Saturday 14 March 2020

दंगाइयों से हर्जाना वसूली का कानून पूरे देश में लागू हो



उप्र सरकार द्वारा जुलूस, प्रदर्शन, हड़ताल और बंद आदि के दौरान होने वाले उपद्रव से सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों से हर्जाना वसूलने के लिए गत दिवस एक अध्यादेश लाया गया। बीते दिनों अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सीएए विरोधी दंगों के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों के नाम और पते युक्त चित्रों के पोस्टर सड़कों पर प्रदर्शित किये जाने पर स्वत: संज्ञान से विचार करते हुए उप्र सरकार को उन्हें उतारने का आदेश देते हुए उसे निजता और सम्मान के विरुद्ध बताया। राज्य सरकार उस आदेश के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय गई लेकिन वहां भी उससे सवाल पूछा गया कि उस कदम का कानूनी आधार क्या था? उच्च न्यायालय ने अपने आदेश के क्रियान्वयन हेतु 16 मार्च तक का समय दिया है। उक्त आदेश पर पूरे देश में बहस हो रही है। दंगाइयों की निजता और सम्मान की बात बहुतों को हजम नहीं हुईं। दंगों के दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाना आम हो गया है। लखनऊ दंगों का पूरा घटनाक्रम टीवी कैमरों में सीधा प्रसारित हुआ था। उप्र सरकार ने उसके बाद नुकसान की भरपाई दोषी व्यक्तियों से करने के लिए बाकायदा नोटिस देकर वसूली की कार्रवाई शुरू कर दी। दंगा भड़काने के आरोपी कुछ लोगों के नाम, पते और चित्र युक्त पोस्टर लगाकर सार्वजनिक किये गए। जिन्हें अलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गोविन्द माथुर ने हटवाने के आदेश दे दिए। सर्वोच्च न्यायालय में उस आदेश के विरुद्ध की गयी अपील की सुनावाई के दौरान भी राज्य सरकार को असहज लगने वाले प्रश्नों का सामना करना पड़ा। इसीलिये योगी सरकार ने बिना देर किये एक अध्यादेश निकलवा दिया जिसमें सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले से उसका हर्जाना वसूल किये जाने का प्रावधान है। यद्यपि इसकी विस्तृत नियमावली इतनी जल्दी तैयार नहीं हो सकती इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपील में राज्य सरकार को कितनी राहत मिलेगी ये कहना कठिन है लेकिन अध्यादेश लागू होने के बाद दंगों के दौरान उपद्रव करने वालों में खौफ  जरूर पैदा होगा ये उम्मीद की जा सकती है। योगी सरकार के इस कदम की आलोचना करने वाले भी शांत नहीं बैठेंगे किन्तु हर समझदार व्यक्ति इस बात को लेकर चिंतित है कि जनांदोलनों के दौरान तोडफ़ोड़ सामान्य हो गई है। पुलिस की गाडिय़ों के अलावा सार्वजनिक बसों और निजी वाहनों को क्षति पहुँचाने और आग लगा देने की प्रवृत्ति आम होती जा रही है। निजी संपत्ति भी निशाने पर होती है। लखनऊ के उपद्रव में सीसी कैंमरों के जरिये दोषी तत्वों की पहिचान करने के बाद राज्य सरकार द्वारा उन पर हर्जाने की कार्रवाई की गयी। दिल्ली में हुए हालिया दंगों में भी बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी सम्पत्ति में तोडफ़ोड़ और आगजनी का नजारा दिखाई दिया। इस परिप्रेक्ष्य में योगी सरकार द्वारा जारी किया गया अध्यादेश सामयिक कदम भी है और साहसिक भी। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति और आन्दोलन की स्वतंत्रता एक आवश्यक तत्व है लेकिन हमारे देश में इसके स्वछंदता में बदल जाने से अनुशासनहीनता का बोलबाला हो गया। कानून का लिहाज और भय दोनों नजर नहीं आते। आन्दोलनकारी कब दंगाई बन जाते हैं ये समझ ही नहीं आता। किसी भी मांग के लिए सड़क पर खड़े वाहनों को नुकसान पहुंचाना या जला देना कैसा लोकतंत्र है? पुलिस चौकी में आग या किसी दूकान अथवा मकान को जला देने का भी औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता। लखनऊ और दिल्ली के दंगों के बाद के जो चित्र आये उन्हें देखकर लगा कि दंगाइयों को केवल सजा देने मात्र से काम नहीं चलने वाला। उस दृष्टि से योगी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर केंद्र सरकार को भी विचार करते हुए पूरे देश के लिए वैसा ही कानून बनाने की पहल करना चाहिए। हो सकता है सरकार के कुछ सहयोगी भी इस पर आपत्ति दर्ज करवाएं और इसमें भी सांप्रदायिकता ढूंढ ली जावे लेकिन लोकतंत्र को बेलगाम होने से बचाने के लिए ऐसा करना निहायत जरूरी हो गया है। शांतिपूर्ण आन्दोलन कब हिंसक हो जाए कहना कठिन होता है। ये कहना भी गलत नहीं है कि भीड़ का लाभ लेकर असामाजिक, अपराधी और राष्ट्रविरोधी तत्व अपना खेल दिखा देते हैं। निजी खुन्नस निकालने का काम भी होता है। पहले ऐसे लोगों की पहिचान नहीं हो पाने से पुलिस और प्रशासन उनके विरुद्ध कुछ करने में सक्षम नहीं होते थे लेकिन अब सीसी कैमरों की मदद से उपद्रवियों की शिनाख्त सम्भव है। ऐसे में उनके द्वारा की जाने वाली तोडफ़ोड़ और आगजनी की भरपाई उनसे किया जाना संभव हो गया है। इस आधार पर योगी सरकार के इस अध्यादेश का राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में समर्थन किया जाना चाहिये। कानून केवल किताबों में सिमटकर रह जाने की बजाय व्यवहारिक हो और उसके पालन के प्रति गम्भीरता हो इसके लिए ऐसे कदम जरूरी हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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