Monday 17 February 2020

सीएए के फेर में मोहरे बन गए मुस्लिम



प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने गत दिवस वाराणसी में स्पष्ट कर दिया कि सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) किसी भी कीमत पर वापिस नहीं लिया जावेगा। उसी के साथ उन्होंने अनुच्छेद 370 हटाये जाने के फैसले को भी देश हित में बताया। प्रधानमन्त्री की इस घोषणा से सरकार का रुख स्पष्ट हो गया। इस बारे में गृहमंत्री अमित शाह भी अनेक बार साफ़  कर चुके थे कि जिसे बात करना हो समय लेकर आ जाए लेकिन दबाव बनाकर सरकार को झुकाया नहीं जा सकता। संयोगवश कल ही दिल्ली के शाहीन बाग़ में धरना दे रही महिलाओं का जत्था श्री शाह से मिलने उनके निवास तक जाने के पहले ही रोक दिया गया। सही बात ये हैं कि 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के लिए हुए मतदान के फौरन बाद ही उक्त कानून के विरोध को लेकर समाचार माध्यमों और नेताओं की रूचि घटने लगी थी। चुनाव परिणाम आने के बाद ये प्रचारित भी हुआ कि भाजपा द्वारा सीएए के बहाने हिन्दू-मुस्लिम का जो खेल खेला गया था वह विफल होकर रह गया। दिल्ली की मुस्लिम बहुल सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी की भारी विजय को शाहीन बाग़ के आन्दोलन का प्रभाव बताया गया। लेकिन ताजा खबरों के मुताबिक शाहीन बाग़ में धरने पर बैठीं महिलाओं का उत्साह ठंडा पडऩे लगा है। बीते कुछ दिनों से धरने में संख्या घटने भी लगी है। गत दिवस श्री शाह के निवास पर प्रदर्शन करने भी पर्याप्त संख्या नहीं जुटी। नतीजों के बाद अनेक महिलाएं ये कहती टीवी पर दिखीं कि गृहमंत्री उन्हें मिलने का समय दें। इस पर श्री शाह का बयान आ गया कि जिसे मिलना हो वह समय लेकर आ जाए। बीती 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे पर तो धरना स्थल पर बाकायदे प्रधानमन्त्री को आमंत्रित करते हुए पोस्टर लहराए गए। लेकिन गत दिवस श्री शाह के निवास पर प्रदर्शन करने गया जत्था बिना समय लिए ही जा पहुंचा जिसकी वजह से पुलिस ने उसे आगे नहीं बढऩे दिया। सही बात ये है कि शाहीन बाग़ का आन्दोलन बेमौत मरने की कगार पर आ पहुंचा है। टीवी और सोशल मीडिया पर उस आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर का बताने का जो सुनियोजित प्रयास चल रहा था वह भी अचानक ठंडा पडऩे लगा। इस सबसे ये साबित होने लगा है कि वह एक प्रायोजित कार्यक्रम था जिसका उद्देश्य दिल्ली के चुनाव को प्रभावित करना था। आन्दोलन में बैठने वालों को धन और भोजन दिए जाने के आरोप भी अपनी जगह सही लगने लगे हैं क्योंकि दिल्ली के चुनावी नतीजे आते ही शाहीन बाग़ के धरने की जान निकलना शुरू हो गयी। लड़कर लेंगे आजादी के नारे लगने वाले अब किसी तरह इज्जत बचाने का रास्ता तलाश रहे हैं। केंद्र सरकार के कड़े रुख के कारण धरने पर बैठी महिलाएं किसी भी तरह श्री शाह से मिलकर धरना खत्म होने का बहाना ढूंढ़ रही हैं। एक मुस्लिम युवक को ये कहते भी सुना गया कि इस धरने का कोई नेता नहीं है इसलिए गृहमंत्री से मिलने का समय कौन मांगे ये तय करना कठिन है। जब धरना अपने शबाब पर था तब आंदोलनकारी प्रधानमन्त्री को वहां आकर बात करने जैसा दम्भ भरा करते थे लेकिन अब वे किसी तरह बचकर निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं। महिलाओं को आगे कर पर्दे के पीछे से मदद कर रहे मुस्लिम पुरुष और भाजपा विरोधी नेतागण भी 11 तारीख के बाद दिखाई नहीं दे रहे। कुल मिलाकर स्थिति चौबे जी द्वारा छब्बे बनने के फेर में दुबे बनने जैसी हो गयी है। तीन तलाक से मिली राहत की वजह से मुस्लिम समाज की महिलाओं के मन में भाजपा के प्रति बढ़ते लगाव की संभावना से चिंतित मुस्लिम समाज के धर्मगुरु और पुरुष वर्ग द्वारा सीएए के बहाने मुस्लिम महिलाओं को आगे करते हुए उस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की गयी। पूरे देश में मुस्लिम समाज के मन में ये भय पैदा कर दिया गया कि सीएए के जरिये उनकी नागरिकता खत्म कर दी जायेगी जबकि इस कानून का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है। प्रस्तावित एनसीआर और एनपीआर को लेकर भी कपोलकल्पित आशंकाएं उत्पन्न करने का कुचक्र रचा गया। गैर मुस्लिम नेताओं ने भी इस बारे में जिस तरह आग में घी डालने का काम किया वह वाकई चौंकाने वाला था। अपने निहित तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थों के लिए देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा करने का ये तरीका बेहद खतरनाक है। उस दृष्टि से केंद्र सरकार द्वारा दबाव में न आते हुए जिस दृढ़ता का प्रदर्शन किया गया वह सही नीति है। प्रधानमन्त्री द्वारा गत दिवस वाराणसी में जिस साफगोई से सीएए वापिस लेने से इंकार किया उसके बाद अब ये मुस्लिम समुदाय को तय करना होगा कि वह  टकराव जारी रखना चाहता है या ठंडे दिमाग से सोचकर उन तत्वों के शिकंजे से आजाद होना चाहेगा जिन्होंने उसे मुख्यधारा से अलग करने का षडयंत्र रचा और उस पर देश विरोधी होने का ठप्पा लगवाकर दूर जा बैठे। शाहीन बाग़ के आन्दोलन को लेकर मुस्लिम समाज में जो विजेता भाव जगाया गया था वह बीते कुछ दिनों में लुप्त होता दिख रहा है। इस आधार पर ये कहना गलत नहीं होगा कि सीएए को मुद्दा बनाकर शुरू किया गया शाहीन बाग़ का आन्दोलन मुस्लिम समाज का जबरदस्त नुकसान कर गया क्योंकि बात केवल भाजपा के घाटे और उसके विरोधी दलों के फायदे तक सीमित नहीं रही अपितु मुस्लिम समाज के अलग-थलग पड़ जाने पर आकर केन्द्रित हो गई। सबसे बड़ी बात ये हुई कि मुसलमानों का नेतृत्व अनुभवहीन हाथों में चला गया। सर्वोच्च न्यायालय रद्द कर दे तो बात अलग वरना तो सीएए अब एक वास्तविकता बन चुका है जिसे मुस्लिम समुदाय जितनी जल्दी समझ ले उतना बेहतर है वरना वह इसी तरह राजनीतिक शोषण का शिकार होता रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment