Tuesday 4 February 2020

अनावश्यक बयानबाजी से भाजपा को नुकसान



कर्नाटक के भाजपा नेता अनंत कुमार हेगड़े काफी फायरब्रांड माने जाते हैं। पूर्व में केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। विवादास्पद बयान देना उनकी आदत है या राजनीति करने की शैली ये तो वही जानते होंगे लेकिन उनके बड़बोलेपन से पार्टी को शर्मसार होना पड़ता है। अपने ताजे बयान में उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा किये गये स्वाधीनता संघर्ष को अंग्रेजों की सहमति और सहयोग से किया गया नाटक बता डाला। अब उनके फैलाये रायते को भाजपा नेतृत्व समेटने में लगा है। बिना शर्त माफी मांगने कहा गया है। श्री हेगड़े ने गांधी जी के अनशन वगैरह का भी मजाक उड़ाया। जैसा होता आया है उसे देखते हुए वे माफी मांग लेंगे और फिर बात आई-गई हो जायेगी। श्री हेगड़े पूर्व में भी इसी तरह के बयानों के लिए पार्टी द्वारा हड़काए जा चुके हैं। हालांकि वे अकेले भाजपा नेता नहीं हैं जो इस तरह की उल जलूल और अप्रासंगिक बयानबाजी करते हैं। एक तरफ  तो प्रधानमन्त्री हर भाषण में गांधी जी की प्रशस्ति किया करते हैं वहीं उनकी पार्टी की दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेतागण बिना सिर-पैर की बातें करते हुए अपनी और पार्टी दोनों की भद्द पिटवाने से बाज नहीं आते। गांधी जी और स्वाधीनता संग्राम एक दूसरे के समानार्थी हो चुके हैं। बापू से सैद्धांतिक मतभेद रखना या उनकी नीतियों की आलोचना करने में कुछ भी गलत नहीं है। आजादी की लड़ाई में भी अनेक नेताओं को उनके तौर-तरीके नापसंद थे। ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्रति उनका झुकाव ही सुभाषचन्द्र बोस और डा. भीमराव आम्बेडकर की नाराजगी का कारण बना। यहां तक भी माना जाता है कि मो.अली जिन्ना भी कांग्रेस में उंचा ओहदा पाने की महत्वाकांक्षा रखते थे। लेकिन जब उन्हें लगा कि बापू पंडित नेहरु को ही कमान सौंपने का मन बना चुके हैं तब उन्होंने पाकिस्तान का राग अलापा। खैर, ये सब बातें आज के सन्दर्भ में शोधकर्ताओं के लिए रह गईं हैं क्योंकि इतिहास की अपनी जुबान तो होती नहीं और जो कुछ भी उसके हवाले से सामने आता है वह इतिहासवेत्ताओं द्वारा वर्णित होता है जिनकी निष्पक्षता सदैव सवालों के घेरे में रहा करती है। इसीलिये उसके ज्ञात - अज्ञात प्रसंगों पर हर कोई टीका-टिप्पणी करे तो फिर अनावश्यक विवाद उत्पन्न होते हैं। भाजपा एक सिद्धांतवादी पार्टी है जिसकी निश्चित दिशा है लेकिन राजनीति में आलोचना करते समय भी जिस मर्यादा और सौजन्यता की जरूरत होती है उसका ध्यान नहीं रखे जाने से उसकी छवि को धक्का पहुंचता है। विरोधी तो छोडिय़े उसके अपने समर्थक भी इस तरह की टिप्पणियों से खुद को असहज महसूस करते हैं। श्री हेगड़े के पहले भी अनेक भाजपा नेता बापू और उनके तरीकों पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर चुके हैं। हर बार पार्टी नेतृत्व उन्हें सोच-समझकर बोलने की हिदायत के साथ माफी मांगने का निर्देश देता है लेकिन कुछ समय बाद कोई दूसरा नेता अनावश्यक विवाद को जन्म दे देता है। इस कारण से भाजपा के बारे में ये छवि भी बनती है कि उसकी गांधी भक्ति कोरा दिखावा है। नाथूराम गोडसे के बचाव में भी कुछ नेताओं की बयानबाजी के कारण भाजपा को लज्जित होना पडा है। जहां तक बात हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता की है तो ये बात किसी से भी छिपी नहीं है कि भाजपा हिन्दू हितों की संरक्षक पार्टी है। यद्यपि धर्मनिरपेक्षता के प्रति उसका कोई विरोध नहीं है लेकिन मंदिर आन्दोलन के चरमोत्कर्ष के दौर में लालकृष्ण आडवाणी ने धर्मनिरपेक्षता के प्रचलित मॉडल का मजाक उड़ाते हुए उसे छद्म करार दे कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नया नारा दिया जिसमें किसी समुदाय विशेष के तुष्टीकरण से परहेज की बात थी। भाजपा के वैचारिक स्रोत रास्वसंघ का तो स्पष्ट कहना है कि हर भारतीय नागारिक की राष्ट्रीयता हिन्दू है। संघ विरोधी वामपंथी इतिहासकार ये साबित करने में जुटे हुए हैं कि आर्य विदेशी नस्ल है और भारत का कोई प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास नहीं है। मोदी सरकार आने के बाद ये बहस योजनाबद्ध तरीके से और तेज हो गयी है। लेकिन भाजपा ने जिस तरह सरदार पटेल और महात्मा गंधी के प्रति अपना झुकाव प्रदर्शित किया उसके बाद उसके साथ अनेक ऐसे लोग और पार्टियां भी जुड़ीं जो कभी उसके साथ बैठने तक में सकुचाती थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही भाजपा ने जिस तेजी से अपने पैर पूरे देश में फैलाये उसमें उसकी समन्वयवादी नीतियां भी सहायक बनीं। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि रखने वाले नरेंद्र मोदी के साथ वे रामविलास पासवान भी आकर जुड़ गये जिन्होंने गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था। नीतीश कुमार का भाजपा से अलग होकर लालू के पास चला जाना और फिर लौटकर आना भी मामूली बात नहीं थी। शिवसेना की कट्टर छवि की वजह से भाजपा द्वारा उससे दूरी बना लेना भी श्री मोदी के दौर में संभव हुआ। ऐसे में गांधी जी के बारे में व्यर्थ की बातें करने से श्री हेगड़े जैसे नेता समाचारों में सुर्खियां भले बन जाते हों लेकिन ऐसा करते हुए वे पार्टी और विचारधारा दोनों को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे नेताओं के कारण ही भाजपा केन्द्रीय सत्ता में मजबूती से जमी होने के बावजूद राज्यों की सत्ता गंवाती जा रही है। सही बात तो ये है कि महज चुनाव जीतने के लिए ऐरे-गेरे किसी को भी पार्टी में भर्ती करने के कारण भाजपा की छवि द्वितीय श्रेणी के उस अनारक्षित रेल डिब्बे जैसी होकर रह गयी जिसमें कोई भी आकर बैठ सकता है। भले ही श्री हेगड़े कर्नाटक के जाने-पहिचाने नेता हों लेकिन बापू के बारे में उनका ताजा बयान उनकी घटिया सोच को दर्शाता है जो राजनीतिक तो छोडिय़े साधारण स्तर का चातुर्य भी नहीं कहा जा सकता। बहरहाल पार्टी नेतृत्व ने उनको माफी मांगने का जो आदेश दिया वहीं पर्याप्त नहीं है। यदि भाजपा चाहती है कि उसकी कट्टरवादी छवि में सुधार हो तब उसे श्री हेगड़े और उसी तरह के दीगर नेताओं को शुद्ध हिन्दी में समझा देना चाहिए। प्रधानमन्त्री जिस कुशलता से पार्टी की नीतियों को एक के बाद एक लागू करने में लगे हैं उसके कारण भाजपा की छवि एक मजबूत और राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में स्थापित हो गई है लेकिन बीच-बीच में कुछ नेता आपत्तिजनक बयान देकर उस छवि को मटियामेट करने से नहीं चूकते। पार्टी के आला नेताओं को चाहिए कि ऐसे नेताओं को नियंत्रण में रखें वरना किसी दिन इनकी बकवास प्रधानमन्त्री की सारी उपलब्धियों पर पानी फेर देगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment