Monday 30 March 2020

अगले 15 दिन बेहद महत्वपूर्ण



बीते कुछ दिनों से भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में पूर्वपेक्षा ज्यादा वृद्धि चिंता का कारण है। हालांकि जानकार सूत्रों के अनुसार आंकड़े में बढ़ोत्तरी का कारण जाँच किट की उपलब्धता के बाद संदिग्ध लोगों के परीक्षण में तेजी आना है। सबसे अच्छी बात ये है कि अधिकतर मामलों में संक्रमण प्रारंभिक स्थिति में होने से मरीज का इलाज संभव है और यही वजह है कि अभी तक मरने वालों की संख्या काफी कम है। उनमें भी अधिकतर वे रहे जिन्हें डायबिटीज और किडनी की बीमारी थी। देश में सस्ती जांच किट आने और निजी पैथोलॉजी लैब को भी जांच हेतु अनुमति मिल जाने से जांच कार्य में तेजी आई है। इस कारण ये अनुमान है कि आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा और बढ़ेगा। लेकिन दूसरी तरफ  ये भी सही है कि प्रारंभिक अफरातफरी की बाद अब चिकित्सा का ढांचा पहले से बेहतर होता जा रहा है। अस्पतालों के अलावा दूसरी जगहों पर भी संदिग्धों को कोरोनटाइन करने के इंतजाम किये जा रहे हैं। खाली पड़े शासकीय भवन, छात्रावास, होटल, रेल के डिब्बे आदि का उपयोग करने की तैयारी से बिस्तरों की समस्या हल होने की उम्मीद बढ़ी है। बीते तीन-चार दिनों से प्रवासी मजदूरों के पलायन की वजह से जरूर खतरा बढ़ गया था लेकिन केंद्र तथा राज्य सरकारों ने स्थिति को सँभालने पर पूरा जोर लगाया जिससे हालात धीरे-धीरे ही सही किन्तु काबू में आ रहे है। पैदल अपने गावों को लौट पड़े गरीबों को रास्ते में भोजन और आश्रय के साथ उनके गंतव्य तक पहुँचाने के इंतजाम भी सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर चल रहे हैं। देश भर से जो खबरें आ रही हैं उनसे पता चलता है कि समाज भी अपनी रचनात्मक भूमिका का निर्वहन पूरी ईमानदारी और जिम्मेदारी से कर  रहा है। बड़े और छोटे शहरों में गरीबों और बेरोजगार हुए श्रमिकों को भोजन प्रदान करने का काम भी जमकर चल रहा है। ये एक अच्छा संकेत है। चारों तरफ  मंडराते मौत के खतरे के बीच लोग अपनी परेशानी भूलकर जरुरतमंदों की सहायता के लिए आगे आकर पूरी दुनिया को ये सन्देश दे रहे हैं कि भारत में मानवीय संवेदनाएं गहराई तक समाई हुई हैं। इस कारण शासन-प्रशासन का भी हौसला बुलंद हुआ है। बड़े उद्योगपतियों के अलावा, फिल्म अभिनेताओं, खिलाडिय़ों, कुमार विश्वास जैसे साहित्कारों, धार्मिक न्यासों, कर्मचारियों, राजनेताओं सहित समाज के हर वर्ग ने आर्थिक सहयोग देकर राहत एवं बचाव कार्यों में सहयोग हेतु हाथ आगे बढ़ाया है। किसी भी आपदा से लडऩे के लिए समाज की संगठित शक्ति की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। प्रारंभ में तो लोगों को लगा कोरोना भारत में नहीं आयेगा। लेकिन ज्यों - ज्यों इसके मरीज सामने आने लगे त्यों-त्यों लोग सतर्क हुए लेकिन फिर भी बेपरवाही बनी रही। खास तौर पर विदेशों से लौटे लोगों ने निर्देशों की अवहेलना करने की उपेक्षा की जिससे संक्रमण फैला। उसी के बाद देश में पूरी तरह लॉक डाउन करना पडा। लेकिन उसके प्रति भी अपेक्षित गम्भीरता नहीं बरती गयी। जिसके बाद गत दिवस प्रधान मंत्री ने मन की बात में लोगों से लॉक डाउन के लिए क्षमा मांगते हुए ये स्पष्ट कर दिया कि अब और कड़ाई बरती जायेगी। श्रमिकों के पलायन को रोकने के लिए जिलों और राज्यों की सीमाएं सील करते हुए प्रशासन को उसके लिए जरूरी कदम उठाने की जिम्मेदारी सौंप दी और पालन नहीं होने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दे डाली। मप्र के इंदौर नगर में उसके बाद आज से तीन दिन तक पूरी तरह कर्फ्यू लागू कर दिया। ये एक संकेत है कि यदि लॉक डाउन का पालन नहीं किया जाता तो फिर कर्फ्यू को उसके असली रूप में लागू किया जावेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कोरोना से लड़ने के लिए हो रहे प्रयासों की सराहना तो की किन्तु लगे हाथ ये चेतावनी भी दे डाली कि ये समय बहुत ही सावधानी बरतने का है। जरा सी चूक से लॉक डाउन से हुआ फायदा मिट्टी में मिल जाएगा। बीते दो तीन दिनों में दिल्ली और गाजिय़ाबाद में जो भीड़ दिखाई दी यदि उसी तरह के हालात आगे भी जारी रहे तब कोरोना की स्टेज तीन आने का खतरा पैदा हो सकता है जिसमें बस्तियां की बस्तियाँ संक्रमित हो सकती हैं और इटली जैसे हालात बन सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि अब लॉक डाउन के महत्व और जरूरत को गम्भीरता से लिया जावे। आगामी दो सप्ताह बहुत ही निर्णायक होंगे। यदि इस दौरान संक्रमण और नहीं फैला तो फिर ये उम्मीद की जा सकती है कि 30 अप्रैल तक भारत कोरोना को काबू करने की स्थिति में आ सकेगा। वरना लॉक डाउन को आगे भी बढ़ाना पड़ सकता है। यद्यपि आज ही भारत सरकार ने लॉक डाउन की समयावधि बढ़ाने से इनकार कर दिया है। कोरोना कितना खतरनाक है और मानवीय संपर्कों से तेजी से फैलता है ये बात कमोबेश सबकी समझ में आ चुकी है लेकिन उसके बाद भी लापरवाही बरती जाती रही तो ये लड़ाई लंबी खिंचेगी और इंसानी जिंदगियों के रूप में देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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