Wednesday 5 February 2020

शाहीन बाग़ जैसे तरीके ही देश विभाजन की नींव बने



एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) को लेकर लोकसभा में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय द्वारा दिए लिखित जवाब में स्पष्ट कर दिया गया कि अभी तक सरकार द्वारा उस बारे में कोई भी फैसला नहीं किया गया है। प्रधानमन्त्री भी पहले ही सार्वजानिक तौर पर इसे स्पष्ट कर चुके थे। जहां तक बात एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) की है तो उसे लेकर भी ये सफाई आ चुकी है कि उसके लिए की जाने वाली पूछताछ में भी किसी से भी नागरिकता प्रमाणित करने वाले दस्तावेज या जानकारी नहीं माँगी जावेगी। श्री राय ने बताया कि एनआरसी लागू करने के पहले केंद्र सरकार राज्यों से विधिवत सलाह मशविरा करेगी। उन्होंने ये भी कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बारे में कोई उल्लेख नहीं होने से भी सरकार के दावे की पुष्टि होती है। उल्लेखनीय है दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) के साथ ही विपक्ष एनआरसी और एनपीआर का मुद्दा उछालकर भाजपा को घेरने का प्रयास कर रहा है। यही नहीं तो पूरे देश में मुस्लिमों को सामने रखकर ये प्रचार किया जा रहा है कि सीएए लागू करने के बाद एनपीआर और फिर एनसीआर लागू किया जावेगा। दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में बीते डेढ़ माह से भी ज्यादा समय से जारी मुस्लिम महिलाओं का धरना राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है। देश के अनेक हिस्सों में उसकी देखासीखी मुस्लिम महिलाएं सड़क पर धरना देकर बैठी हुई हैं। दिल्ली के चुनाव में तो शाहीन बाग़ एक मुख्य मुद्दा बन चुका है। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सभी उसे अपने-अपने नजरिये से भुनाने में लगी हुई हैं। प्रधानमन्त्री ने दो दिन पहले एक चुनावी सभा में शाहीन बाग़ के धरने को एक प्रयोग बताकर निशाना साधा। कुल मिलाकर ये स्पष्ट होता जा रहा है कि सीएए के विरोध से शुरू अभियान को एनआरसी और एनपीआर का डर दिखाकर जि़ंदा रखने की कोशिश की जा रही है। इसमें जेएनयू, जामिया मिलिया और अलीगढ़ मुस्लिम विवि जैसे संस्थानों में सक्रिय भाजपा विरोधी वर्ग पूरी तरह से मदद दे रहे हैं। शाहीन बाग़ में गोली चलाने वाले युवक का जुड़ाव आम आदमी पार्टी के साथ निकल आने के बाद अब जामिया में गोली चलाये जाने वाले के बारे में भी ये संदेह गहरा रहा है कि वह भी प्रायोजित था। कहने वाले ये भी कह रहे हैं कि सारा बखेड़ा दिल्ली चुनाव को लेकर है और 8 फरवरी को मतदान होते ही सब शांत हो जाएगा फिर बिहार चुनाव के लिए विपक्ष नया मुद्दा तलाशने में जुटेगा। ये बात साफ है कि सीएए को लेकर सिवाय मुस्लिम समुदाय के किसी और को कोई शिकायत नहीं है। मुस्लिम समुदाय के धरने में इसीलिये चंद सियासी चेहरों के और कोई नहीं समर्थन करता नहीं दिखा। शाहीन बाग़ के आन्दोलन की तारीफ  करने वाले नेतागण भी धरना स्थल पर जाने से इसलिए डरते रहे जिससे दिल्ली का हिन्दू मतदाता कहीं नाराज न हो जाये। अब जबकि लोकसभा में गृह राज्य मंत्री ने लिखित रूप में एनसीआर के बारे में कोई विचार नहीं होने की बात कह दी गयी है तब विपक्ष को भी भय का भूत पैदा करने की अपनी रणनीति को छोड़कर जनता के हित में सही मुद्दे उछालना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार सारे काम अच्छे ही कर रही है। उसके अनेक निर्णय ऐसे हैं जिनके बारे में विपक्ष को जनता के बीच जाकर अपनी बात रखनी चाहिए। बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए उसके पास पर्याप्त मसाला और अवसर है। जनता भी ऐसे विषयों पर सियासी प्रतिबद्धता से उपर उठकर विपक्ष का साथ देती है। लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान ये देखने में आया है कि विपक्ष ऐसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश करता रहा जिनसे जनता का सीधा सरोकार नहीं था। 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद ये उम्मीद थी कि वह अपनी रणनीति में अपेक्षित सुधार करते हुए देश और जनहित के मुद्दे उठायेगा। लेकिन ऐसा लगता है उसने पिछली गलतियों से सीख नहीं लेने की कसम खा रखी है। सीएए के दिशाहीन विरोध और एनआरसी तथा एनपीआर का हौआ खड़ा कर मुस्लिम समाज में कट्टरपंथी नेतृत्व को पनपने का अवसर देकर विपक्ष ने जो गलती की उसका खामियाजा उसे भविष्य में भुगतना पड़ेगा। सीएए का हल्ला तो देर सवेर ठंडा पड़ जाएगा और एनआरसी पर सरकार का स्पष्टीकरण आने के बाद इसे लेकर भी अनिश्चितता नहीं रहेगी। ऐसे में अब विपक्ष को भी अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरीके से करना चाहिए। विशेष रूप से कांग्रेस के लिए ये जरूरी है कि वह राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर व्यवहार करना सीखे। सीएए और एनसीआर उसी के शासन काल में चर्चा में आये थे। बेहतर होता वह वामपंथियों के शातिरपने से बचे जो उसको सामने रखकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। शाहीन बाग़ जैसे आन्दोलन का उसे विरोध करना चाहिए था क्योंकि इस तरह के तौर तरीकों से ही देश के विभाजन की नींव रखी गई थी।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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