Monday 25 February 2019

ये काम धर्माचार्यों को भी करना चाहिए

राजनीति से जुड़े व्यक्ति की प्रत्येक क्रिया उसी से प्रेरित और प्रभावित मानी जाती है। उस लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रयागराज में चल रहे कुम्भ में पांच सफाई कर्मियों के पांव पखारने पर हो रही व्यंग्यात्मक टिप्पणियां सहज स्वाभाविक ही कही जाएंगी। गत दिवस श्री मोदी ने कुम्भ स्नान भी किया लेकिन उनकी प्रयागराज यात्रा का सबसे चर्चित दृश्य कुम्भ की स्वच्छता को विश्वस्तर पर चर्चित कर देने वाले समर्पित सफाई कर्मचारियों के प्रतिनिधि के तौर पर पाँच लोगों के पैर धोने वाला बन गया। प्रधानमंत्री इस समय चुनावी दौरे पर भी हैं और तकऱीबन रोजाना ही किसी शहर में जनसभा करते हैं। प्रयागराज में उन्होंने यद्यपि सभा तो नहीं की किन्तु उससे भी बड़ा काम वे कर गए। सामाजिक समरसता का जो भाव उनके इस कार्य से व्यक्त हुआ उसे सकारात्मक तौर पर लिया जाए तो राजनीति को जातिवाद के ज़हर से बचाया जा सकता है। वैसे होना तो ये चाहिये कि कुम्भ जैसे आयोजन के अवसर पर साधु-महात्मा और अन्य धर्माचार्य इस तरह का उदाहरण पेश करें। कुम्भ का एक उद्देश्य ये भी होता है कि समूचा समाज बिना भेदभाव के एकजुट होकर एकाकार हो जाये। जितने भी डेरे लगते हैं उनमें प्रवेश और भोजन के लिए कोई भी जा सकता है। श्री मोदी ने बिना उपदेश झाड़े जो कार्य गत दिवस किया उसे चुनावी मौसम से जोड़कर भी देखा जा सकता है किन्तु बेहतर हो सभी नेतागण इस तरह के आयोजन करने लगें। हिन्दू समाज वर्ण व्यवस्था व्यक्ति के व्यवसाय से जुड़ी थी किन्तु कालांतर में उसने जाति का रूप ले लिया। आज़ादी के आन्दोलन के दौरान ही महात्मा गांधी ने छुआछूत मिटाने का अभियान छेड़ा था। आज ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि छुआछूत तो काफी हद तक मिट गई लेकिन जाति की दीवारें वोट बैंक का सहारा लेकर और भी ऊंची और मजबूत होती जा रही हैं। राजनीतिक गठबंधन भी विचारधारा और सिद्धांतों की जगह  जाति विशेष के वोटों की संख्या पर निर्भर हो गए हैं। निश्चित रूप से राजनेता इसके लिए कसूरवार हैं लेकिन धर्माचार्यों ने भी जातिगत भेदभाव मिटाने के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किये। उल्टे अनेक साधु-सन्यासी तो खुद ही अपनी जाति को भुनाने राजनीति की मंडी में बैठ गए। गत दिवस श्री मोदी ने सांकेतिक तौर पर जो किया उसे आगे बढ़ाने की खासी जरूरत आज के माहौल में है। कुम्भ के बाद धर्माचार्य यदि इस अभियान को पूरे देश में संचालित करें तो एक बड़ी सामाजिक क्रांति हो सकती है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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