Saturday 12 October 2019

कमलनाथ: बाहर से ज्यादा खतरा भीतर से



मप्र में कांग्रेस की सरकार 15 साल बाद आई और वह भी अल्पमत वाली। यद्यपि शुरू-शुरू में उसकी स्थिरता को लेकर जो आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं वे धीरे-धीरे ठंडी पड़ गईं। मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ शासन -प्रशासन पर अपनी पकड़ बनाते जा रहे हैं। जो भाजपा नेता आये दिन सरकार गिराने की धमकी दिया करते थे वे पहले तो अपने दो विधायकों के टूटने से सनाके में आ गए और बची-खुची कसर पूरी कर दी हनी ट्रैप काण्ड ने जिसमें भाजपा के अनेक नेता लिप्त बताये जाने से पूरी पार्टी रक्षात्मक होकर रह गई। कहने वाले तो यहाँ तक कहते सुने जा सकते हैं कि श्री नाथ ने हनी ट्रैप मामले की जाँच जानबूझकर धीमी करवा दी जिससे भाजपा में घबराहट बनी रहे। शिवराज सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए कथित घोटालों की जाँच बिठाकर भी वे भाजपा पर दबाव जारी रखने का प्रयास कर रहे हैं। ताजा उदाहरण 450 करोड़ के पौधारोपण में घोटाले का आरोप लगाकर शिवराज सिंह चौहान और तत्कालीन वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार के विरुद्ध जाँच करवाए जाने का है। इस सबसे मुख्यमंत्री का आत्मविश्वास जाहिर होता है। प्रदेश में निवेशक सम्मलेन आयोजित कर वे उद्योग जगत को भी ये सन्देश देने में जुटे हैं कि उनकी सरकार स्थायी है। लेकिन इससे अलग हटकर एक दूसरा चित्र भी है जो इस बात का संकेत देता है कि प्रदेश सरकार की हालत उतनी अच्छी नहीं जितनी ऊपर से नजर आ रही है और इसकी वजह है कांग्रेस पार्टी में व्याप्त गुटबाजी। जिस तरह से बड़े नेता और उनके पिछलग्गू बयानबाजी करते हुए एक दूसरे की टांग खींचने में जुटे हुए हैं उससे लगता है कि कमलनाथ का मुख्यमंत्री बनना उनकी पार्टी के सभी गुटों को अभी तक नहीं पचा। ज्योतिरादित्य सिंधिया तो सरकार बनने के कुछ दिनों बाद से ही रूठे-रूठे चल रहे हैं। कभी वे किसानों की समस्याओं को लेकर राज्य सरकार को घेरते हैं तो कभी कर्ज माफी में देर पर उसे कठघरे में खड़ा करने में नहीं हिचकिचाते। उनके कोटे के मंत्री भी दूसरे गुटों के मंत्रियों से उलझने में नहीं डरते। श्री सिंधिया के मन की पीड़ा सर्वविदित है। प्रदेश की सत्ता हाथ से निकलने का गम वे चाहकर भी भुला नहीं पा रहे और ऊपर से लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित हार ने उनके आभामंडल को चकनाचूर करके रख दिया। कहाँ तो वे राष्ट्रीय राजनीति में ऊंची उड़ान का ख्वाब देखते फिर रहे थे और कहाँ दिल्ली में सरकारी बंगले से निकलकर निजी आवास में आने की मजबूरी से गुजरना पड़ा। राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष पद त्यागने के कारण भी ज्योतिरादित्य को झटका लगा। बीते कुछ समय से उनके जो बयान कांग्रेस की केन्द्रीय राजनीति के बारे में आये वे भी उनकी नाराजगी का संकेत हैं। लेकिन जिन दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ की ताजपोशी की राह आसान की वे भी जिस तरह की बातें कर रहे हैं उससे ये लगता है कि मुख्यमंत्री सरकार चलाने में इस बुरी तरह उलझ गये हैं कि पार्टी के भीतर सामंजस्य बनाये रखने की फुर्सत उन्हें नहीं है। स्मरणीय है अभी भी वही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं। गत दिवस राजमार्गों पर बैठी गायों को लेकर दिग्विजय सिंह द्वारा किये गये ट्वीट के जवाब में कमलनाथ के खासमखास मंत्री सज्जन सिंह वर्मा की तीखी प्रतिक्रिया और उसके बाद मुख्यमंत्री के लगातार दो-तीन ट्वीट से ये स्पष्ट हो गया कि दिग्विजय सिंह की दखलंदाजी श्री नाथ को भी नागवार गुजरने लगी है। उल्लेखनीय है कुछ समय पहले पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा विभिन्न मंत्रियों को पत्र लिखकर जवाब मांगे जाने और उनके पास आकर सरकार के कामकाज का ब्यौरा पेश करने की बात पर जबर्दस्त बवाल मचा था। उमंग सिंगार नामक एक मंत्री ने तो दिग्विजय सिंह को जिस अंदाज में जवाब दिया उससे उनकी खूब किरिकिरी भी हुई। श्री सिंगार ने यहाँ तक कह दिया कि दिग्विजय सिंह परदे के पीछे से सरकार चला रहे हैं। उनके इस बयान का कमलनाथ खेमे तक को खंडन करना पड़ा। राजनीति के जानकार बताते हैं कि उमंग सदृश युवा मंत्री द्वारा दिग्विजय जैसे बड़े नेता से जुबान लड़ाना मामूली बात नहीं थी। लेकिन मुख्यमंत्री ने उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई न करते हुए संयम रखने की समझाइश मात्र दे दी। दिग्विजय के मंत्री पुत्र जयवर्धन ने अवश्य पिता का बचाव किया लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री को पार्टी के भीतर भी वैसा समर्थन नहीं मिला जैसी उन्हें उम्मीद रही होगी। उसके बाद से उनकी वजनदारी में निश्चित रूप से कमी आई। हालांकि वे सिंधिया खेमे के साथ जुड़ते नहीं दिखे लेकिन गत दिवस गोरक्षा को लेकर उन्होंने जिस तरह का ट्वीट किया और जिस तरह से पहले सज्जन सिंह और बाद में खुद मुख्यमंत्री ने जवाब दिया उससे दिग्विजय सिंह को ये एहसास हो गया होगा कि उन्हें अपनी वरिष्ठता का गुमान छोड़ देना चाहिए। लेकिन कमलनाथ को भी एक साथ ज्योतिरादित्य और दिग्विजय दोनों से टकराना नुकसानदेह हो सकता है। हालांकि श्री सिंह के कांग्रेस विरोधी होने की कोई सम्भावना नहीं है लेकिन श्री सिंधिया जिस तरह से छटपटा रहे हैं उसे देखते हुए उनके बागी होने की अटकलें हकीकत में बदल सकती हैं। कुछ सूत्र तो अमित शाह के साथ उनकी गुप्त मुलाकात हो जाने का दावा भी कर रहे हैं। ये भी सुनने में आया है कि बड़ौदा के राजपरिवार के जरिये ज्योतिरादित्य के भाजपा प्रवेश का तानाबाना बुना जा रहा है। उल्लेखनीय है उनकी पत्नी बड़ौदा के गायकवाड़ परिवार से हैं जिसके नरेंद्र मोदी और श्री शाह से नजदीकी सम्बन्ध हैं। बहरहाल ताजा हालातों में कमलनाथ सरकार को बाहरी तौर पर कोई खतरा भले नहीं हो लेकिन उनके अपने घर में ही बगावत के चिंगारियां सुलगने लगी हैं। ज्योतिरादित्य के बाद दिग्विजय का भी खुले आम सरकार पर निशाना साधना हवा में उड़ाने लायक बात नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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