Saturday 16 February 2019

कश्मीर : अलगाववाद की जड़ें उखाडऩे का अनुपम अवसर

पुलवामा हमले के बाद देश में भावनात्मक एकता का जो सैलाब आया वह आश्वस्त करने वाला रहा। हालांकि कुछ ने खुलकर तो कुछ ने घुमा-फिराकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की लेकिन उसके बाद भी संकट की इस घड़ी में विपक्ष ने जिस दायित्व बोध का परिचय दिया वह आगे भी अपेक्षित रहेगा क्योंकि रक्षा और विदेश नीति जैसे विषयों पर राजनीतिक मतभेदों को ताक पर रखने की परंपरा रही है। विपक्ष के उत्साहवर्धक समर्थन और जनभावनाओं के जबरदस्त आवेग ने ही सम्भवत: केंद्र सरकार को पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाने के लिए सम्बल प्रदान किया। यही वजह रही कि कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति ने बिना देर लगाए पाकिस्तान को दिया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापिस ले लिया। ये कदम इसके पहले हुए दो बड़े आतंकी हमलों के बाद ही अपेक्षित था किंतु ऐसा लगता है उस समय मोदी सरकार कूटनीतिक प्रयासों के जरिये रिश्ते सुधारने की खुशफहमी में जी रही थी। दूसरी बात ये भी है कि लोकसभा चुनाव करीब होने से प्रधानमंत्री को अपना 56 इंची सीना साबित करना जरूरी था। इसीलिये गत दिवस केंद्र सरकार ने बिना देर लगाए पाकिस्तान को झटका दिया वहीं सेना को भी जवाबी कार्रवाई करने के लिए खुला हाथ दे दिया। घरेलू मोर्चे पर मिले जोरदार समर्थन के साथ ही चीन को छोड़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो समर्थन और सहानुभूति आतंकवाद के विरुद्ध भारत को हासिल हुई उसने भी प्रधानमंत्री का हौसला बढ़ा दिया। सरकार की ओर से मिली छूट ने सुरक्षा बलों का भी जोश बढ़ाया जिसे सीआरपीएफ  ने अपनी प्रतिक्रिया में व्यक्त करते हए कहा न भूलेंगे, न माफ  करेंगेें, बदला लेंगे। खबर ये भी है कि सेना ने भी पुलवामा का हिसाब चुकता करने की कार्ययोजना बनानी शुरू कर दी है। यद्यपि ये माहौल कितने दिन रहेगा कहना मुश्किल है क्योंकि खुफिया चेतावनी के बाद भी इस तरह का हादसा होने से कई सवाल उठना स्वाभाविक है और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इसे लेकर बयान भी जारी कर दिया है। सरकार के प्रति उपजी सहानुभूति भी दो-चार दिन तक ही रहेगी और उसके बाद लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी आक्रमण अवश्यम्भावी है। ये देखते हुए राजनीतिक स्तर पर भी प्रधानमंत्री को ऐसा कुछ करना होगा जो जनभावनाओं के अनुरूप होने के साथ ही देश के दूरगामी हितों के लिहाज से उपयुक्त हो। पाकिस्तान को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्त देने मात्र से काम नहीं चलने वाला। दुनिया भर से पुलवामा हादसे पर जो रोषपूर्ण प्रतिक्रिया आई वह भी बहुत हद तक औपचारिक ही है क्योंकि आतंकवाद की नर्सरी के रूप में पाकिस्तान पहले से ही बदनाम है। लश्कर, जैश और ऐसे ही दूसरे कुख्यात इस्लामी आतंकवादी संगठन और उसके नेता पाकिस्तान की धरती पर न केवल सक्रिय अपितु सेना और सरकार द्वारा संरक्षित भी हैं। अमेरिका सहित अनेक बड़ी ताकतें समय-समय पर इस्लामाबाद में बैठे हुक्मरानों के कान भी खींचती रहती हैं लेकिन कुछ समय बाद उसे खाना-खुराक देने से भी परहेज नहीं करतीं। ओसामा को छिपाकर रखने के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान को अपेक्षित दंड नहीं दिया। इस आधार पर बीते दो दिनों के भीतर जो वैश्विक समर्थन भारत को हासिल हुआ उससे ज्यादा प्रभावित हुए बिना यही उचित होगा कि इस माहौल के ठंडे पडऩे के पहले कश्मीर में ऐसा कुछ किया जावे जिससे पाकिस्तान के हितों पर भी चोट लगे। सर्जिकल स्ट्राइक या सीमित युद्ध एक विकल्प हो सकता है लेकिन उसका प्रभाव और फायदा भी क्षणिक होगा। समस्या ये है कि आतंकवाद के जरिये भारत विरोधी गतिविधियों को कश्मीर घाटी के भीतर ही सहयोग और संरक्षण देने वाले बैठे हैं। जिस तरह का हादसा पुलवामा में हुआ उसके तार बेशक सीमा पार से जुड़े थे लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक का उपयोग होना ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि घाटी में पल रहे पाकिस्तान के पालतू तत्व और उन्हें समर्थन दे रहे हुर्रियत के नेतागण इसके सूत्रधार थे और इसलिए पहली जरूरत आस्तीन में छिपे इन जहरीले सांपों का फन कुचलने का है। लंबे समय से ये नेता नजरबंद हैं। इनकी सुरक्षा की जा रही है। जन अपेक्षा और राष्ट्रहित दोनों का तकाजा है कि हुर्रियत और उस जैसे बाकी अलगाववादियों की सुरक्षा पूरी तरह खत्म कर दी जाए। उनके पासपोर्ट जप्त कर लिए जाएं तथा फोन, मोबाइल तथा इंटरनेट के उपयोग से उन्हें वंचित कर दिया जाए। यदि घाटी में उन्हें रखने में परेशानी हो तब अन्य किसी राज्य की जेल में उनको बन्द करना भी विकल्प हो सकता है। क्योंकि ये वे लोग हैं जो घाटी में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। पत्थरबाजी जैसा तरीका भी इन्हीं के दिमाग की उपज है। कश्मीर समस्या को गोली की बजाय बोली से सुलझाने पर जोर देने वालों की चूंकि इस समय सिट्टी-पिट्टी बन्द है इसलिए हुर्रियत जैसे संगठनों को ठिकाने लगाने का इससे बेहतर अवसर नहीं मिलेगा। वैसे भी जो लोग भारत की संप्रभुता को ही नहीं मानते और चुनाव रूपी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेकर मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग का राग अलापा करते हैं उन्हें उनकी औकात बताना ही सही होगा। इससे भी बढ़कर तो केंद्र सरकार को चाहिए वह जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35-ए को रद्द करने वाली याचिका पर शीघ्र सुनवाई हेतु सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करे। यदि वैसा होना सम्भव न हो तो एक अध्यादेश लाकर उसे रद्द करने का दुस्साहस करे। वैसे भी यह अनुच्छेद संविधान का विधिवत हिस्सा न होकर तत्कालीन राष्ट्रपति का एक प्रशासनिक आदेश था जिसे संविधान में जोड़ दिया गया। वह सब कैसे और किस मकसद से किया गया इस बहस में पड़े बिना अतीत की गलतियों को सुधारने का जो अवसर  नियति ने दिया उसका समुचित उपयोग कर लेना चाहिए। भारत एक शांति प्रिय देश है। युद्ध को अंतिम विकल्प मानने की संस्कृति महाभारत काल से चली आ रही है। मौजूदा माहौल वैसी ही परिस्थितियाँ लेकर आया है जिसमें किसी पार्टी या नेता का नहीं वरन देशहित की चिंता सर्वोपरि  होनी चाहिए। आज की सर्वदलीय बैठक जनभावनाओं के अनुरूप निर्णय लेगी ये उम्मीद सभी को है। राजनीतिक मतविभिन्नता का अपना स्थान है लेकिन जब देश की आन-बान-शान पर खतरा हो तब कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की एकता शाश्वत सत्य के तौर पर प्रगट होनी चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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