Monday 14 October 2019

आयुष्मान योजना को बीमार होने से बचाना जरूरी



सरकार द्वारा जनता के हित में बनाई जाने वाली अच्छी नीतियों का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं होने की वजह से एक तो उनका मकसद पूरा नहीं होता और दूसरे वे भ्रष्टाचार के मकडज़ाल में फंकर रह जाती हैं। इन्हीं में से एक है प्रधानमन्त्री द्वारा देश के लगभग 55 करोड़ ऐसे लोगों के लिए पांच लाख तक की चिकित्सा निशुल्क प्रदान करने प्रारम्भ की गयी आयुष्मान योजना, जो इलाज का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। चूंकि सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त क्षमता है और न ही अपेक्षित सुविधाएं इसलिए निजी अस्पतालों में इलाज करवाने पर भी आयुष्मान योजना का लाभ प्रदान कर दिया गया। इस निर्णय में सरकार की नेकनीयती साफ झलकती है लेकिन इस सुविधा का लाभ साधनहीन मरीज को कितना मिल रहा है उससे ज्यादा सवाल इस बात का उठ खड़ा हुआ कि इसकी आड़ में निजी अस्पतालों ने कितनी लूट मचानी शुरू कर दी। हाल ही में छत्तीसगढ़ से खबर आई थी कि एक निजी अस्पताल ने साल भर के भीतर लगभग 300 रीढ़ की हड्डी के जटिल आपरेशन कर डाले। मप्र सरकार द्वारा संचालित इसी तरह की स्वास्थ्य योजना में निजी अस्पतालों द्वारा की गयी लूटमार सर्वविदित है। इस लिहाज से आज आई उस खबर ने ध्यान आकर्षित किया कि आयुष्मान योजना का लाभ घर के ही नजदीक उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से छोटे और मझोले शहरों में आधुनिक निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करते हुए 100 बिस्तरों की क्षमता वाले 1000 नये अस्पाताल खोले जाएंगे। सरकारी अस्पतालों की कमी के मद्देनजर इस तरह की योजना स्वागतयोग्य है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि निजी क्षेत्र की चिकित्सा सेवा में सेवा भाव तो लगभग खत्म हो चुका है और वे भी पूंजी के खेल में लिप्त होकर मुनाफा कमाने के लिए किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार हैं। सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली चिकित्सा सुविधा भी जबसे निजी अस्पतालों में भी शुरू की गई तबसे एक चिकित्सा माफिया पूरे देश में पनप गया। दवाईयां बनाने वाली कम्पनियां भीं इसमें शामिल हो गयीं। पेथालोजी, स्केनिंग, एमआरआई जैसी जांच में भी कमीशनबाजी का खेल चल पड़ा। निजी मेडिकल कालेजों से पढ़कर डाक्टर बने युवाओं के मन में पहले दिन से ही अपनी पढ़ाई पर हुए मोटे खर्च की चक्रवृद्धि ब्याज दर से वसूली की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। इन परिस्थतियों में सरकार को आयुष्मान योजना के अंतर्गत निजी अस्पतालों को अधिकार देने के साथ ये भी देखना होगा कि इस व्यवस्था से वह आम आदमी ज्यादा लाभान्वित हो जिसके लिए सरकार करोड़ों रूपये खर्च करने के लिए तत्पर है न कि कमाई का अड्डा बन चुके निजी अस्पताल। आयुष्मान योजना निश्चित रूप से एक क्रांतिकारी निर्णय है जिसके लिए नरेंद्र मोदी प्रशंसा के हकदार है। किसी साधनहीन इन्सान को बिना स्वास्थ्य बीमा करवाए यदि पांच लाख तक का इलाज सरकारी खर्चे पर मिल जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी? देश में सरकारी कर्मचारियों को तो इलाज के सुविधा है। सांसद और विधायक तो आधुनिक सामंत हैं सो उनके लिए तो देश ही नहीं विदेश तक में इलाज का इंतजाम हो जाता है। आर्थिक दृष्टि से संपन्न लोग स्वास्थ्य बीमा करवाकर खुद को सुरक्षित कर लेते हैं लेकिन करोड़ों ऐसे लोग हैं जिनके पास डाक्टर की फीस देने तक के पैसे नहीं होते, जांच और दवाई तो बहुत बड़ी बात है। ऐसे लोगों के लिए ही आयुष्मान योजना वरदान बनकर आई लेकिन जैसा दिख रहा है उसके मुताबिक तो इसका हाल भी पहले जैसा हो रहा है। दिक्कत ये है कि सरकार के पास न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही संसाधन। दोनों हैं तो डाक्टरों का अभाव है। यही वजह है कि निजी अस्पतालों का जाल फैलता गया। छोटे और मझोले शहरों, कस्बों, गांवों में जाकर सेवा करने की भावना नई पीढ़ी के चिकित्सकों में लुप्तप्राय होते जाने से निजी चिकित्सा सेवाओं का भी शहरीकरण होता चला गया। आजादी के सात दशक बाद भी जबलपुर जैसे बड़े शहरों में रहने वालों को यदि बेहतर चिकित्सा हेतु दिल्ली, मुम्बई या अन्य किसी महानगर में जाना पड़ता है तो ये विचारणीय से ज्यादा शर्म का विषय है। आयुष्मान योजना जिस वर्ग के लिए शुरू की गयी वह शैक्षणिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टि से पीछे होने से उसकी आड़ में निजी अस्पतालों द्वारा की जाने वाली लूटखसोट से अनभिज्ञ रहता है। जिसका निजी अस्पाताल संचालक बेजा लाभ उठाते हैं। चूंकि इन अस्पतालों का संचालन अब केवल चिकित्सक नहीं बल्कि नेता, बिल्डर, उद्योगपति करने लगे हैं इसलिए यह सेवा पूरी तरह से व्यवसाय बनकर रह गई है। आयुष्मान योजना के विस्तार की बात बहुत ही नेक विचार है लेकिन उसे निजी अस्पतालों के हाथ सौंपने के खतरों से भी सरकार को सतर्क रहना होगा। जिस तरह बादलों से निकला वर्षा का जल पूरी तरह शुद्ध होता है। लेकिन पृथ्वी पर उतरने के बाद वह प्रदूषित होता जाता है ठीक वही हाल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का होता है। लेकिन आयुष्मान योजना का सम्बन्ध चूंकि मानव जीवन की रक्षा से है इसलिए इस बारे में विशेष चिंता की जानी चाहिए कि जनता की बीमारी का इलाज करने वाली योजना ही कहीं बीमार होकर न रह जाए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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