Thursday 31 October 2019

सोनाबंदी : असली खजाना तो नेताओं और अफसरों के पास



यद्यपि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई लेकिन छन-छनकर आ रही खबरों के अनुसार केंद्र सरकार सोने को लेकर किसी बड़े फैसले की तरफ  बढ़ रही है। आर्थिक विशेषज्ञ इसे नोटबंदी का दूसरा चरण मान रहे हैं।  जैसी कि जानकारी आ रही है उसके अनुसार एक निश्चित मात्रा के बाद उस सोने पर करारोपण करने की योजना लाई जाने वाली है जिसकी खरीदी बिना बिल के की गयी।  काले धन की तरह ही बिना बिल के खरीदे गये सोने पर टैक्स चुकाकर उसे वैध किया जा सकेगा।  इसके साथ ही घरों और न्यासों में स्वर्ण रखने की सीमा भी तय किये जाने की खबर है।  भारत को कभी सोने की चिडिय़ा कहा जाता था।  भले ही वह विशेषण छिन गया हो लेकिन अभी भी भारत दुनिया के उन देशों में है जहां सोने के प्रति जबरदस्त आकर्षण है।  गरीब से गरीब व्यक्ति तक अपनी मेहनत की कमाई में से स्वर्ण खरीदने की कोशिश करता है। शादी-ब्याह एवं अन्य मांगलिक अवसरों पर स्वर्ण आभूषण दहेज और उपहार में दिए जाते हैं। भारतीय महिलाओं में भी स्वर्ण आभूषणों का उपयोग करने की प्रवृत्ति बेहद आम है।  सम्पन्नता के प्रतीक के तौर पर सोना आज भी सबसे प्रामाणिक है। घर-परिवारों में रखे निजी सोने के अलावा देश के प्रसिद्ध मंदिरों एवं अन्य धार्मिक संस्थानों के पास अकूत स्वर्ण भण्डार है।  देश में व्यापार असंतुलन का एक बड़ा कारण पेट्रोल-डीजल के बाद स्वर्ण का आयात भी है।  पिछले केन्द्रीय बजट में सोने पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया जिससे उसके दाम बढ़ गये। उस वजह से बीते कुछ महीनों में सोने के आयात में कमी आई।  घरेलू बाजार में उसकी बिक्री भी कम हुई। हालाँकि उसके लिए आर्थिक मंदी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है किन्तु दूसरी तरफ ये भी जानकारी आ रही है कि आयात शुल्क में वृद्धि से सोने की तस्करी बढ़ गई।  इन सबसे अलग हटकर देखें तो सोने की आड़ में काला धन खपाने का जो खेल होता है वह भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत है। सबसे बड़ी बात ये है कि घर, परिवारों और धार्मिक संस्थानों के पास जो सोना है उसका देश के विकास में रत्ती भर भी योगदान नहीं है।  एक जमाना था जब स्वर्ण को निवेश और आर्थिक सुरक्षा का सबसे अच्छा साधन माना जाता था।  ये एक ऐसी धातु है जिसे दुनिया के किसी भी हिस्से में बेचा जा सकता है। और फिर इसकी कीमतों में लगातार वृद्धि भी होती रही है।  लेकिन ये भी सही है कि हमारे देश में लोगों के पास रखा सोना अर्थव्यवस्था के लिहाज से किसी काम का नहीं है।  काली कमाई से खरीदे गए सोने पर तो सरकार को किसी भी तरह का कर भी नहीं मिलता।  किसी भी देश की माली हैसियत उसके सरकारी खजाने में रखे स्वर्ण भण्डार से आंकी जाती है।  अमेरिका जैसे सबसे धनी देश के केन्द्रीय बैंक में रखे सोने से कम ही वहां की जनता के पास होगा।  और विकसित देशों में यही चलन है लेकिन भारत में रिजर्व बैंक के पास अधिकतम 600 टन सोने का ही भण्डार है जबकि देश की जनता और धार्मिक संस्थानों के पास मोटे अंदाज के मुताबिक 20 से 25 हजार टन सोना जमा है।  यद्यपि मध्यम के साथ ही निम्न आय वर्ग में जीवन स्तर उठाने की जो ललक पैदा हुई है उसमें स्वर्ण की खरीदी का आकर्षण कम न होने के बाद भी प्राथमिकताएँ बदली हैं लेकिन अभी भी स्वर्ण आयात राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए घाटे का सौदा बना हुआ है।  ऐसे में सरकार सोना रखने की मात्रा तय करने के साथ ही काले धन के तौर पर जमा सोने को वैध करने के लिए उस पर कर देने की योजना लाती है तब वह देशहित में होने के बाद भी आम जनता को कितनी रास आयेगी कहना कठिन है।  कुछ समय पहले ये चर्चा चली थी कि सरकार तिरुपति, शिर्डी के साईँ मंदिर, तिरुवनन्तपुरम के पद्मनाभ मंदिर, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर, वैष्णों देवी जैसे प्रसिद्ध धार्मिक संस्थानों के पास जमा सोने के भण्डार का अधिग्रहण कर उसका उपयोग राष्ट्रीय विकास हेतु करने वाली है। हालांकि खबर उड़ते ही उसका विरोध होने लगा।  लेकिन इस विषय में अब केवल भावनात्मक स्तर पर नहीं अपितु व्यवहारिक धरातल पर सोचने की जरूरत है। 2017-18 में रिजर्व बैंक ने तकरीबन 8 टन सोने की खरीद की थी।  लेकिन जनता और विभिन्न धार्मिक संस्थानों के पास रखा अनुपयोगी सोना यदि रिजर्व बैंक के पास आ सके और सोना रखने की सीमा तय होने से उसका आयात घट जाए तब भारतीय मुद्रा का विनिमय मूल्य भी बढ़ सकता है।  काले धन की निकासी के लिए भी घरों में दबाकर रखे गये सोने को मुख्यधारा में लाना जरूरी है।  जहां तक बात आम जनता की है तो काले धन से अर्जित सोने को जप्त करने या उस पर टैक्स लगाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इसके लिए सरकार को अपनी विश्वसनीयता साबित करनी होगी। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सुरक्षा कोष में लोगों ने स्वर्ण आभूषण दान किये थे। लेकिन बाद में पता चला कि उसमें भी घोटाला हो गया। वहीं अनेक देश ऐसे हैं जिनकी अर्थव्यवस्था डगमगाने के बाद सरकार के आह्वान पर आम जनता ने अपना सोना सरकार को दान कर दिया। मोदी सरकार ने जो गोल्ड बांड निकाला उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो उसकी वजह लोगों के मन में सरकारी योजनाओं के प्रति अविश्वास ही है।  नोटबंदी को प्रारम्भ में जो जनसमर्थन मिला था वह उस योजना के अमल में हुई अव्यवस्था की वजह से रोष में बदल गया।  यदि सरकार लोगों को भरोसे में ले तो घरों में बेकार पड़ा सोना उसके पास जमा हो सकता है लेकिन कुछ बैंकों के डूबने से आम जनता के मन में जो भय और अविश्वास जागा है उसके मद्देनजर सोने को लेकर किये जाने किसी भी निर्णय के पहले केंद्र सरकार को आगा-पीछा सोचकर कदम बढ़ाना चाहिए।  हिन्दुस्तान का जनमानस सोने के मोहपाश में जिस बुरी तरह से जकड़ा हुआ है उसे देखते हुए उसकी सोच को आसानी से नहीं बदला जा सकता।  बेहतर हो सरकार शुरुवात उन धार्मिक न्यासों से करे जिनका नियन्त्रण और प्रबंधन उसके अपने हाथ में है।  जहां तक बात काली कमाई से अर्जित सोने का खुलासा कर उस पर टैक्स वसूलने की है तो भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों से किसी भी ईमानदारी की उम्मीद करना बेकार ही है। जबकि सबसे बड़े स्वर्णभंडार पर ये तबका ही कुंडली मारकर बैठा हुआ है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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