Saturday 28 March 2020

शिक्षण संस्थानों में 30 जून तक अवकाश कर दिया जावे



कोरोना वायरस के कारण तीन सप्ताह का लॉक डाउन आधा अप्रैल बीत जाने के बाद समाप्त होगा। इसके बाद विद्यालय स्तर के शिक्ष्ण संस्थानों में नए सत्र की शुरुवात होगी। लेकिन तब तक कोरोना का चक्र पूरी तरह टूट चुका होगा ये सोचकर निश्चिन्त होना मूर्खता होगी। पुरानी व्यवस्था में मार्च और अप्रैल में परीक्षा होने के बाद 30 अप्रैल को परीक्षाफल आ जाता था तथा पूरी मई और जून महीने ग्रीष्मावकाश रहता था। एक जुलाई से नए सत्र का शुभारम्भ होता था। लेकिन नई व्यवस्था में अब विद्यालयीन सत्र अप्रैल के प्रथम सप्ताह से शुरू होकर मई तक चलाया जाता है और केवल जून माह में अवकाश रहता है। कहा जाता है कि इसके पीछे निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों द्वारा सत्र के आरम्भ में मिलने वाले प्रवेश शुल्क के साथ ग्रीष्मावकाश की फीस अग्रिम रूप से वसूल लेने की सोच है। बहरहाल अब ये व्यवस्था लागू हो चुकी है जिसके कारण मई की भीषण गर्मी में भी बच्चों को विद्यालय जाना होता है। जहां तक जून की छुट्टी का सवाल है तो देश के अनेक हिस्सों में पहले सप्ताह से ही मानसून पूर्व का माहौल बनने लगता है। केरल में एक , मुम्बई में सात और नागपुर होते हुए मध्यप्रदेश आदि में 15 जून तक बरसात का आगमन अमूमन हो ही जाता है। भारत में गर्मियों की छुट्टियां नाना - नानी के घर जाने का पर्याय होती थी लेकिन नई व्यवस्था ने उस प्रथा में काफी अवरोध उत्पन्न कर दिए। हमारे देश में शादी ब्याह भी अधिकतर गर्मियों में किये जाने के पीछे भी शिक्षण संस्थानों में होने वाला अवकाश ही प्रमुख कारण था। नई शिक्षा और परीक्षा प्रणाली की वजह से शिक्षण सत्र में किये गये परिवर्तन के औचित्य और नुकसान-फायदे को लेकर बहस चला करती है लेकिन इस वर्ष जिस तरह की असाधारण परिस्थित्तियां पैदा हो गईं हैं उनके बाद लॉक डाउन समाप्त हो जाने पर भी अप्रैल माह में नये शिक्षण सत्र की शुरुवात किये जाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता। देश भर में लाखों बच्चों का एक साथ घरों से बाहर निकलना नए खतरे का कारण बन सकता है। ये मान लेना गलत होगा कि उस समय तक कोरोना का संक्रमण पूरी तरह से लुप्त हो जाएगा। वैसे भी चिकित्सा जगत ये आशंका जता रहा है कि लॉक डाउन 15 अप्रैल के आगे भी बढ़ाया जा सकता है। कुछ तो जून तक की बात कर रहे हैं। कहने का आशय ये हैं कि हालात असामान्य तौर पर खतरनाक हैं और ऐसे में विद्यालयीन बच्चों की हिफाजत सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और उस दृष्टि से केंद्र सरकार को चाहिए बिना देर लगाए ये घोषणा कर दे कि नया शिक्षण सत्र अब एक जुलाई से प्रारंभ होगा। इससे अभिभावक भी निश्चिंत हो जायेंगे और विद्यालयों का प्रबन्धन भी तदनुसार नये सत्र की योजना बनाने में जुट सकेगा। ये निर्णय जितनी जल्दी हो जाए उतना अच्छा होगा क्योंकि ऐसी स्थितियों में भी अप्रैल के दूसरे हफ्ते में भले ही विद्यालय खुल जाएं किन्तु शायद ही कोई माँ- बाप अपने बच्चे को पढऩे भेजेगा। चूंकि ये स्वास्थ्य संबंधी आपातकाल है इसलिए बाकी सब बातें इस समय अर्थहीन होकर रह गईं हैं। जिस तरह सरकार ने आर्थिक मोर्च पर बीते दो दिनों में अनेक राहत पैकेज घोषित किये ठीक वैसे ही शिक्षण संस्थानों के ग्रीष्मावकाश को भी 30 जून तक बढ़ा दिया जावे। देश के भविष्य को बचाकर रखना बहुत जरुरी है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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