Wednesday 9 October 2019

बाजार में मंदी की मार : ऑनलाइन गुले-गुलजार



भारत में दशहरा और दीपावली त्यौहारी मौसम के तौर पर जाने जाते हैं। यूँ तो हमारे यहाँ हर अंचल में सांस्कृतिक विविधता है लेकिन दशहरा और दीपावली पर पूरे देश में हर्षोल्लास का वातावरण बन जाता है।  वर्षा ऋतु की औपचारिक विदाई के बाद चार महीनों से ठहरी जि़न्दगी पटरी पर लौट आती है। मौसम खुशनुमा होते ही लोगों का मन भी उमंग और उत्साह से भर उठता है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है आर्थिक कारोबार अर्थात बाजार पर। नवरात्रि प्रारम्भ होते ही बाजारों में खरीददारी शुरू होने लगती है। दीपावली के पश्चात ही चूँकि शादी-विवाह के मुहूर्त निकलने लगते हैं इसलिए उसका असर भी बाजार पर पड़ता है। लेकिन इस वर्ष त्यौहार का मौसम आने के बावजूद भी बाजार में वह चहलपहल नहीं दिखाई दे रही जिसका व्यापारी वर्ग पूरे साल इन्तजार किया करते हैं। इसकी वजह आर्थिक मंदी बताई जा रही है जिसकी शुरुवात यूँ तो कई सालों पहले हो चुकी थी लेकिन जैसा आम तौर पर मान लिया गया है उसके अनुसार 2016 में हुई नोटबन्दी और उसके बाद 2017 में लागू हुए जीएसटी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से अस्त व्यस्त कर दिया। शुरू-शुरू में कहा गया कि ये प्रसव पीड़ा जैसा है लेकिन अभी तक जो हालात बने हुए हैं उनमें कोई भी ये बता पाने की स्थिति में नहीं है कि मंदी या सरकारी शब्दावली के अनुसार कारोबारी सुस्ती आखिर कब तक चलेगी। चूंकि इस वर्ष तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए मानसूनी वर्षा काफी जोरदार रही इसलिए कृषि क्षेत्र से अच्छी खबरें आने की उम्मीदें होने से बाजार में भी आशा का संचार तो हुआ है किंतु यहाँ भी विरोधाभास पीछा नहीं छोड़ रहा। जैसी कि जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक देश में पेट्रोल और डीजल के बाद सबसे ज्यादा आयातित होने वाले सोने का कारोबार इस साल आश्चर्यजनक रूप से कमजोर रहना तय है। दीपावली के दस दिन पहले धनतेरस पर सोने की रिकार्ड खरीदी होती रही है लेकिन इस साल उसका आंकड़ा भी 50 फीसदी नीचे आ जायेगा। बीते साल तक के आंकड़ों के मुताबिक धनतेरस पर देश भर में 40 टन सोने की बिक्री होती थी लेकिन इस साल इसका आधा भी बिक जाए तो बड़ी बात होगी।  सितम्बर के महीने में कुल 26 टन स्वर्ण का आयात हुआ जबकि गत वर्ष इसी दौरान लगभग 82 टन सोना विदेशों से खरीदा गया था। यद्यपि कुछ लिहाज से ये एक अच्छा लक्षण भी है क्योंकि सोने के आयात के लिए उपयोग होने वाली विदेशी मुद्रा के कारण रूपये का विनिमय मूल्य गिरता है।  व्यापार असंतुलन की एक बड़ी वजह सोना भी है।  हालाँकि स्वर्ण आभूषण बनाने वाले लाखों कारीगर भी इससे प्रभावित होंगे। बावजूद इसके यदि देश में सोने की मांग घटती है तो उसका दूरगामी असर अच्छा ही होगा क्योंकि उसके भंडारण से अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं होता।  लेकिन अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के कारोबार में मांग कम होने से बुरा असर पड़ता है। बीते काफी समय से बाजारों में जिस तरह की मुर्दानगी देखी जा रही है उसकी वजह से भय का महौल बन गया है। वाहनों की बिक्री में गिरावट को उच्च और मध्यम वर्गीय आय समूह से जुड़ा हुआ मानकर भले ही उपेक्षित कर दिया जाए लेकिन रोजमर्रे की चीजों की बिक्री में आई कमी से मंदी की पुष्टि की जा सकती है। आज ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की अध्यक्ष ने भी विश्वव्यापी मंदी को स्वीकार करते हुए कहा कि इस साल की वैश्विक विकास दर भी घटना तय है। हालाँकि वे भी दबी जुबान इसे अमेरिका और चीन के बीच चले ट्रेड वार का नतीजा बताती हैं लेकिन मंदी भी अर्थव्यस्था का एक चक्र माना जाता है और उस लिहाज से ये एक स्वाभाविक परिस्थिति है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में मंदी का असर कम हो सकता था बशर्ते हमारा घरेलू उत्पादन ज्यादा होता। लेकिन बीते कुछ सालों में चीन से हुआ बेतहाशा आयात ने भारतीय उत्पादकों को बहुत नुकसान पहुँचाया। उसे लेकर तरह-तरह की बहस और विश्लेष्ण होता रहा है। बीते दो साल में भारतीय उत्पादन इकाइयां मरणासन्न हालात में पहुँच गईं। इन सब कारणों से त्यौहारी बाजार ठंडा रहने के आसार और मजबूत होते जा रहे थे किन्त्तु इसके ठीक विपरीत ऑनलाइन कारोबार करने वाली दो प्रमुख कंपनियों ने बीते एक सप्ताह में ही 18 हजार करोड़ की बिक्री कर डाली और उन्हें उम्मीद है दीपावली तक ये आंकड़ा 42 हजार करोड़ तक जा पहुंचेगा। ये गत वर्ष की अपेक्षा 30 फीसदी ज्यादा होगा। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक ये स्थिति दर्शाती है कि उपभोक्ता बेहतर मुनाफे के लिए इन कम्पनियों की तरफ  झुक रहा है जो उसे ज्यादा से ज्यादा रियायत देकर परम्परागत बाजार का हिस्सा अपने नाम करती जा रही हैं। बाजार में मंदी और ऑनलाइन कारोबार में रौनक का ये परस्पर विपरीत चित्र भ्रम की स्थिति को भी जन्म दे रहा है। इसका ये भी संकेत है कि भारत के बड़े उपभोक्ता बाजार को लुभाने की लिए व्यापारी समुदाय को भी नई रणनीति के साथ आगे आना होगा। दुकानदार और ग्राहक के पुश्तैनी सम्बन्धों का दौर धीरे-धीरे गुजरे जमाने की बात होता जा रहा है।  यहाँ तक कि स्वर्ण आभूषण खरीदने वाले ग्राहक भी अब सराफे की बजाय ब्रांडेड कम्पनी को प्राथमिकता देने लगे हैं। उस दृष्टि से देखें तो हर मुसीबत कुछ न कुछ सिखाती है। मंदी का ये दौर भारत के व्यापारिक ढांचे को कितना बदलता है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि ऑनलाइन कारोबार का केवल विरोध करने से काम नहीं चलेगा। उसका मुकाबला करने के लिए व्यापार जगत को भी नई रणनीति पर काम करना होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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