Wednesday 26 February 2020

ट्रंप के दौरे से भारत का कूटनीतिक वजन बढ़ा



अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो दिवसीय भारत यात्रा कल रात खत्म हो गयी। इस दौरे की सबसे अहम बात ये कही जा रही है कि वे लंबा सफर करते हुए केवल भारत आये। उनके बारे में प्रचलित है कि उन्हें इतनी लम्बी यात्रा से परहेज है। वैसे भी अमेरिका के राष्ट्रपति जब विदेश यात्रा पर निकलते हैं तब अनेक देश उनके दौरा कार्यक्रम में शामिल किये जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में तो वैसे भी अनेक राष्ट्रप्रमुख मिल जाते हैं। लेकिन भारत जैसे सुदूर देश की यात्रा और वह भी बिना किसी विशेष कार्यसूची के करना अमेरिकी कूटनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण घटना है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात अमेरिका के अलावा अनेक सम्मेलनों में होती रही है। कुछ महीने पहले जब वे अमेरिका गए तब हाऊडी मोदी नामक जलसे में श्री ट्रंप के आने से दोनों नेताओं के सम्बन्ध कूटनीति से आगे निकलकर व्यक्तिगत निकटता का रूप लेते दिखे जिसका विस्तार इस दौरे में नजर आया। कुछ लोगों का मानना है कि ये दौरा आगामी नवंबर में होने जा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर था। अमेरिका में रहने वाले 40 लाख भारतीय मूल के मतदाताओं को लुभाने के लिए ही श्री ट्रंप ने भारत आने की तकलीफ  उठाई और श्री मोदी की तारीफों के पुल बाँध दिए। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी आदत के विपरीत विवादास्पद टिप्पणी से भी परहेज किया। भारत रवाना होने के पहले उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाने की बात कहकर खलबली मचाई थी। भारत सरकार निश्चित रूप से उस बयान से खुद को असहज महसूस करने लगी थी। पाकिस्तान ही नहीं अपितु भारतीयों का भी एक वर्ग है जो सीएए मुद्दे का वैश्वीकरण करने में जुटा रहा लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के आन्तरिक मसलों पर बोलते समय जिस तरह का संयम बरता वह न केवल चौंकाने वाला रहा बल्कि उसे भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता कहना गलत नहीं होगा। उनके आगमन के साथ ही दिल्ली में दंगे शुरू हो गए थे। जिनकी आड़ लेकर या तो उनके कुछ कार्यक्रम रद्द किये जा सकते थे या सुरक्षा कारणों से उनका प्रस्थान जल्दी हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और श्री ट्रंप तथा उनके परिवार ने दिल्ली प्रवास के दौरान पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री से दोपहर हुई लम्बी बातचीत के दौरान रक्षा सौदे की जिस बड़ी डील की बात निकलकर आई उसके लिए ही श्री ट्रंप भारत आये ये बात गले नहीं उतरती क्योंकि इस तरह के सौदे लंबी प्रक्रिया के बाद अंतिम रूप लेते हैं। सेना से जुड़ी किसी भी खरीदी में सैन्य विशेषज्ञ भी अपनी राय रखते हैं। अमेरिका से जिन रक्षा सामग्रियों की खरीद का निर्णय गत दिवस हुआ वे काफी समय से विचाराधीन थीं। इसलिए उनके बारे में लिए गये निर्णय को इस यात्रा का प्रतिफल मान लेना सही नहीं होगा। लेकिन सबसे बड़ी बात ये हुई कि धार्मिक स्वतन्त्रता , कश्मीर , सीएए जैसे मुद्दों पर श्री ट्रंप ने जिस तरह अमेरिकी हस्तक्षेप से इंकार करते हुए श्री मोदी की क्षमताओं पर विश्वास व्यक्त किया उससे भारत में भले ही बहुत से लोगों को बुरा लगा होगा लेकिन कूटनीति के जानकार ये मानेंगे कि अमेरिकी राष्ट्रपति के इस रवैये से पाकिस्तान के सीने पर सांप जरुर लोटा जो ये मानकर चलता रहा है कि अमेरिका का दत्तक पुत्र होने से उसका संरक्षण उसकी मजबूरी है। हालाँकि श्री ट्रंप ने इमरान खान को भी अपना मित्र बताया लेकिन अपनी सरजमीं से आतंकवाद को मिटाने की बात कहकर पाकिस्तान को तो सन्देश दिया ही वहीं इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने की बात को कई अवसरों पर दोहराकर भी भारत के पक्ष को जोरदार समर्थन दिया जिससे श्री मोदी सरकार की कश्मीर नीति को परोक्ष समर्थन मिला। कुल मिलाकर राष्ट्रपति के रूप में श्री ट्रंप के प्रथम भारत दौरे को असाधारण और अभूतपूर्व तो तो नहीं कहा जा सकता किन्तु वह उन आशंकाओं से परे रहा जो उनके अनिश्चित स्वभाव के कारण अपेक्षित थीं। यदि वे कश्मीर , सीएए, धार्मिक स्वतंत्रता और ऐसे ही किसी दूसरे  विषय पर ऐसी टिप्पणी कर देते जो हमारे घरेलू मामलों में हस्तक्षेप मानी जाती तो श्री मोदी को जबर्दस्त आलोचना का शिकार तो होना ही पड़ता कितु उससे भी अधिक विदेश नीति के मोर्चे पर उनकी अब तक की सफलताओं के ऊपर पानी फिर जाता। राष्ट्रपति ट्रंप भारत के बाहर यदि कुछ बोलते हैं तब उसका उतना असर नहीं होता लेकिन हमारे मेहमान बनकर वे हमारे घरेलू मसलों पर ऐसा कुछ कह जाते जिससे भारत की वैश्विक छवि खराब होती तब वह कूटनीतिक दृष्टि से अपमानजनक होता। उनकी इस यात्रा से पाकिस्तान को भले ही प्रत्यक्ष तौर पर कोई नुक्सान नहीं हुआ हो क्योंकि श्री ट्रंप भी उसकी सीधी आलोचना से बचे लेकिन भारत आने के बाद पाकिस्तान का दौरा किये बिना उनका अमेरिका लौट जाना भी कूटनीतिक लिहाज से भारत की सफलता कही जायेगी, जिसके लिए प्रधानमन्त्री के अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी प्रशंसा के हकदार हैं क्योंकि अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रप्रमुख के दौरे की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं जिनमें विदेश मंत्रालय की खासी भूमिका रहती है। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापिसी की संभावनाओं के बीच श्री ट्रंप का भारत दौरा और उसमें आपसी सहयोग की संभावनाओं पर सहमति  और निर्णयों से विश्व मंच पर भारत का महत्व बढ़ा है। अमेरिका के राष्ट्रपति से व्यक्तिगत सम्बन्ध बना लेना आसान काम नहीं है। भले ही किसी देश की विदेश नीति एक निरंतर प्रक्रिया का हिस्सा होती है जो शासक के बदलने पर ज्यादा नहीं बदलती लेकिन राष्ट्रप्रमुखों के बीच निजी तौर पर स्थापित निकटता से कूटनीतिक मोर्चे पर काफी लाभ मिलता है। पंडित नेहरु ने इसका लाभ काफी लिया किन्तु वह दौर शीतयुद्ध का होने से वे कई मोर्चों विशेष रूप से चीन को लेकर मात खा गए। इत्तेफाक से श्री मोदी शीतयुद्ध के बाद की कूटनीति का हिस्सा बने इसलिए उनको उस छुआछूत  का सामना नहीं करना पड़ा। यही वजह है कि वे अपनी कट्टर हिन्दू छवि के बावजूद अनेक मुस्लिम देशों से मधुर रिश्ते बनाने में कामयाब हो गए। डोनाल्ड ट्रंप के ताजा दौरे से भारत की कूटनीतिक वजनदारी में और भी वृद्धि हुई जिसका श्रेय कोई चाहे या न चाहे लेकिन श्री मोदी के खाते में ही जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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