Friday 7 February 2020

नेहरु जी का पत्र : गेंद कांग्रेस के पाले में



प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी अपने ऊपर होने वाले राजनीतिक हमलों का जवाब देने में जल्दबाजी भले नहीं करें लेकिन मौका आने पर छोड़ते भी नहीं। दो दिन पहले राहुल गांधी ने युवाओं द्वारा उनको डंडे मारे जाने संबंधी बयान पर श्री मोदी ने लोकसभा में बिना श्री गांधी का नाम लिए तीखी टिप्पणी कर डाली। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर होने वाली बहस यूँ तो महज औपचारिकता होती है लेकिन प्रधानमंत्री हर वर्ष उसका जवाब देते हुए सरकार का पक्ष रखने के साथ ही विपक्ष पर चौतरफा हमला करने में भी नहीं चूकते। गत दिवस भी ऐसा ही हुआ जब उन्होंने सीएए ( नागरिकता संशोधन कानून ) के विरोध पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु के एक पत्र का उल्लेख करते हुए बताया कि उसमें भी पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को ही भारत की नागरिकता देने संबंधी बात कही थी न कि हर व्यक्ति को। नेहरु - लियाकत समझौते से एक साल पहले असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री को लिखे उक्त पत्र में नेहरु जी ने अल्पसंख्यक शब्द का जो उल्लेख किया उस पर कांग्रेस का ध्यान आकर्षित करते हुए प्रधानमन्त्री ने ये तंज भी कसा कि कांग्रेस जिन नेहरु जी को अपना आदर्श मानती है उनकी मंशा भी पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को ही भारत में नागारिकता देने की थी, बाकी को नहीं। उनके इस पैंतरे का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था। एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) को लेकर भी श्री मोदी ने गेंद कांग्रेस के पाले में डालकर इसकी शुरुवात के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया। दिल्ली का चुनाव कल खत्म हो जाएगा। जैसी उम्मीद की जा रही है उसके अनुसार तो शाहीन बाग़ और उसकी तर्ज पर देश भर में प्रायोजित धरने - प्रदर्शन आदि भी समाप्त कर दिए जायेंगे। लेकिन केन्द्र सरकार पर समाज को बाँटने का जो आरोप कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों ने लगाया उसके कारण मुस्लिम समाज पूरी तरह भ्रम की खाई में जा गिरा है। प्रधानमन्त्री ने लोकसभा में पं. नेहरु का जो पत्र पढ़कर सुनाया वह सरकारी दस्तावेज है इसलिए उसकी सत्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता। ऐसे में कांग्रेस को अब स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह नेहरु जी की इच्छा के विरुद्ध जाकर सीएए की मुखालफत कर रही है? भारत का विभाजन होने के बाद से ही पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू, सिख, पारसी, जैन और ईसाई समुदाय के नागरिकों का उत्पीडऩ शुरू हो गया था। धीरे-धीरे वहां अल्पसंख्यक आबादी घटती चली गई। जान, माल और अस्मत बचाने के लिए बहुतों ने इस्लाम कबूल कर लिया, वहीं बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जो किसी तरह बच-बचाकर भारत की सीमा में आ तो गये लेकिन बरसों - बरस बीत जाने पर भी उन्हें यहाँ की नागरिकता नहीं मिली जिससे वे बदहाली में अधिकारविहीन जि़न्दगी जी रहे हैं। ऐसे में इन लोगों को भारत की नागरिकता देने के लिए नेहरु जी की सरकार के समय बने कानून में समयानुकूल संशोधन किये जाने पर मचाया गया बवाल अनावश्यक ही नहीं औचित्यहीन और उससे भी बढ़कर देशहित के विरुद्ध है। प्रधानमंत्री द्वारा नेहरु जी के पत्र का खुलासा किये जाने के पहले पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का राज्यसभा में दिया भाषण चर्चा में आ चुका था जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की चर्चा करते हुए उन्हें भारत की नागरिकता देने का सुझाव दिया था। बेहतर हो कांग्रेस इस विषय में जिम्मेदारी का परिचय दे क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर जो पूर्वानुमान अभी तक आये हैं उनके मुताबिक कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर आ चुकी है। मुसलमानों में उसके प्रति झुकाव खत्म सा है वहीं हिन्दू-सिख सहित शेष समुदाय भी कांग्रेस को किसी तरह से भाव नहीं दे रहे। सीएए का विरोध जिस तरह दिशाहीन हुआ उससे कांग्रेस को जबर्दस्त नुकसान हुआ, जिसे उसके नेताओं को समझ लेना चाहिए। बेहतर हो पं. नेहरु एवं उसके बाद भी कांग्रेस के अनेक बड़े नेताओं द्वारा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के सम्बन्ध में व्यक्त चिंताओं को पार्टी का मौजूदा नेतृत्व समझे और तदनुसार अपनी नीति का निर्धारण करे। सीएए अब एक हकीकत है जिसमें सुधार और संशोधन समय के साथ हों ये ग़लत नहीं होगा लेकिन मौजूदा हालात में उसको लागू होने से रोकना कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापिसी जैसा ही रहेगा जो देश के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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