Saturday 19 October 2019

मेग्निफिसेंट मप्र. : आगे का दारोमदार नौकरशाही पर



इंदौर में संपन्न मेग्निफिसेंट  मप्र नामक निवेशक सम्मेलन में मुख्यमंत्री कमलनाथ सतही तौर पर तो कामयाब दिख रहे हैं। स्वयं औद्योगिक पृष्ठभूमि के होने से उद्योगपतियों से वे सहज रूप से संवाद कायम करने में सक्षम हैं। केंद्र सरकार में वाणिज्य मंत्री रह चुके श्री नाथ इस क्षेत्र की समस्याओं और जरूरतों से भी अच्छी तरह वाकिफ  हैं। यही वजह रही कि उनकी सरकार ने आयोजन के पूर्व ही अनेक ऐसे फैसले लिए जिनसे प्रदेश में व्यापार और उद्योगों को काम करने में आसानी हो। आवासीय कालोनियां बनाने में आने वाली अड़चनों को दूर करने के बारे में लिए गये ताजा फैसलों का आम तौर पर स्वागत हुआ है। इसके अलावा राज्य सरकार ने खनिज के क्षेत्र में रायल्टी घटाने जैसे निर्णय भी किये। इंदौर में निवेशकों को लुभाने के लिए भी मुख्यमंत्री ने अनेक ऐसे फैसलों से उन्हें अवगत करवाया जिनके कारण प्रदेश में उद्योग लगाने में आसानी होगी। जमीन होने पर किसी अनुमति की आवश्यकता खत्म करने जैसी बात मायने रखती है। सरकारी दावे के अनुसार मेग्निफिसेंट  मप्र. अपने मकसद में सफल रहा और इसके जरिये प्रदेश में जमकर पूंजी निवेश होने के साथ ही 70 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को मिलने की संभावना भी बढ़ गई। मप्र उद्योग लगाने के मामले में अत्यंत ही उपयुक्त स्थान है। बिजली, पानी, भूमि, खनिज, मौसम, भौगोलिक स्थिति, आवागमन के साधन आदि के मामले में यह प्रदेश पूरी तरह से संपन्न है। औद्योगिक उत्पादन के परिवहन का खर्च भी अपेक्षाकृत कम है क्योंकि देश के सभी इलाकों में यहाँ से आसानी से पहुंचा जा सकता है। मानव संसाधन भी भरपूर है। पर्यटन की दृष्टि से भी मप्र के सभी अंचलों में अपार संभावनाएं हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि मप्र में दूसरे राज्यों की अपेक्षा कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी है। किसी भाषा या राज्य के प्रति किसी तरह की दुर्भावना भी नहीं है। देश के सभी राज्यों के लोग यहाँ मिल जुलकर रहते हैं। मप्र की तासीर यही रही है कि जो भी यहाँ काम करने आया यहीं का होकर रह गया। बावजूद इसके प्रदेश के मालवा अंचल के अलावा औद्योगिक विकास उस मात्रा में नहीं हुआ जितना अपेक्षित और संभव था। पिछली शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने भी निवेशक सम्मलेन तो निरंतर किये लेकिन कटु सत्य यही है कि जितनी उम्मीद थी उसके मुताबिक औद्योगिक विकास नहीं हो सका। शिवराज सरकार ने उनकी पूर्ववर्ती दिग्विजय सरकार के मुकाबले मप्र को बिजली, पानी और सड़क की खस्ताहालत से निश्चित रूप से उबारा। इसके साथ ही उनके राज में सामाजिक कल्याण की योजनाओं के साथ ही कृषि क्षेत्र को भी दिल खोलकर सौगातें मिलीं लेकिन औद्योगिक विकास के मामले में प्रदेश का पिछड़ापन दूर नहीं हो सका। कमलनाथ ने सत्ता सँभालते ही औद्योगिक विकास की तरफ  ध्यान दिया और मेग्निफिसेंट  मप्र के माध्यम से निवेश प्रस्तावों को अमली जामा पहिनाने का जोरदार प्रयास किया। मुख्यमंत्री का निजी सम्पर्क इस दिशा में बहुत सहायक हो सकता है। हालाँकि देश के अग्रणी उद्योगपति अंबानी और अडानी इंदौर नहीं आये लेकिन वे भी श्री नाथ के सम्पर्क में हैं जिससे उनके द्वारा निवेश की सम्भावनाएं बनी हुई हैं। लेकिन दूसरा पहलू ये है कि निवेशक सम्मेलन भी अब औपचारिकताओं की शक्ल लेते जा रहे हैं। तकरीबन हर राज्य ऐसे आयोजन करते हुए उद्योगपतियों के लिए लाल कालीन बिछाकर उन्हें लुभाने की कोशिश करता है। केंद्र सरकार भी विदेशी निवेशकों की खुशामद करती है। हर सम्मलेन के बाद बड़े-बड़े दावे होते हैं लेकिन उस अनुपात में निवेश नहीं आता। वरना तो देश भर में उद्योगों का जाल बिछ जाता। सवाल यह है कि मप्र जैसे राज्य में तमाम अनुकूलताओं के बावजूद भी औद्योगिक विकास की गति धीमी क्यों रही ? और उसका उत्तर है यहाँ की लचर प्रशासनिक मशीनरी। मुख्यमंत्री यदि मेग्निफिसेंट  मप्र. में हुई घोषणाओं पर शत-प्रतिशत अमल चाहते हैं तब उन्हें नौकरशाही को भी कसना होगा। इस बारे में गुजरात से सीखा जा सकता है जहां निवेश की इच्छा व्यक्त करने के बाद सरकारी मशीनरी पीछे पड़ जाती है और उद्योग खुलवाकर ही चैन लेती है। दूसरी बात कमलनाथ सरकार को उद्योगों के लिए बिजली की दरें भी प्रतिस्पर्धात्मक रखनी चाहिए। जिस तरह शिवराज सरकार ने बिजली की आपूर्ति को निर्बाध बनाकर कृषि उत्पादन के क्षेत्र में मप्र को अग्रणी राज्य बनाया ठीक उसी तरह कमलनाथ को चाहिए वे उद्योगों को भी बिजली के मामले में रियायत देते हुए उन्हें संरक्षण प्रदान करें। जल , जंगल और जमीन तीनों की सम्पन्नता के बावजूद उद्योगों की कमी की वजह से मप्र देश का हृदय प्रदेश होने के बाद भी अपेक्षित प्रगति नहीं कर सका तो उसके लिए एक नहीं अनेक कारण हैं। कमलनाथ सरकार के स्थायित्व पर भले ही अनिश्चितता के बादल मंडराते रहते हों लेकिन उनकी विकास मूलक सोच और कार्यशैली की प्रशंसा विरोधी भी करते हैं। इंदौर में हुआ जमावड़ा कितना सफल होगा ये मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर करेगा क्योंकि सत्ता बदलने के बाद भी नौकरशाही नामक व्यवस्था नहीं बदलती। यदि मुख्यमंत्री इस परिपाटी को बदल सके तब मेग्निफिसेंट मप्र आयोजन अपने नाम को सार्थक सिद्ध कर सकेगा। वरना पिछले अनुभव ख़ास अच्छे नहीं रहे।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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