Friday 18 October 2019

सावरकर का विरोध कांग्रेस के गले का फंदा बना



महाराष्ट्र में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में वीर सावरकर , महात्मा फुले और सावत्री बाई फुले को भारत रत्न देने का जो वायदा किया वह राजनीतिक विवाद की वजह बन गया है। फुले दंपत्ति पर तो किसी ने ऐतराज नहीं किया लेकिन सावरकर जी को लेकर भाजपा को कठघरे में खड़ा किया जाने लगा। असदुद्दीन ओवैसी जैसे व्यक्ति द्वारा तो वीर सावरकर के बारे में उलटा पुल्टा बोलना स्वाभाविक ही था क्योंकि वे हिंदुत्व के प्रखर प्रवक्ता थे लेकिन कांग्रेस के कतिपय बड़बोले नेताओं ने जिस तरह की बकवास की , वह निश्चित रूप से दुखद है। मनीष तिवारी ने तो यह तक कह दिया कि सावरकर जी को भारत रत्न देने के बाद नाथूराम गोडसे को भी उसी से नवाजा जाएगा। वहीं मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने महात्मा गांधी की हत्या में सावरकर जी के आरोपी होने की बात कहते हुए उनका उपहास किया। भाजपा ने बिना देर किये इस मुद्दे को लपका और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर दिया। फुले दंपत्ति जहां महाराष्ट्र के दलित समुदाय में अत्यंत सम्मानित हैं वहीं सावरकर जी के प्रति भी बहुत आदरभाव है। शिवसेना तो उन्हें पहला हिन्दू हृदय सम्राट मानती है। जब कांग्रेस को लगा कि सावरकर जी की आलोचना से उसे चुनावी नुकसान हो सकता है तब बजाय सोनिया गांधी और राहुल के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को आगे किया गया जिन्होंने सफाई देते हुए कहा कि कांग्रेस सावरकर जी की विरोधी नहीं है। उन्होंने ये भी याद दिलाया कि इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्व काल में ही सावरकर जी पर डाक टिकिट जारी किया गया था। इसी के साथ ही कांग्रेस से शिवसेना में गईं प्रियंका चतुर्वेदी ने इंदिरा जी के एक पत्र की प्रतिलिपि जारी कर दी जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सावरकर जी के साहसिक संघर्ष की प्रशंसा करते हुए उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया था। उसके बाद से कांग्रेस के उन नेताओं की जमकर किरकिरी हुई जो सावरकर जी को भारत रत्न दिए जाने संबंधी भाजपा के चुनावी वायदे को अपने लिये फायदेमंद मानकर उसका विरोध करने में जुट गये। वैसे मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह के बयानों को प्रबुद्ध वर्ग गम्भीरता से नहीं लेता किन्तु आम जनता में उनकी वजह से कांग्रेस को सदैव शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती है। भले ही डॉ. मनमोहन सिंह के मुंह से सावरकर जी द्वारा स्वाधीनता संग्राम में दिए गये योगदान की प्रशंसा करवाकर कांग्रेस ने नुकसान की भरपाई करने का प्रयास किया हो लेकिन जो होना था वह हो चुका। दरअसल भाजपा और शिवसेना को कांग्रेस के कुछ नेताओं की बकवास ने एक हथियार दे दिया। ये सब देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस में गलतियों से सीखने की प्रवृत्ति पूरी तरह खत्म हो चुकी है। कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है लेकिन जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने का विरोध करने पर पूरे देश में आलोचना का पात्र बनने के बावजूद कांग्रेस को समझ नहीं आई। लोकसभा में उस मुद्दे पर हुई बहस के दौरान कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी के अलावा मनीष तिवारी ने जो भाषण दिया उसकी वजह से पार्टी की पूरे देश में फजीहत हुई। गत दिवस मनमोहन सिंह जी भी सफाई देते रहे कि कांग्रेस का विरोध तरीके से था, मुद्दे से नहीं। देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी में आ चुकी यह दिशाहीनता वाकई चिंताजनक है। स्वाधीनता आन्दोलन की अगुआई करने वाली पार्टी के अनुभवी कहे जाने वाले नेताओं के मन में सावरकर जी जैसे नेता के संघर्ष और देशप्रेम के बारे दुराग्रह निश्चित्त रूप से उनकी वैचारिक विपन्नता का परिचायक है। मणिशंकर अय्यर, मनीष तिवारी, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, सुरजेवाला और ऐसे ही कुछ और नेताओं की बेलगाम जुबान पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा चुकी है ये किसी से छिपा हुआ नहीं है। बावजूद इन्हें रोकने और टोकने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ती। मणिशंकर के नीचता संबंधी बयान ने गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ आई बाजी छीन ली थी। कुछ बरस पहले सोनिया गांधी द्वारा भी मौत का सौदागर जैसी टिप्पणी कर नरेंद्र मोदी को रक्षात्मक से आक्रामक होने का अवसर दे दिया था। ऐसा नहीं है कि स्तरहीन ऊलजलूल टिप्पणियाँ करने वाले केवल कांग्रेस में ही हैं। भाजपा के कुछ नेताओं को भी वाणी के संयम और मर्यादा की सीमाएं लांघने का शौक है। लेकिन कांग्रेस को ये सोचना चाहिए कि वह जिस दयनीय स्थिति में है उसके मद्देनजर उसकी छोटी से छोटी गलती भी बड़े नुकसान का कारण बन जाती है। मणिशंकर को गुजरात चुनाव में की गई बकवास के बाद निलम्बित किया गया लेकिन धीरे से उनकी बहाली भी हो गई। अनुच्छेद 370 को लेकर पार्टी की नीति के विरोध में अनेक नेताओं के सार्वजनिक बयानों से साबित हो गया कि शीर्ष स्तर पर सामंजस्य और समन्वय का जबर्दस्त अभाव है। महाराष्ट्र कभी पार्टी का अभेद्य गढ़ हुआ करता था लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस वहां अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है। ऐसी सूरत में उसे अतिरिक्त सतर्कता बरतना चाहिये थी। लेकिन सावरकर जी को भारत रत्न देने के वायदे पर अंट-शंट बोलकर उसके कतिपय नेताओं ने डूबती नाव में नीचे से भी छेद करने जैसी मूर्खता कर दी है। इन नेताओं को इतना भी ज्ञान नहीं रहा कि सावरकर जी केवल महाराष्ट्र ही नहीं वरन पूरे देश में अत्यंत सम्मानित हैं। स्वाधीनता संग्राम में अपनी बेहद सक्रिय भूमिका के आलावा उनका सहित्य सृजन और समाज के बारे में चिंतन अध्ययन करने योग्य है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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