Tuesday 15 October 2019

कश्मीर घाटी में एक अच्छी शुरुवात



जम्मू-कश्मीर में 72 दिनों के बाद पोस्ट पेड मोबाईल फोन  सेवा बहाल कर दी गयी। उससे एसएमएस भी भेजे जा सकेंगे। प्री पेड कनेक्शन पर बातचीत की सुविधा अभी रुकी रहेगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार 40 लाख मोबाईल फोनधारियों के बंद पड़े फोन चालू होने से घाटी के भीतर संचार और संवाद को लेकर व्याप्त दिक्कतें दूर हो सकेंगी। घाटी के भीतर रहने वाले आम नागरिक और बाहर रहने वाले  उनके परिजनों के बीच बीते दो माह से भी ज्यादा से कोई बातचीत नहीं हो पा रही थी। इसको लेकर न सिर्फ  वहां के नेता बल्कि घाटी के बाहर की विपक्षी पार्टियां भी सवाल उठा रही थीं। केंद्र  सरकार द्वारा जब - जब भी घाटी में हालात सामान्य होने की बात कही गयी  तब - तब ये प्रश्न भी उठा कि यदि सब कुछ ठीक ठाक है तो घाटी को मोबाईल सेवा से वंचित क्यों रखा गया है ? कश्मीर के लोगों को भी इस बात पर जबर्दस्त शिकायत थी कि उनकी आवाज को पूरी तरह से दबाकर केंद्र सरकार तानाशाही पर उतारू है। ये बात भी सही है कि ये समस्या केवल घाटी की ही थी। जम्मू और लद्दाख के लोगों ने तो अनुच्छेद 370 हटाये जाने का खुलकर समर्थन किया था इसलिए वहां सरकार को किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका नहीं थी लेकिन कश्मीर घाटी के भीतर अलगाववाद की भावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से मोबाईल ही नहीं लैंडलाइन और इन्टरनेट भी बंद कर  दिए गए।   निश्चित रूप से इससे आम जनता को भारी परेशानी हुई लेकिन देश विरोधी ताकतों के सम्पर्क सूत्र काटने का इसके अलावा और कोई  चारा भी नहीं था। वैसे भी ये पहला अवसर नहीं था जब घाटी में संचार सुविधाएं बाधित की गयी हों। आतंकवादी संगठनों के पाकिस्तान से संपर्क सर्वविदित हैं। उसे देखते हुए ये कदम नहीं उठाया गया होता तो अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में स्थिति अनियंत्रित होना स्वाभाविक था क्योंकि मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये अफवाहें फैलाने वाला तंत्र भी सक्रिय हुए बिना नहीं रहता। घाटी में छिपे बैठे आतंकवादी भी आपस में संपर्क करते हुए लोगों को भड़काने का काम कर सकते थे। उस लिहाज से केंद्र सरकार द्वारा समय रहते जो सख्त फैसला लिया वह कारगर रहा। भले ही कोई कुछ भी कहे लेकिन घाटी में बीते दो महीने के दौरान यदि हालात नियंत्रण में रहे तो उसमें सुरक्षा बलों की तैनाती के अलावा संचार सुविधाएं ठप कर देने का भी बड़ा योगदान रहा। हालांकि दूरस्थ क्षेत्रों में भले ही छोटी-छोटी घटनाएं हुईं लेकिन कहीं भी बलप्रयोग की नौबत नहीं आई। इस दौरान किसी की जान भी नहीं  गयी जो उल्लेखनीय है। अभी तक की स्थिति का आकलन करने के बाद केंद्र सरकार ने पहले पर्यटकों की आवाजाही पर लगी रोक हटाई और उसके बाद पोस्ट पेड मोबाईल सेवा भी शुरू करवा दी। इससे लगता है कि सरकार को ये भरोसा हो गया है कि घाटी में हालात पूरी तरह से काबू में हैं  और आतंकवादी नेटवर्क पूरी तरह से छिन्न - भिन्न हो चुका है। हुर्रियत सहित तमाम राजनीतिक नेताओं के नजरबन्द रहने से अलगाववादी गतिविधियां भी ठंडी हैं। घाटी में सर्दियों की   दस्तक शुरू हो चुकी है। ऐसे में वहां जनजीवन सामान्य करने की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया ये कदम शुरुवात हो सकती है। जम्मू-कश्मीर का विधिवत विभाजन भी होने को है। उस हेतु प्रशासनिक व्यवस्था भी तदनुसार बदलेगी। इसलिए भी संचार सुविधाएं चरणों में बहाल करने की जरूरत महसूस की गयी  होगी। लेकिन ये घाटी  की जनता के व्यवहार पर निर्भर  होगा कि प्रतिबंधों को और शिथिल किया जाए अथवा नहीं। घाटी को पूरी तरह सामान्य मान लेना जल्दबाजी होगी। ज्योंहीं लोगों के बीच सम्पर्क कायम होगा परदे के पीछे छिपे भारत विरोधी तत्व अपनी  हरकतों से बाज नहीं आयंगे। बेहतर होगा जो लोग अमनपसंद हैं वे थोड़ी हिम्मत और समझदारी दिखाते हुए सरकार द्वारा सामान्य स्थिति बहाली के लिए उठाये जा रहे कदमों को सार्थक बनाने में मदद करें। क्योंकि यदि इस छूट का दुरूपयोग हुआ और अलगाववादी तत्वों ने इसका लाभ लेकर घाटी में अशांति फैलाने की कोशिश की तो फिर केंद्र सरकार के पास दोबारा रोक लगाने का विकल्प ही बच रहेगा और उस सूरत में घाटी  के लोगों के प्रति जो थोड़ी सी सहानुभूति है वह भी जाती रहेगी। कश्मीर के चंद लोग और उनके सरपरस्त चाहे कितना भी जोर लगा लें लेकिन कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापिसी अब नामुमकिन है। केंद्र शासित हो जाने से जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार का प्रशासनिक नियंत्रण पूरी तरह से कायम हो चुका है और आगे भी रहेगा। नौकरशाही में बैठे भारत विरोधी मानसिकता के लोगों को भी अब पहले जैसी आजादी नहीं रहेगी। पुलिस भी अलगाववादी संगठनों के प्रति पूर्ववत उदारता नहीं दिखा सकेगी। केंद्र सरकार ने बीते दो माह में जिस तरह की मोर्चेबंदी की उससे घाटी में ये एहसास तो मजबूत हुआ है कि केंद्र सरकार मजबूत इरादों के साथ काम कर रही है। यदि घाटी  के आम लोग इस अवसर का लाभ लेकर भारत विरोधी भावनाएं फैलाने वालों को उपेक्षित करना शुरू कर दें तब इस राज्य के विकास की गति तेज होते देर नहीं लगेगी। वरना घाटी आगे भी आग में जलती रहेगी और लोग सस्ते में मारे जाते रहेंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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