Saturday 9 March 2019

असुरक्षित रक्षा मंत्रालय चिंता का विषय

पूरे देश को ये जानकर राहत मिली होगी कि राफैल संबंधी गोपनीय दस्तावेज चोरी नहीं हुए । तीन दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय में जब अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस बारे में जानकारी दी तब न्यायाधीशों ने उनसे पूछा था कि सरकार ने इस बारे में क्या किया जिसका वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। उसके बाद पूरे देश में इसे लेकर मोदी सरकार पर उंगलियां उठने लगीं। राहुल गांधी ने तो पत्रकार वार्ता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग तक कर डाली। प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा द्वारा लगाई गई पुनर्विचार याचिका में चेन्नई के हिन्दू अखबार के उस समाचार को आधार बनाया गया जिसके अनुसार राफैल सौदे में प्रधानमंत्री कार्यालय ने हस्तक्षेप किया था। अटॉर्नी जनरल ने गोपनीय दस्तावेज प्रकाशित करने के लिए उक्त अखबार पर कार्रवाई किए जाने की बात तो कही किन्तु उसकी सत्यता को लेकर अदालत को बताया कि रक्षा मंत्रालय से वे चोरी कर लिए गए। यद्यपि अदालत ने गोपनीयता भंग किये जाने के बाद भी सन्दर्भित दस्तवेजों का संज्ञान लेने की बात कही किन्तु पूरा मामला दस्तावेजों की चोरी पर आकर केंद्रित हो गया। न्यायालय ने सरकार से इस बारे में जवाब देने कहा। जो लोग ये मानकर चलते आए हैं कि राफैल सौदे में कोई घपला नहीं हुआ वे भी दस्तावेज चोरी जाने की खबर से संशय में पड़ गए। सबसे ज्यादा चिंता इस बात की हुई कि रक्षा मंत्रालय से गोपनीय दस्तावेज गायब हो गए। इसके कारण केंद्र सरकार की क्षमता पर भी सवाल उठे। सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के संभावित उत्तर की सभी को प्रतीक्षा थी किन्तु उसके पहले ही श्री वेणुगोपाल ने स्पष्टीकरण दे दिया कि दस्तावेज चोरी नहीं हुए अपितु याचिका में उन दस्तावेजों की फोटो कॉपी संलग्न की गई थी। अटॉर्नी जनरल के इस बयान के बाद सरकार पर पलटी मारने जैसा आरोप स्वाभाविक रूप से लगा। एक झूठ छिपाने के लिए दस बोलने जैसे तंज भी कसे जा रहे हैं। इस बारे में विचारणीय मुद्दा ये है कि श्री वेणुगोपाल ने दस्तावेज चोरी होने की बात किस आधार पर कही थी? यदि ये उनके अपने दिमाग की उपज थी तब उन्हें पद से अलग कर देना चाहिए और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें वह जानकारी दी तब उनके विरुद्ध भी समुचित कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि  इस तरह की बातों से केवल सरकार की ही नहीं पूरे देश की जगहंसाई होती है। अटॉर्नी जनरल द्वारा दस्तावेज चोरी नहीं होने की बात कहकर चिंता दूर जरूर कर दी गई किन्तु एक बात तो वे भी मान रहे हैं कि याचिका के साथ पेश की गई फोटो कॉपी दस्तावेजों की ही हैं। पिछली सुनवाई के दौरान श्री भूषण ने ये कहा था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के जरिये उन्हें हासिल किया था। हालांकि उन्होंने ये स्वीकार किया कि एक दस्तावेज के स्रोत के बारे में वे अनभिज्ञ हैं। उनकी बात कितनी सही है ये तो पता नहीं चल सका किन्तु इस पूरे विवाद से एक बात निकलकर सामने आई कि रक्षा विभाग में गोपनीय दस्तावेज़ भी सुरक्षित नहीं है। जो गोपनीय है उसे सूचना के अधिकार के तहत भी उजागर नहीं किया जा सकता और यदि याचिकाकर्ता के पास उसकी फोटो कॉपी भी है तो वह कैसे आई ये जांच का विषय है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ  कह दिया है कि दस्तावेज भले चोरी से हासिल किया गया हो किन्तु उसे विचारार्थ स्वीकार किया जा सकता है। अटॉर्नी जनरल द्वारा चोरी का खंडन किये जाने के बाद भी विवाद यथावत है। हिन्दू अखबार में प्रकाशित दस्तावेज यदि गोपनीय हैं तब उस पर गोपनीयता भंग का आरोप तो लगता ही है लेकिन प्रशांत भूषण जैसे अनुभवी अधिवक्ता ने भी यदि उन का उपयोग किया तो वे भी दोषारोपण से नहीं बच सकते। दूसरी तरफ  ये भी सही हैं कि गोपनीय दस्तावेजों को सुरक्षित रखना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि वे चोरी नहीं हुए किन्तु उनकी फोटो कॉपी किसी ने करवा ली तो ये भी बड़ी चूक है। श्री वेणुगोपाल के स्पष्टीकरण का ये आशय भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने याचिका के साथ संलग्न दस्तावेजों की सत्यता को स्वीकार करने की झंझट से बचने के लिए चोरी जाने का बहाना बना दिया लेकिन इसके कारण जब सरकार की छीछालेदर होने लगी तब पलटी मार दी गई। राफैल मामले में अभी तक विपक्ष ने जो आरोप लगाए उन पर जनता को कितना भरोसा हुआ ये तो अब लोकसभा चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे किन्तु ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि सरकार की तरफ  से किये जा रहे बचाव में बचकानापन झलकने से उसे शर्मसार होना पड़ता है। चूंकि प्रधानमंत्री के बारे में अभी भी आम धारणा ये है कि वे ईमानदार हैं इसलिए राहुल गांधी द्वारा तकरीबन रोजाना राफैल की रट लगाए जाने के बाद भी श्री मोदी की छवि अक्षुण्ण है। लेकिन गोपनीयता की आड़ में जिस बात को संसद तक से छिपाया गया वह यदि अखबार की सुर्खी बन जाये और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत याचिका में भी उसका उपयोग हो गया तब सरकार की जवाबदेही तो बनती ही है। इसके पहले इसी मामले में सीएजी रिपोर्ट को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में दी गई जानकारी पर भी अटॉर्नी जनरल ने कदम वापिसी की थी। इस सौदे को लेकर सत्ता और विपक्ष दोनों को अग्निपरीक्षा देनी पड़ेगी। मोदी सरकार यदि सही है तो उसे उन संदेहों का समुचित निराकरण करना होगा जो विपक्ष और कतिपय समाचार माध्यमों द्वारा उठाये गये हैं। वहीं विपक्ष विशेष रूप से कांग्रेस भी इस मुद्दे पर इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उसके लिये पीछे हटना या चुप होना संभव नहीं रहा। यद्यपि श्री मोदी जिस आत्मविश्वास के साथ तमाम आरोपों को झुठलाते हैं उसका असर भी जनता पर पड़ता है। पाकिस्तानी हवाई हमले के बाद राफैल की कमी का मुद्दा छेड़कर उन्होंने विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने में जरा सी भी देर नहीं लगाई किन्तु पिछली सरकार से ज्यादा कीमत देने और अनिल अंबानी जैसे दिवालिया हो चुके कारोबारी को राफैल संबंधी काम दिलवाने के आरोप अभी भी हवा में तैर रहे हैं। गोपनीयता के नाम पर संयुक्त संसदीय समिति के गठन से इंकार और ज्यादा कीमत देने के औचित्य को साबित नहीं किए जाने से सरकार पर भी शक की सुई लटक रही है। अटॉर्नी जनरल के ताजा स्पष्टीकरण के बाद भले ही दस्तावेज चोरी होने के आरोप से सरकार बच गई हो किन्तु इस पूरे प्रकरण में इतना तो साफ  हो ही गया कि सरकार का बचाव करने वाली टीम या तो अनुभवहीन है या फिर उसमें आपसी सामंजस्य का अभाव है। इस विवाद से एक बात और भी उभरकर सामने आ रही है कि यदि राफैल से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों की फोटो कॉपी याचिकाकर्ताओं के पास चली गई तो और भी संवेदनशील दस्तावेज इसी तरह गैर जिम्मेदार हाथों में पड़ गए होंगे। इसलिए जरूरी है इस मामले की राजनीति से अलग हटकर जांच करवाई जाए क्योंकि ये किसी सरकार के बचाव से ज्यादा देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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