Saturday 26 October 2019

अपयश : अटल जी भले डरते थे पर आज की भाजपा नहीं



चुनाव परिणाम के दिन पूरी तरह से रक्षात्मक नजर आ रही भाजपा कल पूरे दिन अग्रिम मोर्चे पर डटी रही और रात होते तक हरियाणा की बाजी अपने पक्ष में कर ली। यद्यपि परसों रात में ही आधा दर्जन निर्दलियों का समर्थन मिलने से उसकी सरकार बनने के आसार बन गए थे लेकिन उस मुहिम की अगुआई गोपाल कांडा नामक जिस विधायक ने की उसका अपराधिक अतीत भाजपा के गले में फंस गया। कांग्रेस तो वैसे भी कांडा के विरोध में बोलने का नैतिक अधिकार नहीं रखती थी क्योंकि वह भूपिंदर सिंह हुड्डा की सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुका था। एक युवती का यौन शोषण करने का आरोप उस पर था जिसने आत्महत्या कर ली थी। तब भाजपा ने कांडा को मंत्री पद से हटाने के लिए जबरदस्त आन्दोलन किया था। बाद में उसे जेल भी जाना पड़ा। इस बार वह सिरसा से जीतकर आ गया। चुनाव नतीजे आने के बाद वही निर्दलीय विधायकों को बटोरकर निजी विमान से दिल्ली लाया और उनसे भाजपा को समर्थन देने का वायदा करवा दिया। अभी तक ये साफ नहीं हो सका है कि भाजपा ने इस उपकार के एवज में कांडा को मंत्री पद का प्रस्ताव दिया था या नहीं लेकिन इसके पहले कोई दूसरा विरोध करता पूर्व केन्द्रीय मंत्री साध्वी उमाश्री भारती ने ताबड़तोड़ ट्वीट करते हुए कांडा के समर्थन को नैतिक मापदंडों पर अनुचित करार दिया। उसके बाद सोशल मीडिया के साथ टीवी चैनलों ने भी कांडा के पुराने कांडों को उछालना शुरू कर दिया। उसके कारण भाजपा को वैसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा जैसा कुछ बरस पहले उप्र के बाहुबली नेता डीपी यादव के भाजपा प्रवेश के समय उत्पन्न हुई थी। पार्टी विथ डिफरेंस के दावे की चौतरफा फजीहत के बाद भाजपा ने सुबह पार्टी में आये डीपी यादव को शाम तक बाहर का रास्ता दिखा दिया। कल भी ऐसा ही हुआ लेकिन उल्लेखनीय बात ये रही कि कांडा के विरोध में पहला मोर्चा उमाश्री ने खोलकर दूसरों को और तेज आवाज में बोलने का हौसला दे दिया। दूसरी तरफ कांडा अपने आपको दूध का धुला साबित करने के लिए रास्वसंघ से अपने परिवार के पुराने संबंधों का हवाला देने लगा। हो सकता था बदनामी से बचने के लिए भाजपा उसे पीछे रखकर शेष छह निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाने के लिए आगे बढ़ जाती लेकिन उसकी खुशकिस्मती रही जो वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला को पटा लिया। हालांकि इसमें अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा जिनके चौटाला परिवार से पुराना सम्बन्ध हंै। बादल साहब का इस परिवार के शीर्ष रहे स्व. देवीलाल के साथ भाई जैसा रिश्ता था। दुष्यंत को ये भी लगा होगा कि निर्दलियों के समर्थन से खट्टर सरकार बन जाने के बाद उनके पास विपक्ष में बैठने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं बचेगा। उस पर भी मुख्य विपक्षी दल का दर्जा तो कांग्रेस के पास ही होगा। इससे भी बढ़कर दुष्यंत को इस बात का डर भी सताने लगा कि सत्ता में आने के बाद भाजपा कहीं उनके विधायक ही न तोड़ ले। यूँ भी जेजेपी के विधायकों में दूसरी पार्टियों से आये असंतुष्ट भी हैं। इसलिए उनका टूटकर चला जाना बड़ी बात नहीं होती। रात तक ज्योंही अमित शाह की मौजूदगी में दुष्यंत और भाजपा के गठबंधन की घोषणा हुई त्योंही कांडा को लेकर चल रही चर्चा कुछ कमजोर पड़ गयी। ये भी खबर आ रही है कि बाकी निर्दलीय भी बजाय विपक्ष में बैठने के सत्ता के साथ चिपके रहने में ही अपनी भलाई समझेंगे। इस प्रकार खट्टर सरकार के पास भारी बहुमत का जुगाड़ हो गया। आज की भारतीय राजनीति में इस तरह का घटनाक्रम नई बात नहीं है। कांग्रेस भी यदि सरकार बनाने में कामयाब होती तब उसे भी दुष्यंत के अलावा कांडा सहित अन्य निर्दलियों का साथ लेना पड़ता। श्री हुड्डा ने तो अपनी सरकार में कांडा को गृह राज्य मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद दिया ही था। लेकिन भाजपा जब भी ऐसी कोशिश करती है तब न केवल उसके विरोधी अपितु समर्थक भी गुस्से से भर उठते हैं। संभवत: उमाश्री सामने नहीं आतीं तब बाकी लोग भी चुपचाप रहते। ये भी हो सकता है सत्ता से बाहर रहने के कारण उन्होंने ये दुस्साहस कर लिया। लेकिन कुल मिलाकर ये मान लेना गलत नहीं होगा कि भाजपा की छवि पहले जैसी नहीं रही। भले ही वह अब कांडा से अपना पिंड छुडा ले लेकिन उसके एक नेता का ये बयान पार्टी के चारित्रिक बदलाव का प्रमाण है कि हम किसी अपराधी से नहीं एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि से सहयोग ले रहे थे। उमाश्री ने अपने ट्वीट में भी इसी बात को उठाते हुए लिखा था कि चुनाव जीत जाने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। हरियाणा में दुष्यंत से समझौता कर भाजपा भले ही कांडा काण्ड से हुई बदनामी से तात्कालिक रूप से बच गयी लेकिन इससे ये उजागर हो गया कि गलत तरीके से सत्ता हासिल करने में उसे कोई परहेज नहीं रहा। 13 दिन की अपनी सरकार के विश्वास मत पर बोलते हुए स्व. अटल जी ने भगवान राम को उद्धृत करते हुए कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता किन्तु अपयश से डरता हूँ। अनैतिक तरीकों से मिली सत्ता को उन्होंने चिमटे से भी न छूने जैसी बात भी कही थी। लेकिन आज की भाजपा अपयश से नहीं डरती।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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