Saturday 22 February 2020

नसबंदी के बहाने जनसंख्या नियंत्रण पर निशाने




 मप्र की कमलनाथ सरकार में प्रशासनिक अव्यवस्था का बोलबाला साफ़ नजर आने लगा है | मध्यान्ह भोजन संबंधी निर्णय को लेकर मुख्य सचिव द्वारा कैबिनेट के निर्णय को पलटने जैसा आरोप लगने से सरकार की किरकिरी होने की बात अभी तक ताजा ही थी कि गत दिवस अवकाश के  बावजूद दफ्तर खुलवाकर राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन की डायरेक्टर छवि भरद्वाज का वह आदेश र्द्द्द क्र दिया  गया जिसमें विभागीय कर्मचारियों को 5 से 10 पुरुष नसबंदी का लक्ष्य देकर ये चेतावनी दी गयी थी कि असफल रहने पर काम नहीं तो वेतन नहीं के आधार पर उनका वेतन काटने से लेकर अनिवार्य सेवा निवृत्ति जैसी कार्र्वायी तक की जावेगी | इस आदेश से कर्मचारी तो नाराज थे ही ऊपर से भाजपा ने इसे आपातकाल की पुनरावृत्ति बताते हुए विरोध के स्वर बुलंद कर दिए | इन बिन बुलाई मुसीबत से घबराई प्रदेश सरकार ने महाशिवरात्रि की छुट्टी के बाद भी कार्यालय खुलवाकर श्रीमती भरद्वाज के आदेश को वापिस ही नहीं लिया अपितु उनका तबादला भी कर दिया गया | वे फ़िलहाल प्राशिक्षण पर मसूरी गईं हुई हैं | प्राप्त जानकारी के मुताबिक उक्त विभाग ने गत वर्ष भी इस सम्ब्न्ध में आदेश जारी किये थे | जिनका पालन नहीं होने पर संदर्भित चेतावनी दी गयी | इस मामले में गलती सरकार की है या श्रीमती भरद्वाज की ये तो विस्तृत जांच से ही पता चलेगा किन्तु इस बारे में जो विवाद मचा उससे परिवार नियोजन के प्रति सरकारी स्तर पर बरती जाने वाली उदासीनता और लापरवाही एक बार फिर सामने आ गी है | सत्तर और अस्सी के दशक तक परिवार नियोजन एक ज्वलंत विषय था | 1975 में इंदिरा सरकार द्वारा थोपे गये आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी के अभुइयान की वजह से 1977 के चुनाव में कंग्रेस को जबर्दस्त नुक्सान हुआ | यहाँ तक कि इंदिरा जेई स्वयं चुनाव हार गईं | जनता पार्टी की सरकार ने परिवार नियोजन को परिवार कल्याण नाम देकर आपातकाल की कड़वी यादों को धूमिल करने का प्रयास किया लेकिन उसके बाद धीरे - धीरे छोटा प्ररिवार - सुखी परिवार , दो या तीन  बच्चे - होते हैं घर में अच्छे , बच्चे कम और पेड़ हजार जैसे नारे दीवारों से गायब से होते गये | जनसंख्या नियन्त्रण के लिए सरकारी स्तर पर व्यक्त की जाने वाली चर्चाएँ और निर्णय भी महज बैठकों और आंकड़ों तक सिमटकर रह गए | विकास की नई अवधारणा में मानव संसाधन विकास की बात पर तो जोर दिया जाने लगा किन्तु जनसंख्या विस्फोट राष्ट्रीय चिंताओं की सूची से लुप्त सा हो गया | परिवार नियोजन के लिए होने वाली नसबंदी , महिलाओं की शल्य क्रिया जैसे काम बंद तो नहीं हुए लेकिन इस बारे में शासकीय स्तर पर जैसा अभियान पहले कभी चलता था वह सुस्ती ओढ़कर बैठ गया | इस सबसे ये लगने लगा कि सरकार में बैठे लोगों ने जनता की नाराजगी  से बचने के लिए परिवार नियोजन को पूरी तरह लोगों की मर्जी पर छोड़ दिया | यद्यपि पढ़े - लिखे  विशेष रूप से मध्यमवर्गीय नौकरपेशा वर्ग में छोटे परिवार का महत्त्व स्वीकार कर  लिया गया किन्तु निम्न आय वर्ग में अभी भी इस बारे में लापरवाही देखी जाती है | मुस्लिम समुदाय में तो धार्मिक कारणों से परिवार नियोजन के प्रति हिचक विद्यमान है | ऐसे में ताजा विवाद न हुआ होता तब शायद किसी का ध्यान इस तरफ जाता ही नहीं कि मप्र में  जनसंख्या वृद्धि की क्या स्थिति है और उसकी वजह से प्रदेश की अर्थव्यवस्था किस हद तक प्रभावित हो रही है | श्रीमती भारद्वाज की गिनती एक सक्षम अधिकारी के रूप में होती आई है | उनकी पदस्थापना जहां - जहां हुई वहां उन्होंने अपना असर छोड़ा | विवादित आदेश में जबरदस्ती तो झलकती थी किन्तु गौरतलब ये भी है कि सम्बन्धित विभाग के कर्मचारियों ने पिछले आदेशों का पालन नहीं किया जिससे कि लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया | एक सरकारी अधिकारी का अपने अविभागीय कर्मचारियों पर सख्ती करना सामान्य प्रक्रिया है | वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले राजस्व की वसूली को लकर भी इसी तरह  से दबाव बनया जाता है | लेकिन नसबंदी चूँकि अलग तरह का अभियान है इसलिए उसके बारे में किसी भी प्रकार की सख्ती सरकार के प्रति नाराजगी का सबब बन जाता है | हालाँकि दो बच्चों की सीमा विभिन्न शासकीय औपचारिकताओं में अनिवार्यता बनी हुई है लेकिन ये बात भी सही है कि श्रीमती भारद्वाज द्वारा जारी किया गया आदेश जोर - जबरदस्ती का कारण बनता या फिर आंकड़ों का फर्जीबाड़ा किया जाता | बहरहाल बात निकली है तो परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण पर सार्थक होना चाहिए क्योंकि सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं और कार्यक्रम बढती आबादी के सामने दम तोड़ देती हैं | बीते कुछ वर्षीं में भारत आर्थिक प्रगति के मामले में चीन से प्रतिस्पर्धा कर  रहा है लेकिन चीन की आर्थिक तरक्की में जनसँख्या नियंत्रण का सबसे बादा योगदान है | हालाँकि साम्यवादी शासन व्यवस्था की वजह से वहां तानाशाही है जिसमें आम जनता को सरकारी फैसलों की अवहेलना करने का अधिकार ही नहीं है | उसके ठीक उलट हमारे देश में प्रजातंत्र होने से  छोटी से छोटी बात का बतंगड़ बन जता है | जनसँख्या नियन्त्रण का समूचा कार्यक्रम भी इसीलिये वोटबैंक का शिकार होकर रह गया | बीते कुछ समय से इस बात पर चार्चा चल रही है कि केंद्र स्रकार जनसँख्या नियंत्रण पर कानून लेकर आ  रही है | मप्र में उठे नसबंदी विवाद के बाद ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वह  ऐसा कर सकेगी क्योंकि भाजपा विरोधी पार्टियां उसे अल्पसंख्यक विरोधी बताकर आसमान सिर् पर उठाने से नहीं चूकेंगी | वैसे कमलनाथ सरकार की कमजोरी भी लगातार सामने आ रहीं हैं | माफिया उन्मूलन , ,  किसानों की कर्ज माफी और ऐसे ही बाकी मामलों में वह निरंतर असफल होती दिख रही है | उसकी एकमात्र उपलब्धि कुछ है तो वह है आये दिन तबादलों की सूची जारी करना | तबादले सरकार का अधिकार् हैं लेकिन उनका औचित्य  साबित करना भी उसका दायित्व है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment