Monday 23 March 2020

जनता कर्फ्यू : मेरा देश वाकई बदल रहा है



बीते कुछ दिनों में अचानक समूचा देश मौत के भय से थर्रा उठा। कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में अचानक हुई वृद्धि और देश के अनेक प्रदेशों में उसका फैलाव होने से इस महामारी के भारत में पैर पसारने की आशंका प्रबल हो उठी। आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और करोड़ों लोगों के सामने गंदी बस्तियों में जीवन यापन करने की मजबूरी के कारण कोरोना का संक्रमण बेकाबू होने का खतरा पैदा हो गया। मुम्बई जैसे महानगर में इसके मरीजों की तेजी से बढ़ती संख्या ने चिंता और बढ़ा दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ये चेतावनी दी कि जरा सी चूक होने पर भारत भी चीन, ईरान और इटली की राह पर जा सकता है। अचानक प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हुए 22 मार्च को जनता कफ्र्यू की अपील कर डाली। शाम को 5 बजे केवल 5 मिनट के लिए घर के दरवाजे, बालकनी या छत पर तालियां, घंटा, घंटी, थाली, शंख बजाकर उन समस्त लोगों का आभार व्यक्त करने का आह्वान भी किया जो-जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना के आक्रमण से देशवासियों को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डालते हुए दिन रात जुटे हुए हैं। कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए वे अपने परिवार से दूर रहने में भी हिचकिचा नहीं रहे। शुरू में प्रधानमंत्री की वह सलाह और आह्वान लोगों को अटपटा लगा। कुछ तो ये भ्रम फैलाने में जुट गए कि श्री मोदी नोटबंदी जैसा कोई कदम उठाने की जमीन तैयार कर रहे हैं। लेकिन 22 मार्च आने के एक दो दिन पहले ही देश के अनेक हिस्सों से कोरोना के फैलाव की खबरें आने लगीं और कई शहरों में लॉक डाउन करने की नौबत आ गयी। नागपुर में तो पान की दुकानें तक बंद करवा दी गईं। 21 मार्च तक देश को समझ आ चुका था कि प्रधानमन्त्री का इशारा किस तरफ था। यद्यपि कुछ शहरों में तो 22 मार्च के पहले ही सब कुछ बंद हो चुका था लेकिन कल रविवार को आयोजित जनता कफ्र्यू के दौरान देश भर में जो हुआ वह अकल्पनीय था। प्रधानमंत्री के आह्वान पर बिना किसी ऐतराज या आपत्ति के लोगों ने घर में खुद को सीमित कर लिया। बिना जोर-जबरदस्ती के इस तरह का अनुशासन एक नया अनुभव था। दिन भर चारों तरफ  सुनसान रहा। न वाहनों का शोर और न और कोई आवाज। अनेक लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अरसे बाद उन्होंने चिडिय़ों की चहचहाहट सुनी। घर-परिवार के साथ समय गुजारने का अवसर पाने से भी लाखों लोग अभिभूत हो गए। लेकिन शाम ज्योंही घड़ी ने 5 बजाये पूरा देश सामूहिक रूप से अपने घर के सामने, या बालकनी पर खड़े होकर तालियां बजाने लगा, किसी के हाथ में घंटा था तो कोई पूजा की घंटी बजाने लग गया। कुछ ने शंख ध्वनि की तो कुछ उत्साही जन अपने वाहनों के हार्न बजाकर कोरोना से लड़ रहे जांबाज योद्धाओं के प्रति राष्ट्र द्वारा कृतज्ञता ज्ञापित करने के अभियान का हिस्सा बन गए। कुल मिलाकर ये एक अद्भुत नजारा था। तनाव के इस माहौल में भी पूरे देश को एकजुट होकर एक गम्भीर बीमारी से लडऩे के लिए पहले सतर्क और फिर एकजुट करने का यह प्रयास श्री मोदी की नेतृत्व क्षमता का ज्वलंत प्रमाण बन गया। जनता कफ्र्यू के साथ ही देश के बड़े हिस्से में लॉक डाउन कर दिया गया। पूरे देश में 31 मार्च तक रेल, बसें और हवाई सेवा बंद कर दी गयी। विदेश जाने और आने दोनों पर रोक है। शिक्षण संस्थाओं में अवकाश देते हुए परीक्षाएं भी रोक दी गईं। संक्षेप में कहें तो कमोवेश पूरे देश को घर में रहने मजबूर कर दिया गया। लेकिन जिस तरह जनता ने इन बंदिशों को स्वीकार करते हुए सरकार का साथ दिया वह देशवासियों के जिम्मेदार होने का ताजा प्रमाण है। ऐसे अवसरों पर भी कुछ लोग अपनी राजनीतिक कुंठाएं निकाले बिना नहीं रहते और कोरोना को लेकर भी ऐसा हो रहा है। लेकिन संतोष का विषय है कि देश का जनमानस इस समय अपने दायित्व के निर्वहन के प्रति गम्भीर है। उसके सामान्य जीवन में अनगिनत परेशानियां आ खड़ी हुई हैं। आगे हालत और भी खराब होने की आशंका से भी वह अवगत है। लेकिन न कोई विरोध, न अपेक्षा और न ही असंतोष। ये सब देखकर इस दावे पर विश्वास करने का मन हो जाता है कि मेरा देश वाकई बदल रहा है। आजादी के आन्दोलन में भी गांधी जी के आह्वान पर इसी तरह देशवासी लडऩे को तत्पर हो जाते होंगे। लालबहादुर शास्त्री द्वारा सप्ताह में एक समय के उपवास का आग्रह किस तरह राष्ट्रीय संकल्प बन गया ये भी देखने में आ चुका है। 22 मार्च के जनता कफ्र्यू ने कोरोना से लडऩे की इच्छाशक्ति और हौसले का जो प्रगटीकरण किया उसने नई उम्मीदें जगा दी हैं। कोरोना का प्रकोप कब तक रहेगा ये दावे के साथ कोई नहीं बता पा रहा। सबके अपने-अपने अनुमान हैं । लेकिन एक बात तय हो गयी कि भारत का आम नागरिक इस खतरे से अवगत होने के साथ ही उससे सतर्क भी हो गया है। जो निश्चित रूप से एक बड़ी बात है। इस तरह के संकट के वक्त किसी देश की जनता का नेतृत्व पर विश्वास बड़ा मददगार बनता है। और ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि नरेंद्र मोदी इस कसौटी पर एक बार फिर खरे साबित हुए हैं। मौत की आहट से आतंकित जनमानस में उत्साह, आत्मविश्वास और साहस का संचार मामूली बात नहीं होती किन्तु श्री मोदी ने यह कर दिखाया। कोरोना भारत में पैर फैला चुका है लेकिन देश उससे निपटने के लिए जिस तरह तैयार दिखाई दे रहा है वह शुभ संकेत है। सीमित चिकित्सा सुविधाओं और संसाधनों के बाद भी अभी कोरोना भारत में चीन, ईरान और इटली जैसे हालात भले न पैदा कर पाया हो किन्तु जरा सी चूक से भारी जनहानि हो सकती है। उस दृष्टि से सही समय पर सतर्कता और साहस दोनों का समन्वय कायम किया जा सका। इसके लिए पूरा देश बधाई का पात्र है। ये जज्बा और सावधानी आगे भी रहनी चाहिए क्योंकि कोरोना नामक अदृश्य शत्रु कब, कैसे और किस पर हमला करेगा इसका पूर्वानुमान लगाना असम्भव है। इससे बचने के लिए क्या किया जाना है ये बताने की जरूरत नहीं है। संचार और प्रचार माध्यमों से जरूरी जानकारी दी जा रही है। उम्मीद की जा सकती है कि अभी तक जिस सूझबूझ का परिचय लोगों ने दिया वह आगे भी जारी रहेगा। कोरोना से बचना भी देश सेवा है क्योंकि इसका एक मरीज अनगिनत लोगों की जि़न्दगी खतरे में डाल सकता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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