Wednesday 30 October 2019

कश्मीर : अब तो कोई भी जा सकता है



कश्मीर घाटी में यूरोपीय यूनियन के सांसदों के दौरे को लेकर राजनीतिक बवाल मचना स्वाभाविक है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के साथ ही भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इस पर सवाल उठाया है। मुख्य आपत्ति इस बात पर है कि भारतीय सांसदों को वहां जाने से रोकने के बाद विदेशी सांसदों को घाटी में ले जाए जाने से गलत सन्देश गया है। इसे भारतीय संसद का अपमान भी बताया जा रहा है। दूसरी तरफ  सरकार की ओर से अधिकृत तौर पर तो कुछ खास नहीं कहा गया लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस यात्रा के जरिये भारत ने पश्चिमी ताकतों को विश्वास में लेकर पाकिस्तान को पूरी तरह अलग-थलग करने का दांव चला है। जिसके बाद इमरान खान पर भी ये दबाव बन गया है कि वे अपने कब्जे वाले कश्मीर में भी विदेशी सांसदों को हालात का जायजा लेने की सुविधा प्रदान करें। सरकार की तरफ  से ये भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी के साथ गए विपक्षी सांसदों को जब कश्मीर में जाने से रोका गया उस समय तक वहां हालात असमान्य थे और पर्यटकों तक पर प्रतिबंध लगा था। लेकिन मोबाइल सेवा बहाल किये जाने और पर्यटकों के लिए घाटी के दरवाजे खोले जाते ही वहां आवक-जावक शुरू हो गयी। उसके पहले भी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को घाटी में जाने की अनुमति सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी थी। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी वहां हो आये थे। केन्द्र सरकार इसे कूटनीतिक हितों की खातिर उठाया कदम बताकर उसकी सार्थकता साबित कर रही है। ध्यान देने योग्य बात ये है कि घाटी में संचार सुविधा बहाल हो जाने के बाद जनता की तरफ  से तो किसी भी प्रकार की उग्र प्रतिक्रिया तो सामने नहीं आई लेकिन दो महीने से भी ज्यादा से बिल में छिपे आतंकवादी जरुर बाहर निकलकर अपनी कारस्तानी दिखाने लगे। सुरक्षा बलों पर हमले के साथ ही सेब लाने के लिए गए ट्रक ड्रायवरों की हत्या जैसे कदमों से दहशत फैलाने का प्रयास भी किया जा रहा है। गत दिवस जब विदेशी सांसदों का दल श्रीनगर में ही था तभी घाटी के कुलगाम में बंगाल से आकर वहां कार्यरत 6 मजदूरों की हत्या कर दी गयी। घाटी के सेब उत्पादकों को आर्थिक सहायता देने के लिए सरकार ने उनकी खरीदी भी की। लेकिन सेब की पेटियों को देश के दूसरे हिस्सों में भेजने के लिए आये ट्रकों के ड्रायवरों की हत्या के बाद से ट्रक वाले घाटी के भीतरी हिस्सों में घुसने से डरने लगे। कुछ शिक्षण संस्थानों के निकट भी विस्फोट किये गये हैं जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों को भयभीत करना है ताकि वे शाला न आ सकें। पाकिस्तान द्वारा सीमा पर भी आये दिन युद्धविराम का उल्लंघन भी किया जा रहा है। विदेशी सांसदों को घाटी में सैन्य और सिविल दोनों अधिकारियों ने स्थिति से अवगत कराते हुए बताया कि पाकिस्तान बौखलाहट में किस तरह से सीमा पर हमले कर रहा है। वहीं संचार सुविधाएँ बहाल होते ही आतंकवादी वारदातों में भी तेजी आने लगी। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाये जाने के विरोध में घाटी के भीतर जनता की ओर से किसी बड़े प्रतिरोध का समाचार नहीं मिला। हालात सामान्य हो चले हैं और वहां जाने वाले सुरक्षित हैं इस बात की गारंटी तो फिलहाल नहीं दी जा सकती लेकिन ये बात जरूर है कि यूरोपीय सांसदों के घाटी में दौरे के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार की हवा जरूर निकलेगी और पाक अधिकृत कश्मीर के साथ बलूचिस्तान में भी विदेशी पर्यवेक्षकों के दौरों का दबाव बनेगा। जहां तक बात भारत के विपक्षी सांसदों को रोके जाने की थी तो जिस समय वे वहां जाने की जिद कर रहे थे, वह बेहद संवेदनशील था। चूँकि वे सभी अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध कर रहे थे, उस वजह से उनके वहां जाने से अलगाववादी आवाजों को बल मिलता। श्री आजाद को घाटी में जाने की अनुमति दिए जाने के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक गतिविधयां नहीं करने की बंदिश इसीलिए लगाई। इसी तरह की हिदायत श्री येचुरी को भी दी गईं थी। और फिर जब से घाटी में पर्यटकों के जाने पर लगी रोक हटी है तबसे एक भी विपक्षी सांसद या विपक्षी प्रतिनिधिमंडल ने वहां जाने की पहल नहीं की। ये बात भी काबिले गौर है कि विपक्ष के नेताओं ने जम्मू और लद्दाख का दौरा कर वहां की जनता का मन टटोलने की कोशिश नहीं की। दो दिन बाद 1 नवम्बर से जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से केंद्र शासित राज्य बन जाएगा। उसके बाद वहां का शासन और प्रशासन स्थायी तौर पर केंद्र के नियन्त्रण में आ जाएगा। निकट भविष्य में वहां विधानसभा चुनाव भी होना हैं। भले ही घाटी में हालात को पूरी तरह सामान्य नहीं कहा जा सके लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि वहां की जनता और अलगाववादी दोनों की समझ में आ चुका है कि अब वे चाहें जो कर लें लेकिन 5 अगस्त के पहले की स्थिति लौटना तो संभव नहीं है। जब केंद्र सरकार को भी ये भरोसा हो गया कि घाटी में हालात पूरी तरह से उसके नियन्त्रण में हैं तब उसने विदेशी सांसदों को घाटी में जाने की अनुमति और सहूलियत दी। वहां जाने से पहले उनका दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना ये दर्शाता है कि इस दौरे के पीछे उच्चस्तरीय कूटनीतिक योजना है। इसे लेकर विपक्ष की आपत्ति अस्वाभाविक कतई नहीं है। डा. स्वामी ने भी जो कहा उस पर भी सरकार को जवाब देना होगा। लेकिन जहां तक कुछ लोगों द्वारा कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण किये जाने का आरोप है तो जैसी कि जानकारी मिल रही है उसके अनुसार पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी विदेशी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल कश्मीर का जायजा लेने आये थे। श्री मोदी के सऊदी अरब जाने लेकिन टर्की जाने का कार्यक्रम रद्द किये जाने के भी कूटनीतिक निहितार्थ हैं। बहरहाल एक खतरा जरुर है कि घाटी का दौरा करने के बाद एक भी विदेशी सांसद ने यदि केंद्र सरकार की कश्मीर नीति के विरोध में कुछ कह या लिख दिया तब जरुर विपक्ष को प्रधानमन्त्री पर चढ़ाई करने का मौका मिल जाएगा। लोकसभा के शीतकालीन सत्र में विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेर सकता है लेकिन अनुच्छेद 370 हटाये जाने का विरोध करने की वजह से उसकी साख घटी है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह विपक्षी सांसदों के दल को भी कश्मीर घाटी का अवलोकन करने का आमंत्रण दे जिससे उनके मन में व्याप्त असंतोष दूर हो सके।

-रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment