Saturday 21 March 2020

कोरोना : तीसरे विश्व युद्ध की पटकथा




मुझे 1962 के चीनी हमले की हल्की यादें हैं | सुरक्षा कोष में पिताजी अपनी सोने की अंगूठी दे आये थे | उससे मैं उत्साहित हुआ और बाद में जब विद्यालय में तिरंगे झंडे का बैज बिकने आया तब माताजी से मांगकर एक रुपये में मैनें उसे  खरीदा और बड़े ही गर्व के साथ अपने कोट पर लगाकर विद्यालय  जाता था | लेकिन उस युद्ध से जबलपुर में किसी खतरे का एहसास नहीं हुआ | बहुत बाद में जान पाया कि भारत  उस युद्ध में हार गया था | उसके बाद जब 1965 की लड़ाई हुई तब तक समझ का विस्तार हो चुका था | भारतीय सेना के विजय अभियान की खबरें अख़बारों और रेडियों पर सुनकर हर देशवासी की तरह मैं भी खुश होता था | पैटन टैंको  का कब्रिस्तान और सैबर जेट के मुकाबले हमारे छोटे से नैट विमानों के करतबों की जानकारी आत्त्म गौरव की अनुभूति करवाने वाली थी | चीनी हमले के कलंक को हमारी सेनाओं ने धो दिया | लेकिन उस समय भी जबलपुर में बैठे हुए कभी किसी खतरे का एहसास नहीं हुआ | 1971 की  बांग्ला देश वाली जंग तक महाविद्यालय में आ  चुका था | पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेनाओं ने अपने युद्ध कौशल से इतिहास रच डाला | पहली बार भारत अंतर्राष्ट्रीय दबाव को ठुकराता दिखा | स्व. इंदिरा गांधी दुनिया की ताकतवर शासक बनकर उभरीं | उस युद्ध का विवरण भी रेडियो और अख़बारों में सुनने और पढने मिलता था | लेकिन तब तक युद्ध की आहट हमारे शहर में भी सुनाई देने लगी थी | रात में ब्लैक आउट होता | बिजली बंद कर  दी  जाती थी | आसमान से आती किसी भी आवाज को दुश्मन का विमान मानकर भय का माहौल बन जाता | जबलपुर में रक्षा उत्पादन के अनेक संस्थान होने से पाकिस्तान के हवाई हमले की आशंका बनी रहती | उसके बाद लम्बे समय तक पाकिस्तान से कोई   जंग नहीं हुई लेकिन आतंकवाद नामक समस्या गाहे बगाहे डराती रही | फिर भी कभी मौत सिर पर मंडराने का भी अंदेशा नहीं हुआ  | अनेक बीमारियों का दौर भी आया | नए नए वायरस जनित रोगों ने भी हमला बोला लेकिन वे भी आये और चले गये | पर  बीते कुछ दिनों से और ख़ास तौर पर कल रात से जबलपुर में भी कोरोना ग्रसित चार मरीज मिल जाने के बाद पूरा शहर जिस प्रकार खौफजदा है वह अभूतपूर्व मंजर है | संचार क्रांति के इस दौर में सूचना का विस्फोट खबरों के प्रवाह को सदैव गतिमान रखता है | उसमें अतिरेक भी कम नहीं है | खबरों की आड़ में भय का व्यापार भी जमकर होता है | न जाने कहां  - कहाँ से लाल बुझक्कड़ के आधुनिक अवतार व्हाट्स एप विवि के माध्यम से ज्ञान बांटते फिरते हैं | कोरोना के भय से घर में हूँ | बाहर  सन्नाटा है | न कोई  आ रहा है न जा रहा है | 

कुछ देर पहले पिता जी के पास बैठकर मौजूदा हालात पर चर्चा की तो वे अनायास दुसरे विश्व युद्ध का बारे में बताने लगे | तब रेडियो ही सहारा होता था | अख़बारों में भी उतनी विस्तार से खबरें नहीं आती थीं | जर्मनी के हमले की आशंका भी नहीं थी | लेकिन जरूरी चीजों का अभाव था | जो स्थानीय सैनिक अंगरेजी सेना के सदस्य बनकर विदेशों में लड़ने गये उनकी कुशलता जरुर चिंतित किया करती रही लेकिन अपनी जान  का खतरा नहीं होने से जीवन  सहज रूप से चलता रहा | वह  महायुद्ध छह वर्ष चला था | पिताजी ने उससे जुडी और भी बातें बताईं लेकिन सबसे बड़ी बात उनने ये बताई कि जैसा डर कोरोना का है ऐसा उनने कभी नहीं देखा | 

उनकी बात थी भी सही | दुनिया के नष्ट होने की भविष्यवाणियां समय समय पर होती रही हैं | लेकिन बजाय  डरने के लोग उसका मजा लेते हैं | टीवी चैनल तो इस तरह की खबरों का व्यापार ही  करते हैं | लेकिन कोरोंना अब वास्तविक खतरा बनकर आया है | अरबों - खरबों के अस्त्र शस्त्र गोदामों में धुल खाते रह गए और एक अदृश्य वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर विश्व युद्ध से भी बदतर हालात पैदा कर दिए | विज्ञान को अपने बस में करने का दावा करने वाले मुल्कों में जिस पैमाने पर लाशों के ढेर लगे वह चौंकाने के साथ ही नई चिंताएं पैदा कर  रहा है | 

कहती हैं कोरोना  का टीका तैयार होने वाला है | लेकिन तब तक ज़िन्दगी की गारंटी नहीं है | भारत जैसे देश में तो सब वैसे ही भगवान भरोसे चलता है | ऐसे  में ये सवाल पैदा हो गया है कि भले ही कोरोना जैविक यूद्ध के लिए तैयार किया वायरस न हो लेकिन इसने मानवता विरोधी मानसिकता वाले देशों के सिरफिरे शासकों को एक रास्ता दिखा दिया दुनिया को तबाह करने का | 

परमाणु हथियारों से पैदा हुआ खतरा कोरोना के सामने बौना नजर आ रहा है | बिना एक भी गोली चले और सेना के आगे बढ़े ही हजारों मारे जा चुके हैं और लाखों उसकी चपेट में आकर मौत से जूझ रहे हैं | अमेरिका और चीन एक दुसरे को  को कोरोना  के लिए दोषी  बता  रहे है | लेकिन इस सबसे अलग हटकर उत्तर कोरिया के किम जोंग जैसे तानाशाह यदि दुनिया को इस नई जंग में झोंकने पर आमादा हो गये तब क्या होगा ये वैश्विक चिंता का विषय होना चाहिए | एक वायरस क्या कर सकता  है ये दुनिया देख और भुगत रही है |

मजाक - मजाक में एक कहावत का उपयोग होता है कि बुढ़िया मर गई इसकी चिंता नहीं | डर इस बात का है मौत ने घर देख लिया | 

कोरोना अब तक जितनी जानें निगल गया उससे ज्यादा खतरा इस बात का है कि इसने भावी विश्व युद्ध के तौर तरीके दुनिया को बता दिए |

आलेख - रवीन्द्र वाजपेयी 

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