Wednesday 13 February 2019

आम इंसान केवल वोटर बनकर रह गया है


देश की राजधानी दिल्ली के एक होटल में गत दिवस तड़के लगी आग में 17 लोगों की मौत हो गई। जब आग भड़की तब 50 से ज्यादा लोग वहां सो रहे थे जिनमें 35 को बचा लिया गया किन्तु  शेष जीते जी आग की भेंट चढ़ गए। भोर के समय चूंकि होटल के कर्मचारी भी गहरी नींद में रहे इसलिए आग को तत्काल रोकने का प्रयास भी नहीं हो सका। उससे भी बड़ी बात ये रही कि की होटल में आग लगने पर बजने वाले अलार्म की कोई व्यवस्था नहीं थी जिसकी वजह से जब तक लोग सम्भल पाते तब तक आग ने विकराल रूप ले लिया।  जांच होने पर आग के कारणों की जानकारी मिलेगी लेकिन इतना तो साफ  हो ही गया कि जिस होटल में  कर्मचारियों सहित 70-75 व्यक्तियों के रुकने की व्यवस्था हो वहां फायर अलार्म जैसी अत्यावश्यक व्यवस्था का न होना केवल होटल मालिक और प्रबंधन की ही नहीं अपितु दिल्ली प्रशासन के सम्बंधित विभाग की भी अपराधिक उदासीनता कही जाएगी। राजधानी में कई दशक पहले उपहार सिनेमा अग्निकांड हुआ था। उसके मालिकों को भी लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद सजा और जुर्माना हुआ लेकिन जो बेशकीमती जिंदगियां उस अग्निकांड की बलि चढ़ गईं उनकी क्षतिपूर्ति केवल पैसे से नहीं हो सकती। गत दिवस हुए हादसे ने डेढ़ दर्जन निर्दोष लोगों को मौत के मुंह में तो धकेला ही इससे भी बढ़कर बात ये हुई कि देश की राजधानी में जब इस तरह की लापरवाही होती है तब छोटे और मझोले किस्म के शहरों में क्या होता होगा इसकी कल्पना सहज रूप से की जा सकती है। हाल ही में उप्र और उत्तराखंड में लगभग 100 लोग जहरीली शराब से मर गए। इस प्रकार का हादसा देश के अलग-अलग हिस्सों में यदाकदा होता रहता है लेकिन दो चार दिन तक हल्ला मचने के बाद फिर सब ठंडा पड़ जाता है। इन सबसे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हमारे देश में इंसानी जिंदगी मिट्टी के मोल समझ ली गई है। मरने वालों को मोटी रकम और घायलों का इलाज करवाने की रस्म अदायगी ही सरकारी सम्वेदनशीलता को व्यक्त करती है किन्तु इस तरह की अराजक व्यवस्था को सुधारने के प्रति जिस तरह का टरकाऊ रवैया अपनाया जाता है वह असहनीय है। लेकिन देश उन्हें चुपचाप बर्दाश्त करता है क्योंकि आम जनता की आवाज कोई सुनने वाला नहीं है। केवल होटल में सुरक्षा प्रबंधों का अभाव और जहरीली शराब ही चिंता का विषय नहीं अपितु हर जगह यही आलम है। सही बात ये है कि हमारे देश में इंसान केवल मतदाता बनकर रह गया है। यदि चुनाव न हों तो उसकी बची खुची पूछ-परख भी समाप्त हो जायेगी। रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी प्रतिवर्ष बड़े दावे होते हैं लेकिन चाहे जब रेल पटरी से उतर जाती है और अनेक यात्रियों की जिंदगी का सफर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। होटल, सिनेमा, मॉल आदि के लिए स्थानीय प्रशासन अनुमति देता है। नगरीय निकाय की  जिम्मेदारी बनती है कि वह समय-समय पर ये जांच करे कि उनमें आने वाले लोगों की सुविधाओं और सुरक्षा के प्रबंध चाकचौबंद हैं कि नहीं ? उस  आधार पर दिल्ली के उक्त होटल में हुए अग्निकांड के लिए वहां के नगरीय प्रशासन पर भी अपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए। करौलबाग राजधानी का अत्यंत घना इलाका है जिसमें व्यवसायिक और आवासीय दोनों प्रकार के परिसर हैं। यही  स्थिति पहाडग़ंज इलाके की है। नई दिल्ली स्टेशन के पास होटलों का जो जाल है वहाँ भी सुरक्षा इंतजाम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। 21 वीं सदी में इस प्रकार की अव्यवस्था किसी भी दृष्टि से क्षम्य नहीं कही जा सकती।  कुछ बलि के बकरों की गर्दन में फंदा डालकर बड़े अपराधियों को बख्श देने की परिपाटी तोड़कर अब उन लोगों को कड़े से कड़ा दंड देने की जरूरत है जो इंसानों को कीड़े मकोड़े समझ्ने की मानसिकता से ग्रसित हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सरकारी विद्यालयों तथा मोहल्ला क्लीनिक जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसे सराहनीय कार्य तो किए किन्तु नई राजनीति के ब्रांड एम्बेसेडर बनकर अवतरित हुए अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली के ढर्रे को नहीं सुधार सके। गत दिवस हुआ अग्निकांड नगरीय प्रशासन की अनदेखी का नतीजा है किन्तु प्रदेश सरकार भी इसके दायित्व से नहीं बच सकती। दुख की बात ये है कि इस तरह के कांडों में दोषियों को बचाने के लिये राजनीतिक नेता अपने प्रभाव का बेशर्मी से दुरुपयोग करते हैं। आजादी के सात दशक बाद भी आम जनता की सुविधा और सुरक्षा को लेकर सरकारी अमला पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना बना हुआ है। जहां तक सत्ता में बैठे महानुभावों की बात है तो उनका पूरा ध्यान अपनी सुख-सुविधाओं पर केन्द्रित रहता है। यदि होटल में कोई नेता या उसका रिश्तेदार मरा होता तो संसद तक हिल जाती और नेता के समर्थक दहाड़ मारकर रोते टीवी चैनलों में दिखते। विश्व की सबसे तेज अर्थव्यवस्था बनाने के दावों से आत्ममुग्ध हमारे हुक्मरान और उनकी नौकरशाही देश के आम आदमी के प्रति जिस हद तक लापरवाह है वह समूची आर्थिक उपलब्धियों पर पानी फेर देती है।
-रवीन्द्र वाजपेयी

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