Thursday 17 October 2019

जिसका सबको था इन्तजार वो घड़ी आ रही है



अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल के स्वामित्व को लेकर चल रहे विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।  गत दिवस मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बहस करने के लिए और समय देने से मना करते हुए सायंकाल पांच बजे सुनवाई बंद कर दी।  उल्लेखनीय है श्री गोगोई आगामी 17 नवम्बर को सेवा निवृत्त होने वाले हैं।  उसी के मद्देनजर उन्होंने पहले ही कह दिया था कि वे 16 अक्टूबर के आगे बहस की अनुमति नहीं देंगे।  उनके कड़े रुख का असर भी हुआ वरना किसी प्रकरण को हनुमान जी की पूंछ की तरह लम्बा करने में वकीलों को महारत हासिल होती है।  इस मुकदमे में यूँ तो दशकों से तरह-तरह के तर्क और तथ्य सामने आते रहे लेकिन बीते कुछ दिनों में जिस तरह की जानकारी अदालत में दोनों पक्षों द्वारा पेश की गयी उसमें अनेक ऐसी बातें पता चलीं जिनसे लोग अनजान थे।  इस दौरान इतिहास के अनेक अनछुए पन्ने भी खोले गए।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर भी काफी बहस हुई।  जिसके अनुसार विवादित स्थल पर की गयी खुदाई में मिले अवशेष इस दावे को प्रमाणित करते हैं कि विवादित बाबरी ढांचा पहले से बने किसी धर्मस्थल को तोड़कर बनाया गया था।  हिन्दुओं का दावा है कि जो अवशेष मिले वे हिन्दू मन्दिर के थे जबकि मुसलमानों की तरफ से उसका खंडन किया जाता रहा।  इस मुकदमे में इतिहास को लेकर जितनी बातें सामने लाई गईं उनके आधार पर अनेक शोध प्रबंध लिखे जा सकते हैं।  अदालत का फैसला क्या होगा ये तो कोई भी बताने की स्थिति में नहीं है लेकिन किसी भी तरह की अप्रत्याशित घटना नहीं हुई तब श्री गोगोई जाते-जाते इस अत्यंत लंबे विवाद का कानूनी हल कर जायेंगे।  सबसे महत्वपूर्ण बात इस दौरान ये रही कि इस मुद्दे पर सड़कों पर होने वाली राजनीति पर काफी हद तक विराम लग गया। यद्यपि बयानबाजी बदस्तूर जारी रही। उस पर भी प्रधानमंत्री ने जब नाराजगी व्यक्त की तब जाकर कुछ रोक लगी। सर्वोच्च न्यायालय ने पूरा मामला अपने हाथ में लेने के पहले मध्यस्थता पैनल बनाकर आपसी समझौते का मौका भी दिया लेकिन उसका परिणाम शून्य ही रहा। हालांकि गत दिवस मुस्लिम वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित भूमि पर दावा छोडऩे की खबर भी उड़ी किन्तु उसकी न तो विधिवत पुष्टि हुई और न ही खंडन । उस कारण थोड़ी सी अनिश्चितता भी बनी लेकिन अब ये मान लेना ही सही होगा कि अन्तत: सर्वोच्च न्यायालय को ही फैसला करना पड़ेगा क्योंकि दोनों समुदायों के धार्मिक संगठनों के बीच सुलह होने के बाद भी मतभेद की गुंजाइश बनी रहेगी । इस सम्बंध में पहले संकेत आए थे कि श्री गोगोई सेवा निवृत्ति के कुछ दिन पहले ही निर्णय कर पाएंगे क्योंकि जैसा वे खुद कह चुके थे कि सुनवाई के बाद इतनी जल्दी फैसला लिखवाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा । लेकिन बीते दो - तीन दिनों से ये सुनने में आ रहा है कि नवम्बर के पहले सप्ताह में ही सर्वोच्च न्यायालय अपना निर्णय दे देगा । उप्र सरकार ने 30 नवम्बर तक सभी वरिष्ठ अधिकारियों की छुट्टियां रद्द करते हुए न्यायालयीन निर्णय के बाद किसी बवाल की आशंका के पूर्वाभास में अयोध्या में सुरक्षा प्रबंध कड़े कर दिए हैं । इस मामले में एक बात जो सबसे अधिक प्रशंसा योग्य है वह है मुस्लिम समाज के अनेक वर्गों द्वारा मंदिर के दावे को स्वीकार करते हुए तनाव को हमेशा के लिए खत्म करने की पहल किया जाना । लखनऊ में एकत्र मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह ने भी इसी तरह की बात कही जिसे मुस्लिम समाज के बाकी नेताओं का समर्थन नहीं मिला लेकिन उनके अलावा आम मुसलमानों के बीच भी ये कहने वाले मिलने लगे हैं कि जन्मभूमि स्थल हिंदुओं को सौंपकर मस्जिद कहीं और बना ली जावे । दरअसल उन्हें लग गया है कि कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष नेताओं और पार्टियों की वजह से बीते तीस वर्षों से वे मानसिक तनाव झेल रहे हैं । हिंदुओं के बीच भी आम राय ये बनी है कि उग्रवादी सोच से अलग हटकर ऐसा रचनात्मक समाधान निकाला जाए जिससे ये विवाद सियासत के शिकंजे से मुक्त हो सके । बहरहाल जिस न्यायपालिका की लेटलतीफी और टालने वाले रवैये ने इस विवाद को लंबित रखा, अंतत: उसी की सर्वोच्च पीठ ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए निर्णय करने का संकल्प कर लिया। श्री गोगोई ने जिस तरह से समय सीमा निर्धारित करते हुए बहस को मुद्दे तक सीमित रखने में सफलता हासिल की वह सबसे ज्यादा कारगर साबित हुई। वरना वकीलों का बस चलता तो वे अंतहीन बहस जारी रखते । दोनों पक्षों के कुछ लोग ऐसा चाह भी रहे होंगे लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ही उससे जुड़े हिन्दू नेताओं द्वारा फैसला न्यायालय पर छोड़ देने के निर्णय के बाद से जिद वाली मानसिकता थोड़ी कमजोर पड़ी।  जो नेता आस्था को न्यायालय से उपर मानकर चलते थे वे भी अंतत: उसी की बात मानने के लिए राजी हो गये तो इसे केंद्र सरकार की सफलता माना जाना चाहिए।  अनेक लोग सुझाव देते रहे कि अपने बहुमत का इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार कानून बनाकर जन्मभूमि की जगह हिन्दुओं को मंदिर बनाने के लिए सौंप दे लेकिन प्रधानमन्त्री उस सबसे अप्रभावित थे।  वे चाहते थे तो वैसा कर सकते थे लेकिन तब सांप्रदायिक तनाव और उन्माद दोनों बढऩे की आशंका रहती।  मुख्य न्यायाधीश की भी तारीफ  करनी होगी जिन्होंने उनके रास्ते में आये तमाम अवरोधों को हटाते हुए मामले की सुनवाई आखिरकार पूरी कर ली।  अब पूरा देश ही नहीं अपितु अधिकांश विश्व सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का इंतजार कर रहा है।  उम्मीद की जानी चाहिए कि न्यायपालिका के फैसले को सभी पक्ष स्वीकार करेंगे।  न्यायपालिका को ऐसी ही प्रतिबद्धता लम्बे समय से अटके पड़े बाकी राष्ट्रीय स्तर के विवादों में भी दिखानी चाहिए जिनके कारण देश काफी नुक्सान उठा चुका है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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