Friday 6 March 2020

बिना स्वास्थ्य समृद्धि नहीं आ सकती



कोरोना वायरस को लेकर हल्ला  तो खूब मच रहा है लेकिन अपेक्षित गम्भीरता नहीं दिखाई दे रही। कतिपय टीवी  चैनलों ने तो कोरोना को भी अपनी दर्शक संख्या बढ़ाने का माध्यम बना लिया है। भय का भूत भी खड़ा किया जा रहा है। ऐसे अवसरों पर भारत में सुझाव वीर भी खुलकर सामने आ जा आते हैं। कोरोना  से बचने के लिए गांजा , भांग , शराब पीने जैसी सलाहें भी आने लगी हैं। हल्दी के सेवन और कपूर साथ रखने का मशवरा भी सुनने में आया है। ये भी कहा जा रहा है कि होली के बाद ज्योंही तापमान बढ़ेगा त्योंही कोरोना अपने आप खत्म हो जाएगा। इसका संक्रमण होने के बाद 14 दिन तक वायरस शरीर के भीतर बना रहता है और इस दौरान कभी भी प्रभावशील होकर जान के लिए खतरा बन सकता है। भारत में अब तक इसका खास असर नहीं दिखाई दिया। संक्रमित मरीज भी विशाल जनसंख्या के लिहाज से तो बेहद कम हैं। विदेशी पर्यटकों के जरिये इसका आगमन हुआ या जो भारतीय विदेशों से लौटे वे इसका  वायरस लेकर आये ये जांच का विषय है लेकिन जिस तरह की सावधानियां बरतने का सुझाव चिकित्सक और बाकी जानकार दे रहे हैं उनमें अधिकतर स्वच्छता से सम्बधित हैं। अभिवादन में हाथ मिलाने की बजाय नमस्कार करने और कुछ भी खाने के पहले हाथ अच्छी से तरह धोने की बात भारतीय संदर्भ में नई  नहीं है। बहरहाल एल्कोहल युक्त सेनेटाईजर और मास्क का उपयोग करने जैसा सुझाव , भीडभाड़ वाले इलाकों से बचने की हिदायत का पालन करना आम भारतीय के लिए कठिन है। उल्लेखनीय है कि उक्त दोंनों चीजों की कालाबाजारी भी शुरू हो गयी है। इसी तरह करोड़ों ऐसे लोग जो झुग्गी - झोपडिय़ों में नारकीय हालातों में रहते हों उनसे उक्त सलाहों पर अमल करने की उम्मीद व्यर्थ है। एक सुझाव ये भी आया कि बाहर की खाद्य सामग्री का उपयोग न करें। आशय आनलाइन खाने की सेवा का उपयोग न करने का है। लेकिन जिस तरह की चेतावनियां और सुझाव कोरोना को लेकर आये हैं उनका संज्ञान लेने वाला वर्ग हमारे देश में बहुत छोटा है। इस कारण ये आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि चीन जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर भारत में कोरोना महामारी का रूप ले सकता है। और ये गलत भी नहीं है। यूँ भी हमारे देश में बीमारियों के बारे में  जितना हल्ला मचता है उनसे बचाव की व्यवस्था उस अनुपात में नहीं होती। कोरोना वायरस का इलाज करने के  बारे में तो चिकित्सा जगत अभी तक अनभिज्ञ था लेकिन भारत में  प्रतिवर्ष डेंगू और स्वाइन फ्लू का हमला होता है और पर्याप्त चिकित्सा नहीं मिल पाने से सैकड़ों मारे जाते हैं। उ.प्र. के गोरखपुर में सुअरों से फैलने वाली बीमारी की चपेट में आकर दर्जनों बच्चे हर साल काल के गाल में समा जाते है। गत वर्ष बिहार में चमकी बुखार से बड़ी तादात में छोटे बच्चे मारे गए। हाल ही में यही हालात राजस्थान और गुजरात में भी बने। जब बीमारी फैलती है तब कुछ दिनों तक तो खूब हल्ला मचता है लेकिन बाद में सब कुछ पहले जैसा ही होकर रह जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में डेंगू का हमला सालाना कार्यक्रम जैसा है। इन सभी बीमारियों की मुख्य वजह गंदगी और मच्छर हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन और स्वच्छता सर्वेक्षण का बिलकुल असर नहीं हुआ ये  कहना तो गलत होगा किन्तु देश के महानगरों तक में सफाई की व्यवस्था जिस तरह लचर है उसकी वजह से संक्रामक बीमारियाँ बे रोक - टोक भारत में तांडव मचाती हैं। कोरोना तो कुछ दिनों बाद विदा हो जाएगा लेकिन तापमान बढऩे के साथ ही गर्मियों के मौसम में होने वाली बीमारियाँ दस्तक देंगीं। फिर आ जायेगी बरसात। कुल मिलाकर भारत में मौसम जनित बीमारियों के अलावा संक्रामक बीमारियाँ पूरे तामझाम के साथ आ धमकती हैं और पूरी चिकित्सा व्यवस्था उनके सामने असहाय खड़ी  नजर आती है। भारत को विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हो रहे दावों के बीच इस तरह की बीमारियों से निपटने में अक्षमता की वजह से भारत की छवि निश्चित रूप से खराब होती है। विकसित देशों में इस तरह के संकट आने पर उनकी पुनरावृत्ति रोकने के  लिये युद्धस्तर पर कोशिशें की जाती हैं लेकिन हमारे देश में उनका दिखावा ज्यादा होता है। कोरोना तो  बड़ी बात है  किन्तु अभी तो भारत मच्छरों से होने वाली बीमारियों से ही मुक्त नहीं हो सका। बेहतर हो बड़ी-बड़ी बातें करने और तात्कालिक उपाय करने की बजाय भारत में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता के साथ गंभीरता बरती जाए। किसी भी देश में स्वास्थ्य की स्थिति सुधारे बिना आर्थिक समृद्धि की कल्पना करना बेकार है। भारत की आर्थिक  समृद्धि का सपना बिना स्वस्थ भारत के पूरा नहीं हो सकेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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