Friday 22 February 2019

पाकिस्तान का पानी उतारने का सही समय

केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी यद्यपि विदेशी मामलों में नहीं बोलते लेकिन गत दिवस उन्होंने पाकिस्तान को लेकर जो बयान दिया वह काफी गम्भीर है। हालांकि जो बात उन्होंने कही वह चूंकि उनके विभाग से ही संबंधित है इसलिए उसे अनधिकृत भी नहीं कहा जा सकता। उनकी छवि चूंकि ठोस बात करने वाले नेता की है इसलिए उनकी घोषणाओं पर विश्वास किया जा सकता है। पुलवामा हमले के बाद देश में उत्पन्न रोषपूर्ण वातावरण के चलते पाकिस्तान के साथ रिश्ते तोडऩे का दबाव बढ़ रहा है। हमले के फौरन बाद पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापिस लेने का फैसला किया गया। लेकिन जैसी जानकारी मिली उसका उतना असर नहीं होगा क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार बहुत अधिक नहीं है। फिर भी पाकिस्तान पर मनोवैज्ञानिक दबाव तो बढ़ा ही। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने जो मोर्चेबंदी की उसका भी अनुकूल परिणाम देखने मिल रहा है। गत दिवस पाकिस्तान ने हाफिज सईद के संगठन पर प्रतिबन्ध लगाकर दुनिया को अपनी नेकनीयती दिखाने की कोशिश भी उसी दबाव के चलते की। लेकिन उसकी विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो चुकी है इसलिये ये मानना कठिन है कि इमरान सरकार वाकई आतंकवादियों की नकेल कसेगी। हाफिज सईद पर पहले भी शिकंजा कसा गया था जिसे बाद में ढीला कर दिया गया। अन्य आतंकवादियों को लेकर भी यही रवैया रहा है। ऊपर से पाकिस्तान का हर शासक बड़ी ही मासूमियत से कहता है कि उनका मुल्क खुद ही दहशतगर्दी का शिकार है। दो दिन पहले इमरान ने भारत को हमला करने पर करारा जवाब देने की धमकी देते हुए भी ये रोना रोया था कि बीते दस वर्षों में ही उसके 50 हजार नागरिक आतंकवादी हमलों में मारे जा चुके हैं। ये सब देखते हुए भारत के लिए जरूरी होता जा रहा है कि वह ऐसा कुछ करे जिससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जा सके। कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा खत्म करने के निर्णय का असर हालांकि घाटी में तो होगा लेकिन पाकिस्तान पर प्रत्यक्ष दबाव फिर भी नहीं बन पायेगा। जम्मू कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे वाली धारा 370 को खत्म करने हेतु भी चौतरफा मांग उठ रही है लेकिन राजनीतिक आम राय नहीं बन पाने की वजह से ऐसा करना आसान नहीं लगता। पाकिस्तान की बांह मरोडऩे के लिए युद्ध भी एक विकल्प के तौर पर चर्चा में है। सेना को दी गई छूट का आशय भी यही लगाया जा रहा है कि यदि वह उचित समझे तो दुश्मन के घर में घुसकर उसे सबक सिखा सकती है। लेकिन युद्ध शुरू करने के पहले काफी कुछ विचार करना होता है और फिर वह स्थायी निदान भी नहीं है। पिछले जितने भी युद्ध हुए उन सब में पाकिस्तान को पराजय झेलनी पड़ी लेकिन उसके बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। ऐसे में भारत को ऐसा करना जरूरी हो गया है जिससे पाकिस्तान वाकई दबाव में आये और शायद इसीलिए श्री गड़करी ने सिंधु नदी समझौते को तोडऩे की बात कहते हुए कहा कि भारत से जिन तीन नदियों का पानी पाकिस्तान को जाता है उसे अवरुद्ध या कम कर दिया जाए। ऐसा होने पर एक तरह से आधा पाकिस्तान पानी के लिए तरस जायेगा। उन्होंने इसकी कार्ययोजना भी सामने रख दी। हालांकि ये काम पूरा होने में कम से कम पांच साल लग जाएंगे लेकिन इसकी तैयारी होते ही नदियों के प्रवाह पर असर पडऩा शुरू हो जायेगा। यद्यपि इस कदम से ये आशंका भी है कि पाकिस्तान का संरक्षक बना बैठा चीन ब्रह्मपुत्र नदी का जल रोककर भारत के लिए समस्या उत्पन्न कर सकता है किंतु भारत के बड़े बाजार को खोने का खतरा  बीजिंग में बैठे हुक्मरान शायद ही उठाना चाहेंगे। और फिर भारत भी अब विश्व जनमत को प्रभावित करने की स्थिति में आ गया है। इस वजह से चीन भारत से सीधा पंगा लेने से बचना चाहेगा। इसके अलावा उसके भी कुछ इलाकों में मुस्लिम आतंकवाद सिर उठाने लगा है। उसके वन बेल्ट वन रोड प्रकल्प का भारत ने जिस तरह से विरोध किया उससे चीन को ये एहसास तो हो ही गया कि अब भारत पहले जैसा नहीं रहा। आर्थिक और सामरिक तौर पर वह धीरे-धीरे ही सही लेकिन चीन के बराबर खड़ा होने की हैसियत हासिल करने की राह पर है। अरुणाचल में भारत ने सड़कों और हवाई अड्डे का विकास करते हुए वहां अपनी तोपें और मिसाइल तैनात कर रखी हैं । उनसे भी चीनी हेकड़ी प्रभावित हुई है। इस प्रकार ये सही अवसर है जब पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी को रोकने का स्थायी इंतजाम भारत करे। यद्यपि इसमें अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप आड़े आ सकता है लेकिन पुलवामा की घटना के बाद जिस तरह विश्व जनमत पाकिस्तान के विरुद्ध मुखर हुआ है उसे देखते हुए भारत के लिये ऐसे किसी कदम को उठाने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा। श्री गड़करी ने कश्मीर की नदियों के पानी से हरियाणा-पंजाब सहित उत्तर भारत की जल जरूरतें पूरी करने का जो इरादा जताया वह देश के व्यापक हितों में है। एक सभ्य और जिम्मेदार देश के रूप में भारत ने अतीत में हुए किसी भी युद्ध के समय और उसके बाद ऐसा करने के बारे में नहीं सोचा लेकिन आतंकवाद के रूप में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ  जो छद्म युद्ध छेड़ रखा है उसका जवाब देने के लिए उसी भाषा में जवाब देना जरूरी है। मु_ी भर कुछ लोगों को छोड़कर देश का जनमत इस मामले में सरकार के साथ खड़ा है। बेहतर हो मौजूदा वातावरण का लाभ लेते हुए भारत, नदी जल रोकने के प्रकल्प पर तत्काल प्रभाव से अमल करे। सीधी उँगली से घी निकालने की प्रत्याशा में कई दशक बीत चुके हैं। देशहित का तकाजा है कि अब उँगली टेढ़ी की जाए। पाकिस्तान ने हर बार युद्ध हारने के बाद शांति कायम करने की कसमें खाईं लेकिन वह अपनी बात से सदैव मुकरता रहा। ऐसे में भारत ही समझौतों को ढोता रहे ये अटपटा लगता है। बेहतर हो मोदी सरकार श्री गड़करी की घोषणा को लागू करने के लिए विपक्षी दलों को भी विश्वास में ले जिससे रायता फैलाने वालों को अवसर नहीं मिल सके। देश में शीघ्र ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि सर्वदलीय सहमति इस विषय पर बन जाये। वैसे भी जब देश का भविष्य और सुरक्षा दांव पर हो तब दलगत नफे-नुकसान को दरकिनार रखना ही बेहतर होता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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