Wednesday 2 October 2019

बापू: उनकी वैश्विक प्रासंगिकता ही सबसे बड़ा सम्मान

आज महात्मा गांधी की 150 वीं जयन्ती है । वे एक ऐसे इंसान थे जिनका जीवन दो शताब्दियों में बंटा हुआ था  लेकिन अपनी मृत्यु के सात दशक बाद 21 वीं सदी में भी वे उतने ही प्रासंगिक और स्वीकार्य बने हुए हैं तो उसका कारण उनका अत्यंत विस्तृत कार्यक्षेत्र था जिसमें मानव जीवन से जुड़ी हर छोटी बड़ी चीज के लिए कुछ न कुछ था । यही वजह रही कि वे अपने जीते जी ही एक किंवदंती बनते हुए हुए वैश्विक जिज्ञासा का विषय हो चुके थे । जिस ब्रिटिश साम्राज्य को भारत से उखाड़  फेंकने के लिए उन्होंने अपना समूचा जीवन लगा दिया वह भी उन्हें पूरी तरह तिरस्कृत करने का दुस्साहस नहीं कर सका । वरना राजद्रोह के  आरोप में वह उन्हें भी अपने रास्ते से हटा देता । हालाँकि इस बारे में ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि उनका अहिंसक आन्दोलन अंग्रेजों को क्रांतिकारियों की अपेक्षाकृत ज्यादा सुविधाजनक प्रतीत होता था ।  इसलिए सुनियोजित तरीके से उन्होंने  बापू को ही स्वाधीनता संग्राम के नेता के तौर पर स्वीकार भी किया और स्थापित भी । लेकिन इस सबसे अलग हटकर भी उनका योगदान भारतीय समाज के लिए था जिसे पुनर्जागरण के लिहाज से देखा जाना कहीं बेहतर होगा । अछूतोद्धार , गाम स्वराज और  स्वदेशी जैसी बातें उन्होंने उस दौर में कीं जब भारतीय समाज पूरी तरह से दिशाहीनता  और नेतृत्व शून्यता का शिकार था । दक्षिण अफ्रीका से लौटे बैरिस्टर एम.के गांधी का महात्मा के तौर पर रूपांतरण उन्नीसवीं सदी के रुढि़वादी भारतीय समाज के लिए  बहुत बड़ा वैचारिक बदलाव था । ऐसा नहीं है कि उनके पहले किसी ने आजादी के बारे में सोचा नहीं हो । गांधी जी के जन्म से 12 वर्ष पहले ही 195। की क्रांति हो चुकी थी । लोकमान्य तिलक और गोपालकृष्ण गोखले जैसे स्वाधीनता के प्रवक्ता भी उनसे पहले ही सक्रिय थे लेकिन ये कहना पूरी तरह सही होगा कि आजादी की ललक को जन - जन में पैदा करने का जो कारनामा उस फकीरनुमा इंसान ने कर दिखाया वह इतिहास होने के बाद भी आज तक जीवंत है । उनकी लड़ाई यूँ तो राजनीतिक नजर आती थी लेकिन गांधी जी ने सत्ता के साथ ही समाज की व्यवस्था और सोच को भारतीय परिवेश के अनुसार ढालने का जो प्रयास किया वह उनका असली योगदान था । वे केवल आजादी की लड़ाई को ही अपना मिशन बनाते तब शायद इतिहास उनके लिए इतना उदार नहीं होता । लेकिन गांधी जी ने अपने समकालीन भारत ही नहीं बल्कि समूचे विश्व को प्रभावित किया क्योंकि उनका समूचा चिंतन और कार्यशैली मानवता के बेहद करीब थी । यही वजह रही कि वे जीते जी विश्व मानव के तौर पर स्वीकार्य हो गये थे । भारतीय समाज की ताकत और कमजोरियों को जितनी बारीकी से उन्होंने समझा उसके कारण उन्हें एक सिद्धहस्त मनोवैज्ञानिक कहना भी गलत नहीं होगा । जातियों में बंटे समाज को एकजुट करते हुए रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करने का कार्य उनसे बेहतर  किसी ने नहीं किया । भारत लौटने के कुछ समय बाद ही वे इस वास्तविकता से अवगत हो चुके  थे कि आजादी की लड़ाई सीधे शुरू करना आत्मघाती हो सकता है और इसीलिये उन्होंने एक कुशल सेनापति के रूप में समाज के हर तबके को एकजुट किया जिसे अंग्रेज जब तक समझ पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।  अहिंसा के प्रति उनका आग्रह जिद की हद तक था जिसे लेकर आज  भी उनकी आलोचना की जाती है । ये भी कहा जाता है कि अहिंसा के जरिये मिली आजादी का मोल भारत के लोग चूँकि नहीं समझे इसीलिये सत्तर साल बाद भी हमारा देश उन लक्ष्यों को हासिल करने में सफल  नहीं हो सका जिनका सपना 15 अगस्त 194। को देखा और दिखाया गया था । लेकिन  गांधी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना बड़ा  और व्यापक था कि उसको सीमित दायरे में रखकर उनका मूल्यांकन करना नासमझी होगी । गांधी जी आजादी के बाद ज्यादा समय नहीं रहे और उनकी तासीर जैसी थी उसके मुताबिक यदि रहते तब वे दोबारा संघर्ष के रास्ते पर चल पड़ते । आज उनके 150 वें जन्मदिवस पर देश और दुनियाँ में बहुत कुछ हो रहां है । उनकी प्रशंसा में अखबारों के पन्ने भरे हुए हैं लेकिन गांधी का सपना किस तरह अधूरा है उसकी एक बानगी गत दिवस देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दलितों पर अत्याचार संबंधी  एक निर्णय से मिली । सात दशक बीत जाने के बाद भी भारत में जातिगत भेदभाव मिटना तो दूर और बढ़ गया है जिसके लिए वे सब कसूरवार हैं जिन्होंने गांधी जी की फर्जी वसीयतें बनवाकर खुद को उनका मानस पुत्र घोषित कर रखा है । केवल बाहरी स्वच्छता का अभियान  चलाकर गांधी जी के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित कर देना पर्याप्त्त नहीं होगा । साबरमती के संत के प्रति सबसे बड़ा सम्मान तब होगा जब हम अपना मन भी स्वच्छ कर लें । भले ही उन्हें नोबल जैसे पुरस्कार से वंचित रखा गया हो लेकिन महात्मा जी की वैश्विक प्रासंगिकता उनका सबसे बड़ा  सम्मान है । डेढ़ शताब्दी पहले जन्मे एक इंसान ने जिस प्रभावशाली ढंग से पूरी दुनिया को रास्ता दिखाया उसके आधार पर ये  कहना गलत नहीं  होगा कि उनके बाद उन जैसा महामानव आज तक दूसरा कोई नहीं जन्मा ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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