Monday 2 March 2020

भारत के लिए उबरने का स्वर्णिम अवसर




कोरोना वायरस ने चीन को तो भारी नुकसान पहुँचाया ही लेकिन उससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। पूंजी बाजार जबरदस्त गोते लगा रहे हैं। इसके प्रभावस्वरूप भारत के शेयर बाजार में भी बीते कुछ दिनों से हिचकोले महसूस किये गये। निवेशकों का अरबों का नुकसान होना बताया जा रहा है। पहले से मंदी की शिकार चल रही अर्थव्यवस्था के लिए ये हालात दूबरे में दो आसाढ़ वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। एक तरफ  तो उक्त वायरस से संक्रमण का खतरा है वहीं दूसरी ओर चीन में आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हो जाने की वजह से भारत जैसे देश में कच्चे माल और अन्य जरुरी चीजों का अभाव हो गया है। जिन भारतीय उद्योगपतियों ने चीन में अपने कारखाने स्थापित कर रखे हैं वे भी काम बंद हो जाने की वजह से मुसीबत में फंस गए। हालंकि चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी आने के आसार नजर आते ही अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ पहले से ही अपना कारोबार समेटकर भारत में जमने की सोचने लगी थीं किन्तु मौजूदा स्थितियों में अब ऐसा करना उनके लिए संभव नहीं रहा। चूँकि चीन से न कोई आ रहा है और न ही वहां जा रहा है इसलिए वहां की स्थिति कब तक सुधरेगी ये पता नहीं लग पा रहा। निश्चित रूप से ये एक बड़ा संकट है जो आर्थिक सुस्ती को और गम्भीर बना रहा है किन्तु मुश्किल के इस दौर में में भी नई उम्मीदें जागृत हो रही हैं। आर्थिक जगत की जानकारी रखने वाले अनेक विशेषज्ञ ये मान रहे हैं कि इस संकट में भारत के लिए उद्योग-व्यापार क्षेत्र में अपार संभावनाएं पैदा हुईं हैं। औद्योगिक संगठनों की प्रतिनिधि संस्था एसोचैम ने इस धारणा की पुष्टि करते हुए कहा है कि कोरोना वायरस से पैदा हुए हालात भारत के निर्यात बाजार को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कर सकते हैं। हालंकि ये बात भी याद रखनी होगी कि बीते दो दशक के दौरान भारतीय उद्योग कच्चे माल के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर करने लगे हैं। यही वजह है कि कोरोना संकट के बाद से भारत का मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर भी संकटग्रस्त हो गया। लेकिन जब ये तय हो गया कि चीन को उससे उबरने में लंबा समय लगेगा तब विश्व बाजार में उसकी जगह लेने वाला सबसे उपयुक्त देश भारत ही हो सकता है। ये उम्मीद कोई और जताता तब शायद उस पर भरोसा नहीं होता लेकिन एसोचैम जैसे संस्थान ने इस सम्भावना को विश्वसनीय माना तब उम्मीद की जा सकती है। लेकिन केवल खयाली पुलाव पकाने से भारत विश्व बाजार में चीन के स्थान को भरने में सफल नहीं हो सकेगा। अच्छा होगा केन्द्र और राज्य सरकारें उद्योगों के लिए विशेष पैकेज और रियायतें घोषित करें। वैसेे भी आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए ऐसे कदमों की उम्मीद और जरूरत थी। अब जबकि चीन से मिल रही प्रतिस्पर्धा में व्यवधान आ गया है इसलिए भारत के पास स्वर्णिम अवसर है अपनी अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों पर ले जाने का। भारत में कारोबारियों के पास खासा अनुभव है और काम करने वाले हुनरमंद कामगार भी। ऐसे में इस मौके को लपकने में भी यदि भारत चूक गया तब सिवाय हाथ मलने के और कुछ नहीं बचेगा। केंद्र सरकार कहने को तो आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए काफी कुछ करने के दावे कर रही है लेकिन कोरोना वायरस के बाद उत्पन्न हालातों में अब ऐसे उपाय करने की जरूरत है जिनका लाभ त्वरित मिलने लगे। किसी देश के राजनीतिक नेतृत्व और आर्थिक प्रबंधन की परीक्षा ऐसे ही अवसरों पर होती है। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार को इसी मोर्चे पर सर्वाधिक आलोचना झेलनी पड़ रही है। ऐसे में यदि वह समय रहते देश में अनुकूल वातावरण बनाकर औद्योगिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए नीति निर्धारण करे तो बड़ी बात नहीं भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने का रास्ता खुल सकता है। यद्यपि कुछ लोगों का अभी भी ये मानना है कि चीन लम्बे समय तक इस स्थिति में नहीं रहेगा और जल्दी ही दोबारा मैदान में उसी हौसले के साथ खड़ा नजर आयेगा लेकिन वैश्विक शक्ति संतुलन के मद्देनजर ये कहा जा सकता है कि अमेरिका सहित पश्चिम के विकसित देश उसे पहले जैसा पनपने नहीं देंगे। सही बात ये है कि विश्व व्यापार संगठन के नाम पर आई मुक्त अर्थव्यवस्था जिन विकसित देशों ने अपनी मंदी दूर करने के लिए दुनिया भर पर थोपी थी वे उसका अपेक्षित लाभ नहीं ले पाये जबकि चीन ने अपने चारों तरफ  खींचे लौह आवरण को स्वयं होकर तोड़ते हुए अपने दरवाजे पूरे विश्व के कारोबारियों के लिए खोलकर अकल्पनीय तरक्की हासिल कर ली। अमेरिका के बाजारों तक में चीन का बना सामान धड़ल्ले से बिकने लगा। कोरोना वायरस ने चीन के उस दबदबे को पलक झपकते कमजोर कर दिया। विकसित देशों में चूँकि श्रमिक बहुत महंगे हैं इसलिए वे चीन में उत्पादन गतिविधियाँ ठप्प होने का लाभ चाहकर भी नहीं ले सकेंगे। सस्ते मानव संसाधन के मामले में भारत ही चीन के मुकाबले वैश्विक अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम है। एसोचैम द्वारा दिए संकेत के मर्म को समझकर केन्द्र सरकार को फौरन ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे उद्योग-व्यापार जगत निराशा से निकलकर उत्साह का प्रदर्शन करे। भाग्य में विश्वास नहीं करने वालों को भी ये तो मानना ही पड़ेगा कि कोरोना वायरस में जहां चीन का दुर्भाग्य निहित है तो वह भारत की किस्मत खोलने का अवसर भी लेकर आया है। अब ये हमारे ऊपर है कि हम उसका किस तरह फायदा उठा पाते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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