Tuesday 31 March 2020

मरकज के मौलवी मुसलमानों के दुश्मन हैं



भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या कल शाम तक 1300 पार कर चुकी थी। बीते कुछ दिनों में जो रफ्तार है उसके मुताबिक वृद्धि का आंकड़ा अब प्रतिदिन 10 फीसदी की औसत रफ्तार से भी ज्यादा से बढ़ रहा है। इसकी वजह निश्चित रूप से जांच सुविधा का विस्तार होना भी है वहीं लॉक डाउन के प्रति अनेक जगह पर बरती गयी घोर लापरवाही भी। प्रवासी मजदूरों के पलायन के बाद संक्रमित लोगों के आंकड़े कितने बढ़ेंगे ये कहना कठिन है। लेकिन गत दिवस दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में मरकज नामक मुस्लिम धर्म के एक केंद्र में सैकड़ों ही नहीं हजारों  लोगों के लम्बे समय से जमा होने का खुलासा होने के बाद अब ये डर भी सताने लगा है कि कुछ लोगों की जिद और पागलपन लाखों की जान जोखिम में डाल सकता है। मरकज के बारे में पता चला है यह केंद्र मुस्लिम धर्मप्रचारक प्रशिक्षित करता है। यहां न सिर्फ भारत अपितु विदेश से भी लोग आते हैं। लॉक डाउन होने के बाद दिल्ली की पुलिस ने मरकज के मौलवी को बाकायदा जमावड़ा खत्म करने के नोटिस दिए लेकिन वे अपनी ऐंठ में रहे और कल जब वह केन्द्र खाली करवाकर जांच कराई गई तो लगभग 25 संक्रमित निकल आये। कुछ लोग पहले ही वहां से वापिस चले गये थे। उनमें से 6 तेलंगाना जाकर मर भी गये क्योंकि वे कोरोना संक्रमित हो चुके थे। गत दिवस मरकज से निकाले गये सैकड़ों मुस्लिम धर्मावलम्बी इस दौरान वहां आने वाले अन्य लोगों के भी संपर्क में आये होंगे। अब दिल्ली सरकार के सामने ये कठिन  समस्या है कि उन सबका पता कैसे लगाये जिससे उनकी भी जांच कराई जा सके। अनेक लोगों के उप्र लौटने की खबर मिलते ही वहां की सरकार विभिन्न जिलों में उनकी खोज खबर लेने में जुटी हुई है। मरकज में जमा हुए लोगों का बाहरी दुनिया से कोई सम्पर्क नहीं रहा होगा ये मान लेने का कोई आधार नहीं है। क्योंकि जैसा बताया गया वहां अनेक देशों के मुस्लिम धर्मावलम्बी जमा हुए थे। और जब उन्हें दिल्ली पुलिस द्वारा जमावड़ा खत्म करने का नोटिस दिया गया उसके बाद भी मौलवी साहब ने उसका पालन क्यों नहीं किया ये पूरी मुस्लिम कौम के लिए बड़ा सवाल है। दिल्ली के ही शाहीन बाग़ इलाके में सीएए विरोधी धरना को कोरोना के आगमन के बाद भी इस ऐलान के साथ जारी रखने की हठधर्मिता दिखाई गई कि इस्लाम के अनुयायी होने से कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। ऐसे लोगों को ईरान के भयावह मंजर को जान लेना चाहिए जहां इस्लामी कट्टरपंथी सरकार की धर्मान्धता ने बड़ी संख्या में लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया। लॉक डाउन के बाद जब सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दिया गया तब भी अनेक मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ी जाने की खबरें आईं जबकि मौलाना घरों में रहकर ही नमाज पढऩे की अपीलें करते रहे। लेकिन मरकज की घटना न केवल शर्मनाक बल्कि खतरनाक भी है। धर्म का पालन करना व्यक्तिगत आस्था का विषय है जिस पर बंदिश लगाना मानवीय स्वतन्त्रता पर कुठाराघात है लेकिन धर्म भी एक आचार संहिता है जिसमें अनुशासन का सबसे ज्यादा महत्व है परंतु मुस्लिम समुदाय में अधिकतर लोग बहुत ही धर्मभीरु होने से मुल्ला - मौलवियों की बातों को बिना विचारे स्वीकार कर लेते हैं जिसकी वजह से वे मुख्यधारा से अभी तक दूर ही बने रहे। यद्यपि टीवी चैनलों पर अनेक सुशिक्षित मुसलमानों ने मरकज मामले पर मुल्ला मौलवियों की जमकर आलोचना की और इस बात को साफ किया कि इस्लाम मानव की हिफाजत का पैगाम देता है , उनकी जान खतरे में डालने का नहीं। मस्जिदों में जमा होकर नमाज पढ़ने की बजाय अपने घरों में ही इबादत करने से इस्लाम कमजोर नहीं होगा। देश के तमाम बड़े मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी तदाशय का सन्देश दिया है। मरकज में लॉक डाउन की जिस तरह धज्जियां उड़ाई गईं और दिल्ली पुलिस के नोटिस को रद्दी की टोकरी लायक समझा गया उससे लगा कि वहां के मौलवी साहब को ये गुमान रहा होगा कि जैसी रियायत और नरमी शाहीन बाग़ के आन्दोलनकारियों के साथ बरती गयी वैसी ही उनके साथ भी होगी। लेकिन उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए था कि देशव्यापी लॉक डाउन लागू होते ही शाहीन बाग़ का तम्बू उखाड़ दिया गया। मरकज से बाहर आये मुस्लिम धर्मावलम्बियों में से कितने संक्रमित निकलेंगे ये तो जांच के बाद सामने आएगा लेकिन जो लोग कल के पहले वहां से वापिस चले गये। उन्होंने कितने लोगों को कोरोना का संक्रमण दिया होगा ये गंभीर चिंता पैदा करने वाला मसला है। इस घटना के बाद शासन और प्रशासन को न सिर्फ  मुस्लिम अपितु अन्य धर्मों के ऐसे संस्थानों पर नजर रखनी होगी जहां लोगों का जमावड़ा हो। धार्मिक क्रियाकलापों के लिए हमारा संविधान पूरी आजादी देता है लेकिन यदि उनसे समाज के हितों पर आघात होता हो तो उनकी इजाजत नहीं दी जा सकती। वर्तमान में हिन्दुओं का बड़ा पर्व नवरात्रि चल रहा है। कल अष्टमी और परसों रामनवमी है। शीघ्र ही महावीर जयन्ती आने वाली है। बैसाखी भी करीब है। जैसी कि खबर है उक्त सभी त्यौहार में सार्वजनिक तौर पर कोई आयोजन नहीं होने का निर्णय सम्बन्धित धर्म प्रमुखों ने किया है जिसे उनके अनुयायी मान रहे हैं। नवरात्रि पर देश के सभी छोटे - बड़े देवी मन्दिर सूने पड़े रहे। जैन समाज में नित्य मन्दिर जाने का जो रिवाज है उसे भी लॉक डाउन में शिथिल कर दिया गया। ऐसे में मरकज में धर्म की आड़ में देश-विदेश के हजारों मुस्लिमों का जमावड़ा करना मानवता विरोधी कृत्य है जिसके लिए आयोजकों के विरुद्ध इतनी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि कोई और इस तरह की जुर्रत न करे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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