Saturday 8 February 2020

पूर्वोत्तर में राष्ट्रीयता का सूर्योदय



असम में चल रहे बोडो उग्रवादी आन्दोलन के शांतिपूर्ण समाधान के बाद गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी कोकराझार पहुंचे और बोडो आन्दोलन के केंद्र बने रहे जिलों के विकास हेतु आथिक पैकेज की घोषणा करते हुए विश्वास दिलाया कि इन इलाकों को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के हरसंभव प्रयास किये जावेंगे। 54 सालों से चले आ रहे बोडो आन्दोलन में हजारों लोग मारे गए। असम का ये सबसे बड़ा आदिवासी तबका अलगाववादी ताकतों के प्रभाव में आकर हिंसा के रास्ते पर चल पड़ा था। इसके लिए विदेशी मदद मिलने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अतीत में अनेक बार बोडो उग्रवादियों से समझौते हुए लेकिन किसी न किसी वजह से उनको लागू नहीं किया जा सका। हालांकि ये भी सही है कि सशस्त्र संघर्ष करने वालों की ताकत निरंतर कम होती जा रही थी। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के पैर जमे। असम, मणिपुर और त्रिपुरा में उसकी सरकार बन जाने के बाद से वहां राष्ट्रवादी ताकतें मजबूत हुईं। पूर्वोत्तर में आदिवासी समुदाय बड़ी संख्या में है। आजादी के बाद से ही इस क्षेत्र के विकास की उपेक्षा की जाती रही जिससे यहाँ के लोग देश की मुख्य धारा में शामिल नहीं हो सके। ईसाई मिशनरियों और नक्सलवादियों के बीच हुए गठजोड़ ने यहाँ भारत विरोधी भावनाओं को काफी गहराई तक फैला दिया किन्तु बीते पांच वर्ष में वहां के राजनीतिक समीकरण बदल गए। जिसकी वजह से अलगाववादी संगठनों की घेराबंदी हुई और उनमें से अनेक ने समर्पण भी कर दिया। लेकिन बोडो उग्रवादी अभी तक सक्रिय थे। हाल ही में केंद्र सरकार ने उनको हथियार रख देने के लिए राजी किया और वे मुख्यधारा में शरीक हो गए। कश्मीर घाटी में अलगाववाद की जड़ों में सफलतापूर्वक मठा डालने के बाद केंद्र सरकार का हौसला निश्चित तौर पर बुलंद हुआ जिसके बाद उसने बोडो उग्रवादियों को भी हिंसा छोड़कर शांति के रास्ते पर चलने के लिए राजी किया। पूर्वोत्तर की राजनीति के अलावा वहां के विकास में भी इस समझौते से बड़ी मदद मिलेगी। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि यूपीए सरकार के दौर में पूर्वोत्तर राज्यों की घोर उपेक्षा हुई। प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह असम से राज्यसभा के लिए चुने जाते रहे किन्तु उसके बाद भी पूर्वोत्तर में विकास का सूर्योदय नहीं आ सका। लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता सँभालते ही न सिर्फ असम वरन समूचे पूर्वोत्तर के चौमुखी विकास की योजना शुरू की। बड़े पैमाने पर सड़कों का जाल बिछाये जाने से परिवहन आसान हुआ जिसकी वजह से व्यापार और पर्यटन दोनों में वृद्धि देखने मिली। अरुणाचल में चीन से सटी सीमा तक पक्की सड़कें, हवाई पट्टी बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से भारत विरोधी ताकतों का आधार कमजोर होता गया। हालाँकि अभी भी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो सकी लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह से अलगाववादी संगठन समर्पण करते जा रहे हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में वहां राष्ट्रीय एकता के लिए चला आ रहा खतरा पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। प्रधानमन्त्री ने बोडो आन्दोलन के प्रभावक्षेत्र में जाकर विकास की जो घोषणाएं कीं वह समझदारी भरा कदम है। देश का पूर्वोत्तर इलाका अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण पर्यटन की दृष्टि से बेजोड़ है। इसे भारत का स्विटजरलैंड भी कहा जाता है लेकिन विदेशी ताकतों के षडयंत्र की वजह से ये क्षेत्र अलगाववाद की चपेट में आ गया। अब हालत सुधरती दिख रही हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में समूचा पूर्वोत्तर विकास का नया प्रतीक बनकर मुख्यधारा के राज्यों की कतार में खड़ा नजर आएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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