Saturday 15 February 2020

फांसी के अलावा अन्य अपीलों की भी जल्द सुनवाई हो



सर्वोच्च न्यायालय ने गत दिवस एक महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा प्राप्त व्यक्ति की अपील पर सुनवाई की अधिकतम समय सीमा छह महीने तय कर दी। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक अपील की सुनवाई में ही बरसों लग जाते हैं जिसका लाभ लेकर दोषी व्यक्ति के मृत्युदंड की तारीख टलती रहती है। इस दिशा निर्देश की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि निर्भया कांड के दोषियों की फांसी जिस तरह टलती जा रही है उससे समूची न्याय व्यवस्था का मजाक उडऩे लगा है। मृत्युदंड की सजा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी जाने के बाद भी आरोपी के पास राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका का अंतिम विकल्प होता है। ये याचिका केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के मार्फत महामहिम के पास पहुंचती है। अब तक के अनुभव बताते हैं कि इस समूची प्रक्रिया में समय सीमा निर्धारित नहीं होने से बरसों बरस बीत जाते हैं। निर्भया काण्ड इसका सबसे ताजा उदाहरण है। जिन चार लोगों को फांसी दिए जाने की तारीख तक तय हो चुकी थी उनकी ओर से दया याचिका और अपील दर अपील के जरिये कानूनी पेंच इस तरह फंसा दिया गया जिससे ये समझ ही नहीं आ रहा कि उन्हें उनके किये की सजा आखिर कब मिलेगी। एक समय था जब निर्भया काण्ड पूरे देश में चर्चित था। उससे जुड़ी हर खबर पहले पन्ने पर छाई रहती थी। पूरे देश में उस काण्ड के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के लिए तरह-तरह के आन्दोलन होते रहे। लेकिन धीरे-धीरे केवल निर्भया की माता जी ही अकेले अदालत में खड़े होकर अपनी बेटी के साथ दरिंदगी करने वालों को उनके पाप की सजा दिलवाने की गुहार करती दिखाई देती हैं। समाचार माध्यमों और पूरे देश में मोमबत्तियां जलाने वालों ने भी इस काण्ड में पहले जैसे रूचि दिखानी बंद कर दी जो स्वाभाविक ही है। उक्त काण्ड के दोषी जिस चालाकी से एक के बाद एक याचिकाओं के माध्यम से मृत्युदंड की तारीख टलवाते जा रहे हैं उसके मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय के ताजा दिशा निर्देश निश्चित रूप से भविष्य में ऐसे मामलों के जल्द निपटारे का आधार बनेंगे, ये उम्मीद की जा सकती है। कानून की भी अपनी सीमाएं होती हैं जिन्हें लांघना संभव नहीं होता। निर्भया काण्ड के चारों दोषियों को एक साथ फांसी दिए जाने की तिथि घोषित हो गई थी। उसके बाद उन्होंने अलग-अलग याचिकाएं लगाने शुरू कीं। जो एक के बाद एक खारिज होती जा रही हैं। लेकिन पूर्व में डेथ वारंट चूंकि एक साथ जारी किया गया था इसलिए फांसी भी एक साथ दिए जाने का नियम होने से जिनकी सभी अपीलें निरस्त हो चुकी हैं वे भी अब तक जि़ंदा बने हुए हैं। यदि उच्च न्यायालय द्वारा फांसी दिए जाने के बाद अपीलों का निराकरण जल्दी हो जाता तो चारों दोषी कभी के फांसी पर झूल चुके होते। हमारे देश में न्याय प्रणाली की मंथर गति पर सवाल तो रोज उठते हैं लेकिन सुधार करने के बारे में अपेक्षित प्रतिबद्धता नहीं दिखाई जाती। हाल ही में खबर आई थी कि देश भर के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के सैकड़ों पद रिक्त पड़े हैं। नियुक्ति संबंधी तमाम औपिचारिक्ताएं भी पूरी हो चुकी हैं लेकिन सरकार अंतिम फैसला नहीं कर रही। यद्यपि लंबित प्रकरण निबटाने की दिशा में तरह-तरह के तरीके न्यायपालिका ने निकाले जिनका लाभ भी हुआ लेकिन दीवानी के साथ-साथ अपराधिक प्रकरणों के निपटारे में होने वाले विलम्ब से न्यायपालिका की छवि खऱाब होती है। हालाकि सर्वोच्च न्यायालय के ताजा दिशा निर्देश केवल मृत्युदंड के विरुद्ध अपील के बारे में हैं। जिनके पीछे निर्भया काण्ड से उत्पन्न परिस्थितियां ही कही जाएंगीं। ऐसा लगता है इस काण्ड के दोषियों द्वारा कानून में मौजूद कमियों का लाभ लेकर जिस तरह से अपनी फांसी टलवाई जा आ रही है उससे सर्वोच्च न्यायालय भी सतर्क  हो उठा। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सर्वोच्च न्यायालय को प्रकरण की गहराई में ज्यादा जाने की जरुरत नहीं होती। फांसी की सजा के विरुद्ध की जाने वाली अपील में शायद ही कोई बरी होता होगा। ज्यादा से ज्यादा फांसी को आजीवन कारावास में बदला जाता है। ऐसे में अपील की सुनावाई छह महीने में शुरू किये जाने की व्यवस्था एक सामयिक निर्णय है जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय प्रशंसा का पात्र है। न्याय में विलम्ब न्याय से इनकार है वाली युक्ति में अब ये भी जोड़ा जाना चाहिए कि न्याय में विलम्ब न्याय का मजाक है। न्याय प्रक्रिया में विलम्ब का एक नुकसान ये भी होता है कि मुकदमा लडऩे वाले पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। चूंकि वकीलों की फीस का कोई निर्धारित मापदंड नहीं है इसलिए पक्षकार की मजबूरी का जमकर फायदा उठाने की प्रवृत्ति इस क्षेत्र में खुलकर नजर आती है। इसीलिये त्वरित न्याय एक अपेक्षा ही नहीं आवश्यकता भी बन चुकी है। गत दिवस जारी हुए दिशा निर्देशों को फांसी के अलावा अन्य अपीलों के संदर्भ में भी लागू किया जावे तो न्यायिक सुधार की प्रक्रिया में और तेजी आ सकेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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