Saturday 2 February 2019

बजट : लिया कुछ नहीं - दिया ही दिया

नरेंद्र मोदी सरकार ने गत दिवस जो अंतरिम बजट पेश किया उस पर चुनावी रंग होने का विपक्षी आरोप पूरी तरह सही है। पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने अंतरिम के नाम पर पूर्ण बजट पेश करने पर जो आपत्ति व्यक्त की वह भी बैद्धिक विमर्श के लिहाज से ठीक है। ये कहना भी गलत नहीं होगा  कि लोकसभा चुनाव के लगभग ढाई महीने पहले मोदी सरकार ने इस बजट के बहाने एक तरह से भाजपा या यूँ कहें कि एनडीए का वायदा पत्र ही प्रस्तुत कर दिया। कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने एक सिद्धहस्त चार्टर्ड अकाउंटेंट होने का जोरदार परिचय देते हुए जिस तरह का बजट लोकसभा में रखा वह किसी एक दिवसीय क्रिकेट मैच के अंतिम ओवरों के रोमांच जैसा एहसास दे रहा था। जिस तरह क्रिकेट में बल्लेबाजी के परम्परागत शाट्स से हटकर अब रिवर्स स्वीप जैसे नए तरीके ईजाद कर लिए गए हैं ठीक उसी तरह राजनीति भी केवल चुनाव जीतने पर केंद्रित हो गई है और उस आधार पर श्री गोयल ने अपने कप्तान श्री मोदी के निर्देशनुसार जिस धमाकेदार अंदाज में बल्लेबाजी की वह चुनाव रूपी ट्राफी जीतने पर ही केंद्रित थी। उन्होंने अच्छी सलामी बल्लेबाजी से टीम मोदी को एक मजबूत आधार दे दिया है जिसे जीत तक ले जाना बाकी खिलाडिय़ों पर निर्भर होगा कि वे विपक्षी दलों की गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण का किस कुशलता से सामना करते हैं। बहरहाल जहां तक बात इस अंतरिम बजट के विश्लेषण की है तो ये शत-प्रतिशत चुनावी है, जो अपेक्षित भी था। यदि कल वित्तमंत्री की भूमिका में श्री गोयल की जगह श्री चिदंबरम होते तब वे भी घुमा-फिराकर ऐसा ही बजट पेश करते। लोकसभा के जो चित्र टीवी पर दिखाई दिए उनमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मुरझाया चेहरा और कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े की परेशानी बजट पर विपक्ष की अनकही प्रतिक्रिया मानी जा सकती है जो बाद में उनके बयानों से और मुखरित हो गई। प्रधानमंत्री श्री मोदी को जानने वाले ये तो मानते ही हैं कि वे स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की तरह के आदर्शवादी नहीं हैं। लेकिन ये भी सही है कि शासन-प्रशासन के संचालन के अलावा मतदाताओं को प्रभावित करने की कला में वे पूरी तरह से पारंगत हैं। बीते पौने पाँच वर्ष में उन्होंने जितनी भी आलोचनाएं और कटाक्ष झेले उन सभी का जवाब इस अंतरिम बजट में दे दिया और वह भी इस सावधानी के साथ कि सरकार द्वारा दिखाई जाने वाली दरियादिली का लाभ सुपात्रों को ही मिले। गरीब, किसान, कर्मचारी, मजदूर, महिलाओं आदि को एक साथ खुश करना कोई आसान बात नहीं थी। लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली की बीमारी के कारण उनकी जगह आए पीयूष गोयल ने पूरे देश को खुश होने के मौके तो दे ही दिए। बजट के अंतर्निहित प्रावधानों का खुलासा होने के बाद हो सकता है कहीं खुशी कहीं गम का माहौल बन जाये लेकिन प्रधानमंत्री ने 2014 में सबका साथ सबका विकास के जिस नारे पर चुनाव जीता था उसे जमीन पर उतारने की पुरजोर कोशिश बजट के माध्यम से गई। प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि अधिकाँश मतदाता दीर्घकालीन की बजाय नगद लाभ से प्रभावित होते हैं। हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्ज माफी के वायदे से भाजपा को धूल चटाकर इसे साबित भी कर दिया। कल पेश हुए अंतरिम बजट में मतदाताओं के उस वर्ग को सीधे संबोधित किया गया जो छोटे-छोटे फायदों से संतुष्ट हो जाता है। चुनावी राजनीति के इस दौर में किसी भी सरकार के लिए लोकलुभावन नीतियों के साथ ही अर्थव्यव्यस्था को पटरी पर बनाये रखना बहुत कठिन हो गया है। लेकिन मोदी सरकार की प्रशंसा करनी होगी कि उसने कड़े वित्तीय अनुशासन से लोगों की नाराजगी मोल लेने का खतरा भी उठाया वहीं समाज के निम्न मध्यम वर्ग और गरीबों को विकास की मुख्य धारा में शामिल करने की सदाशयता भी दिखाई। बीते पौने पाँच साल तक श्री मोदी के प्रचलित नारे अच्छे दिन आने वाले हैं का खूब मज़ाक उड़ता रहा। विरोधी दल ही नहीं अपितु आम जन भी ये कहनेे लगे कि सबका साथ सबका विकास केवल जुमला था और ये सरकार पूंजीपतियों और उसमें भी एक दो घरानों की हितकचिन्तक रही है। लेकिन कल के बजट ने उन सभी आलोचनाओं को सिरे से ध्वस्त कर दिया। श्री गोयल का पूरा बजट समाज के प्रत्येक वर्ग को कुछ न कुछ देने वाला रहा। जिसे कुछ नहीं मिला उससे कुछ लिया भी नहीं गया। जिस वर्ग को प्रत्यक्ष रूप से उपकृत नहीं किया वह परोक्ष तौर से लाभान्वित होता दिख रहा है। उद्योग और हाउसिंग सेक्टर को बजट प्रावधानों से निश्चित रूप से जबर्दस्त सहारा मिला जो अर्थव्यवस्था में आए ठहराव को दूर कर सकता है। एक बात जरूर खटकने वाली है कि बजट में रोजगार बढ़ाने के कोई सीधे उपाय नहीं किये गए। एक दिन पहले ही बेरोजगारी के जो भयावह आंकड़े आए उनके मद्देनजर उम्मीद थी कि जिस तरह किसानों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को नगद लाभ देने की पहल की गईं वैसा ही कुछ शिक्षित बेरोजगारों के लिए भी किया जाता। उस मामले में श्री गोयल ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे बेरोजगार संतुष्ट हो जाते। हो सकता है कारोबार में वृद्धि तथा नौकरपेशा मध्यमवर्ग की जेब में आने वाले ज्यादा धन से बाजार में मांग उठे। वहीं जमीन-जायजाद विशेष रूप से घर बनाने और खरीदने के लिए दिए गए प्रोत्साहन से रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हों लेकिन ये वह मुद्दा है जो लोकसभा चुनाव में श्री मोदी के लिए समस्या बन सकता है। छोटे किसानों को छह हजार साल की मदद यद्यपि ऊंट के मुंह में जीरा जैसी है लेकिन इसे शुरुवात समझकर उसका स्वागत किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर भले ही श्री गोयल ने चालाकी के साथ चतुराई का समन्वय बनाते हुए अंतरिम को पूर्ण बजट बनाने का दांव चला हो लेकिन कुछ लक्ष्मण रेखाएं फिर भी ऐसी रहीं जिन्हें वे नहीं लांघ सके। लेकिन इसके जरिये मोदी सरकार चुनाव के पहले ये संदेश देने में तो कामयाब हो ही गई कि वह अपने समर्थक और प्रतिबद्ध मतदाताओं के कल्याण के लिए संवेदनशील है। इसका चुनावी असर क्या होता है ये तो इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस तथा बाकी विपक्षी दल जनता के सामने कौन से वायदे परोसते हैं। लेकिन बहुत ज्यादा खैरात बांटने की गुंजाइश भी नहीं है। मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्जमाफी में आ रही आर्थिक और व्यवहारिक परेशानियां इसका प्रमाण हैं। अर्थव्यवस्था को मुफ्तखोरी और भ्रष्टाचार से बचाकर ठोस आधार देने के साथ ही जरूरतमंदों का जीवन स्तर उठाने के प्रयासों के लिए इस सरकार को अच्छे अंक दिये जा सकते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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