Monday 25 February 2019

चित्रकूट : विकृत मानसिकता का फैलाव चिंताजनक

मप्र के चित्रकूट से अपहृत दो जुड़वा बच्चों की नृशंस हत्या केवल कानून व्यवस्था का विषय नहीं है। विपक्ष ने राज्य सरकार पर हमला बोला तो सत्ता में बैठे लोगों ने अपहरणकर्ताओं के संबंध विपक्ष से सम्बद्ध कतिपय संगठनों से जोड़कर गेंद उसी के पाले में लौटाने की कोशिश की। क्षेत्रीय जनता ने भी ऐसे अवसरों पर नजर आने वाले रोष का प्रकटीकरण अपने ढंग से करते हुए तनावपूर्ण हालात पैदा कर दिए। इस पूरे प्रकरण का सबसे दुखद पहलू यही रहा कि अपहरणकर्ताओं ने बच्चों के घर वालों से 20 लाख रुपये फिरौती के नाम पर प्राप्त करने के बाद भी उनको बजाय लौटाने के यमुना नदी में हाथ-पांव बांधकर फेंक दिया। 12 दिनों तक चले इस प्रकरण में बच्चों की मौत के बाद सभी अपहरणकर्ताओं का पकड़ा जाना दरअसल कई सवाल खड़े कर रहा है। इतने दिनों तक उनकी भनक तक नहीं लगना वाक़ई पुलिस की कार्यप्रणाली और क्षमता पर सन्देह करने का अवसर देती है। तीन राज्यों के अपराधी आपस में किस तरह सम्पर्क में आये और वारदात को अंजाम दिया ये सब बातें जांच में सामने आएंगी किन्तु इसमें एक विचारणीय बिंदु ये भी है कि कहीं पुलिस विभाग के किसी व्यक्ति की भी तो अपहरणकर्ताओं से मिली भगत नहीं थी? सच्चाई जो भी हो लेकिन अपराधियों को कड़े से कड़ा दंड मिलने के बाद भी दो मासूमों की जि़न्दगी तो लौटकर नहीं आएगी। जैसी जनकारी आई है उसके अनुसार अपहरणकर्ताओं ने बच्चों से पूछा कि क्या वे बाद में उन्हें पहिचान लेंगे? बाल सुलभता में उन्होंने हाँ में जवाब दिया जिससे उन्हें भविष्य में पकड़े जाने का डर सताने लगा और उसी के बाद बच्चों के हाथ पैर बांधकर यमुना में फेंक दिया गया। इस वारदात का एक चौंकानेे वाला पहलू ये है कि लगभग सभी अपराधी अच्छे खासे शिक्षित हैं। उनके बीच तालमेल कैसे बना और इतने जघन्य अपराध के लिए वे मानसिक तौर पर किस तरह तैयार हुए ये भी बड़ा सवाल है। लेकिन इस सबसे अलग हटकर सबसे बड़ी विचारणीय बात है समाज में विकृत मानसिकता का फैलाव। निर्भया कांड में शरीक अपराधियों का शैक्षणिक स्तर बहुत ही निम्न था लेकिन सन्दर्भित घटना से जुड़े लोग पढ़े-लिखे  होने के बाद भी इस तरह की राक्षसी प्रवृत्ति में लिप्त हो गए ये देखकर दुख और चिंता दोनों हो रहे हैं। दुर्भाय से हमारे देश में सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़कर समाज अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि पहले जहां अशिक्षित और समाजिक तौर पर पिछड़े कहे जाने वाले तबके में भी संस्कार और मानवता दिखाई दे जाती थी वहीं आज के दौर में  सुसंस्कृत और सुशक्षित माने जाने वाले लोगों के भीतर भी अपराधिक मानसिकता तेजी से हावी होती जा रही है। माँ-बाप अपने बच्चों को खूब लाड़ प्यार करते हैं। उन्हें बेहतर से बेहतर विद्यालय में पढ़ाते हैं। उनका भविष्य संवारने हेतु महंगी कोचिंग दिलवाते हैं और छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। लेकिन इस सबके बीच उन्हें संस्कार और संवेदनशीलता की सीख देने के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। छोटा परिवार होने के बाद भी अभिभावकों का उनकी सन्तान के साथ संवाद पूर्वापेक्षा घट रहा है। एकाकी परिवारों के बच्चों में रिश्तों के निर्वहन और सम्मान का भाव भी निरन्तर ढलान पर है। इस सबका दुष्परिणाम समाज के सुशक्षित और यहां तक कि सम्पन्न वर्ग के बीच बढ़ती अपराधिक प्रवृत्ति के रूप में परिलक्षित हो रहा है। नजदीकी संबंधों में भी दुष्कर्मों की बढ़ती संख्या इसका ज्वलंत प्रमाण है। किशोरावस्था के बच्चों की सोच में आ रहा बदलाव भी चिंताजनक है। समय आ गया है जब ऐसे मामलों को केवल अपराध मानकर भुला न दिया जाए। समाजशास्त्रियों को भी अपनी मांद से निकलकर सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हुए इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों के फैलाव के बारे में समाज को सतर्क और शिक्षित करने आगे आना चाहिए। केवल राजनीति और सरकार के भरोसे सब छोड़ निर्विकार होकर बैठने की आदत नहीं छोड़ी गई तब इस तरह के दर्दनाक हादसे दोहराए जाते रहेंगे। केवल दंड देने मात्र से अगर अपराध मिटता होता तो निर्भया कांड के बाद देश में दुष्कर्म बन्द हो चुके होते। चित्रकूट अपहरण कांड की परिणिती जिस तरह हुई वह दिल दहला देने वाली है। ये कैसे हुआ इसकी विवेचना तो पुलिस और अदालत अपने स्तर पर कर लेंगी किन्तु ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं ये समाज के लिए भी चिंता और चिंतन का विषय होना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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