Monday 24 February 2020

ट्रंप की यात्रा : अमेरिका को भी भारत की जरूरत है




अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आज दो दिन की भारत यात्रा पर आए हैं। अहमदाबाद से शुरू होकर उनकी यात्रा आगरा होते हुए कल रात दिल्ली में समाप्त होगी।  इस यात्रा का समय अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।  इसी साल सर्दियों में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं जिसमें श्री ट्रंप दोबारा किस्मत आजमाने जा रहे हैं।  वे जीतेंगे या नहीं ये तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता किन्तु उनके अब तक के कार्यकाल में भारत के प्रति अमेरिका का रवैया अनेक दृष्टियों से अनुकूल रहा।  हालाँकि इसके पीछे वहां रहने वाले भारतवंशियों का योगदान भी काफी है किन्तु आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का जैसा समर्थन भारत को हाल के वर्षों में मिला वह अभूतपूर्व है। वैसे श्री ट्रंप की छवि एक सनकी और मुंहफट राजनेता की मानी जाती है जो राजनयिक मर्यादाओं से इतर टिप्पणियाँ कर बैठते हैं।  लेकिन ये भी उतना ही सच है कि पाकिस्तान के प्रति उनके शासन में जिस तरह की बेरुखी नजर आई उसकी वजह से भारत को वैश्विक स्तर पर बड़ा कूटनीतिक लाभ हुआ।  सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट ऑपरेशन, हाफिज सईद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करना, पाकिस्तान की आर्थिक सहायता में कटौती, अनुच्छेद 370 हटाये जाने को भारत का आन्तरिक मामला मानने और रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ रणनीतिक भागीदारी जैसे कदमों से दोनों देशों के बीच रिश्ते काफी दोस्ताना हुए हैं।  ट्रंप प्रशासन के महत्वपूर्ण पदों पर  भारतवंशियों की मौजूदगी भी इस बात का परिचायक है कि अमेरिका के लिए भारत अब एक जरूरत बन गया है।  हालाँकि बराक ओबामा के दौर में भी दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद अच्छे रहे परन्तु श्री ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से इनमें जो मजबूती आई वह आशा जगाने वाली रही।  यद्यपि ये कहना सच्चाई से आँखें चुराने वाली कोशिश होगी कि अमेरिका ने भारतीय हितों का पूरी तरह समर्थन और संरक्षण किया। वीजा नियमों में कड़ाई के साथ ही अमेरिकी युवाओं को नौकरी देने को लेकर बनाये दबाव की वजह से भारतीय अप्रवासियों और कारोबारियों को कतिपय दिक्कतें भी हुईं लेकिन कुल मिलकर श्री ट्रंप के आने के बाद अमेरिका की तरफ  से भारत को जो समर्थन और महत्व मिला वह उल्लेखनीय है।  सबसे बड़ी बात ये रही कि अमेरिका ने पश्चिम एशिया में इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध जो कड़ाई की उससे भारत का पक्ष सुदृढ़ हुआ।  ईरान और अमेरिका के बीच उपजे तनाव के कारण जरुर नुकसान की स्थिति बनी लेकिन अमेरिका के बदले रवैये की वजह से ही खाड़ी देशों के साथ ही सऊदी अरब जैसे इस्लामी देशों के साथ भारत के रिश्ते और मजबूत हुए।  अमेरिका की देखासीखी उसकी लॉबी के बाकी देश मसलन ब्रिटेन, कैनेडा, जापान, जर्मनी और इजरायल आदि ने भी विश्व मंचों पर भारत का समर्थन किया।  चीन के साथ व्यापार युद्ध शुरू करने की श्री ट्रंप की नीति ने भी अप्रत्यक्ष रूप से भारत को बल प्रदान किया।  इसकी वजह से दक्षिण एशिया में भारत की वजनदारी बढ़ी।  बीते कुछ सालों में चीन ने भी अनेक अवसरों पर भारत का विरोध करने में संकोच किया तो उसकी वजह भी अमेरिका का हमारे साथ खड़ा होना ही रहा।  वैसे बीच-बीच में अपनी आदतानुसार श्री ट्रंप ने ऐसे बयान दिए जिससे ऐसा लगा कि अमेरिका का मन साफ नहीं है। कश्मीर विवाद पर भारत-पकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की बात उन्होंने अनेक बार कही लेकिन भारत द्वारा साफ शब्दों में इसका विरोध करने पर उन्हें ये कहना पड़ा कि यदि दोनों देश चाहें तब। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने श्री ट्रंप को पटाने की अनेक कोशिशें कीं किन्तु विफल रहे जिससे ये साबित हुआ कि अमेरिका भारत से रिश्तों में दोबारा कड़वाहट पैदा करने का खतरा नहीं उठाना चाहता।  इसकी एक वजह ये भी रही कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय कूटनीति को जिस तरह से बहुआयामी बनाते हुए रक्षा उपकरणों के साथ व्यापार समझौतों में गुटीय सीमाओं को तोड़कर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज किया उससे भी वाशिंगटन में बैठे हुक्मरानों को ये समझ में आ गया कि भारत की उपेक्षा और पाकिस्तान को संरक्षण से उनके अपने हित प्रभावित होंगे।  अफगानिस्तान से निकलने की तैयारी के बीच अमेरिका के लिए दक्षिण एशिया में अपने हितों की रक्षा के लिए किसी ऐसे देश की जरूरत है जो चीन के मुकाबले खड़ा होने के साथ पाकिस्तान को भी नियंत्रण में रख सके।  सबसे बड़ी बात ये है कि अमेरिका की आंतरिक परिस्थितियों में वहां रह रहे भारतवंशियों की जो प्रभावशाली भूमिका है उसकी वजह से अमेरिका का प्रशासन अब भारत की उपेक्षा करने की बजाय उसकी तरफ  मैत्री का हाथ बढ़ाने की नीति पर चल रहा है।  आगामी चुनाव में श्री ट्रंप को मिलने वाले चंदे में भी भारतवंशियों का सहयोग मायने रखता है।  उस दृष्टि से राष्ट्रपति ट्रंप का अपने कार्यकाल के अंतिम महीनों में भारत आना उनके अपने स्वार्थों के लिहाज से भी जरूरी लगता है। भारत के साथ किसी बड़े व्यापारिक समझौते की सम्भावना से भले ही उन्होंने इसीलिये इंकार कर दिया और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे विवादस्पद विषय उठाने का संकेत भी दिया। लेकिन ये बात भी सही है कि इमरान खान की अनेक कोशिशों के बाद भी पाकिस्तान के साथ कड़ाई से पेश आने और चीन पर व्यापारिक दबाव बनाने की ट्रंप प्रशासन की नीति से भारत को काफी लाभ हुआ है। राष्ट्रपति ट्रंप की यात्रा के प्रबंधों को लेकर भारत में एक वर्ग आलोचना में जुटा हुआ है।  अहमदाबाद में आयोजित कार्यक्रम को धन की बर्बादी भी बताया जा रहा है। उनके काफिले की राह में आने वाली झुग्गियों के सामने दीवार खड़ी करने को लेकर भी तरह-तरह के सवाल खड़े किये जा रहे हैं किन्तु इन सबसे अलग हटकर देखें तो भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में इतनी मधुरता और नजदीकी पहले कभी नहीं रही।  इसका श्रेय श्री मोदी को देना गलत नहीं होगा किन्तु राष्ट्रपति ट्रंप ने भी इसमें अच्छा खासा योगदान दिया।  इसकी एक वजह उनकी व्यावसायिक पृष्ठभूमि भी हो सकती है। अपने अनिश्चित स्वभाव और कड़क रवैये के बावजूद उन्होंने वैश्विक स्तर पर जो नीतियाँ अपनाईं उनसे भारत भी लाभान्वित हुआ है। पाकिस्तान तो खैर, छोटी चीज है लेकिन चीन को जिस तरह से श्री ट्रंप ने घेरा उससे निश्चित तौर पर भारत को मजबूती मिली। उनकी यात्रा से भले ही सीधे तौर पर कुछ सामने न आये लेकिन कूटनीति में बहुत सारी बातें कभी बाहर नहीं आतीं। राष्ट्रपति ट्रंप की इस यात्रा के बारे में भी ऐसा होगा।  अनेक लोग इसे आगामी चुनाव में भारतीय मूल के मतदाताओं के समर्थन से जोड़ रहे हैं जो गलत भी नहीं है किन्तु अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा कूटनीतिक दृष्टि से सदैव महत्वपूर्ण होती है। उनके भारत आने से न सिर्फ  पाकिस्तान अपितु चीन सहित एशिया के बाकी देश भी प्रभावित होंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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