, लोहिया और दीनदयाल के चेले उनकी जयंती मनाते समय जिस तरह की अच्छी-अच्छी बातें करते हैं अगर उसका दशमांश भी वे अपने आचरण में समाहित कर लें तो पूरे देश की सोच बदल सकती है। वरना लोकतंत्र इसी तरह लूटतंत्र बना रहेगा और गरीबों के मसीहा राजसी जीवन जीते रहेंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment