Thursday 26 March 2020

भारत के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाने का अवसर



कोरोना ने चीन को एक बार फिर दुनिया के सबसे चालाक, धोखेबाज और अविश्वसनीय देश की कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया है। आर्थिक महाशक्ति बन चुके इस देश ने कोरोना वायरस के फैलाव से लेकर उसके बचाव तक की प्रक्रिया को जिस तरह से गोपनीय बनाये रखा उससे उसकी रहस्यमय छवि और मजबूत हो गई है। विगत दिवस उसने दावा किया कि कोरोना संकट पर वह विजय प्राप्त कर चुका है और वहां जनजीवन सामान्य हो चला है। यहाँ तक कि जिस वुहान में कोरोना वायरस ने सबसे पहले हमला किया वहां के कारखानों में उत्पादन शुरू होने के चित्र भी चीन के सरकार नियंत्रित समाचार माध्यमों ने जारी किये। लेकिन इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन को वहां की स्थिति का अध्ययन करने की अनुमति न देकर चीन ने एक फिर ये साफ कर दिया कि वह दुनिया को जितना दिखाता है उससे ज्यादा छिपा लेता है। कोरोना से संक्रमित लोगों में से कितनों की मृत्यु हुई इस बारे में शेष विश्व को सही जानकारी नहीं मिल सकी। और शायद मिलेगी भी नहीं क्योंकि ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि मृतकों की जो संख्या उसने प्रचारित की वह ऊँट के मुंह में जीरे जैसी ही है। कहते हैं कोरोना से मरने वालों के शवों को थोक के भाव जला दिया गया। ताजा जानकारी के अनुसार कोरोना के बाद चीन में मोबाईल का उपयोग करने वालों की संख्या अचानक 90 लाख घट गयी। इसके साथ ही ये खबर भी है कि हजारों लोग लापता हैं। चीन में किसी के लम्बे समय तक लापता रहने पर ये मान लिया जाता है कि सरकार ने उसे ठिकाने लगा दिया या फिर वह किसी जेल में बंद है। मानवाधिकारों को फिजूल की बात मानने वाले चीन को लेकर ये संदेह पूरी दुनिया में व्यक्त किया जा रहा है कि कोरोना वायरस उसकी दूरगामी कार्ययोजना का हिस्सा था। हो सकता है किसी गड़बड़ी की वजह से दूसरों के लिए गड्ढा खोदने के फेर में वह खुद भी उसी में गिर गया। वैसे चीन में मानवीय जि़न्दगी हमेशा कीड़े मकोड़े जैसी रही है जिसकी वजह से उसे मरने वालों को लेकर लेशमात्र भी सहानुभूति या दु:ख नहीं हुआ। यहाँ तक कहा जा रहा है कि जिन बुजुर्गों को कोरोना संक्रमण हुआ उन्हें बिना इलाज ही मरने दिया गया। वैसे भी चीन में कोई काम नहीं करने वाले बुजुर्गों को शहरों के बजाय सुविधाविहीन गाँवों में भेजने की आघोषित नीति है। एक बात और जो पूरी दुनिया को परेशान किये हुए है वह है कोरोना का असर चीन के बहुत ही छोटे से हिस्से तक सीमित रहना। कहते हैं वह वुहान से आगे नहीं निकला। यद्यपि वुहान वैसे भी बहुत विशाल प्रान्त है जिसकी आबादी यूरोप के अनेक देशों से भी ज्यादा है। तानाशाही व्यवस्था के कारण चीन ने लॉक डाउन से भी बढ़कर तो लोगों के घर के सामने लकड़ी के पटिये ठोंककर उनका बाहर निकलना पूरी तरह से बंद कर दिया। उनकी जरूरतों की कोई चिंता भी वहां की सरकार ने नहीं की जैसी प्रजातांत्रिक देश कर रहे हैं। ये सब देखते हुए सवाल उठ रहा है कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद चीन के साथ अमेरिका और उसके समर्थक माने जाने वाले देश किस हद तक व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे ? सोचना तो भारत को भी पड़ेगा क्योंकि कोरोना को लेकर चीन की नीयत में खोट होने के अंदेशे के बाद भारत को सतर्क होना चाहिए। ये बात भी सामने आने लगी है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के चौपट होने का लाभ लेने की विस्तृत कार्ययोजना चीन ने तैयार कर ली है। ये भी खबर है कि वैश्विक पूंजी बाजारों में आई गिरावट के दौरान चीन ने बड़ी मात्रा में शेयरों की खरीदी करते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर नियंत्रण का दांव चल दिया है। ऐसा करके वह पश्चिमी देशों की आर्थिक रीढ़ तोड़ते हुए विश्व व्यापार पर एकाधिकार के अपने मास्टर प्लान को लागू करने की योजना पर आगे बढ़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर भारत जैसे देश पर पड़ेगा। इसलिए बेहतर होगा यदि हम संकट के इस दौर में ऐसा कुछ करें जिससे घरेलू उद्योग देश को आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम हो सकें। किसी भी मुसीबत के समय बुद्धिमान लोग भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न होने पाए इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। चीन उससे भी एक कदम आगे बढ़कर काम कर रहा है। चूँकि भारत का असली मुकाबला उसी से है इसलिए लॉक डाउन के इस कालखंड में देश के आर्थिक चिंतकों और व्यवसायिक प्रबंधकों को कोरोना के बाद की आर्थिक परिस्थितियों के बारे में ठोस सुझाव और कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। चिकित्सा सुविधाओं में क्रांतिकारी सुधार भी आर्थिक विकास की नींव होती है और भारत में इसकी क्षमता विकसित करनी होगी। विश्व व्यापार संगठन से बंधे होने के बाद भी भारत को अपनी औद्योगिक और व्यापारिक नीतियों का भारतीयकरण करना होगा। ये कहना गलत नहीं है कि 135 करोड़ का देश यदि अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ मैदान में उतर जाये तो इस संकट के बाद भी कम समय में अपनी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे संकट के बादलों को छांटने में कामयाब हो जायेगा। कोरोना निश्चित रूप से अकल्पनीय मुसीबत लेकर आया है लेकिन जो देश प्रधानमन्त्री के कहने पर एक निश्चित समय पर थाली और ताली बजाकर अपनी एकजुटता दिखा सकता है वह असम्भव को संभव बनाने की क्षमता भी रखता है। लॉक डाउन का ये दौर चिंता से ऊपर उठकर चिन्तन का समय है। सभी विचारशील लोगों से निवेदन है कि वे इस समय का देशहित में उपयोग करते हुए सार्थक विचार प्रस्तुत करें। हमारे देश में कुछ नहीं हो सकता जैसी अवधारणा को दफनाने का ये बेहतरीन अवसर है। कोरोना निश्चित रूप से बड़ा खतरा है लेकिन मुसीबत से डरकर भागने की बजाय उसका सामना करने के साथ ही भविष्य के लिए पूरी तरह सुरक्षित होने का प्रयास करना ही किसी कौम और देश के भविष्य को तय करता है। भारत के पास भी अपने भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाने का अवसर कोरोना ने दिया है।

मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस: सम्पादकीय
-रवीन्द्र वाजपेयी

भारत के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाने का अवसर

कोरोना ने चीन को एक बार फिर दुनिया के सबसे चालाक, धोखेबाज और अविश्वसनीय देश की कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया है। आर्थिक महाशक्ति बन चुके इस देश ने कोरोना वायरस के फैलाव से लेकर उसके बचाव तक की प्रक्रिया को जिस तरह से गोपनीय बनाये रखा उससे उसकी रहस्यमय छवि और मजबूत हो गई है। विगत दिवस उसने दावा किया कि कोरोना संकट पर वह विजय प्राप्त कर चुका है और वहां जनजीवन सामान्य हो चला है। यहाँ तक कि जिस वुहान में कोरोना वायरस ने सबसे पहले हमला किया वहां के कारखानों में उत्पादन शुरू होने के चित्र भी चीन के सरकार नियंत्रित समाचार माध्यमों ने जारी किये। लेकिन इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन को वहां की स्थिति का अध्ययन करने की अनुमति न देकर चीन ने एक फिर ये साफ कर दिया कि वह दुनिया को जितना दिखाता है उससे ज्यादा छिपा लेता है। कोरोना से संक्रमित लोगों में से कितनों की मृत्यु हुई इस बारे में शेष विश्व को सही जानकारी नहीं मिल सकी। और शायद मिलेगी भी नहीं क्योंकि ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि मृतकों की जो संख्या उसने प्रचारित की वह ऊँट के मुंह में जीरे जैसी ही है। कहते हैं कोरोना से मरने वालों के शवों को थोक के भाव जला दिया गया। ताजा जानकारी के अनुसार कोरोना के बाद चीन में मोबाईल का उपयोग करने वालों की संख्या अचानक 90 लाख घट गयी। इसके साथ ही ये खबर भी है कि हजारों लोग लापता हैं। चीन में किसी के लम्बे समय तक लापता रहने पर ये मान लिया जाता है कि सरकार ने उसे ठिकाने लगा दिया या फिर वह किसी जेल में बंद है। मानवाधिकारों को फिजूल की बात मानने वाले चीन को लेकर ये संदेह पूरी दुनिया में व्यक्त किया जा रहा है कि कोरोना वायरस उसकी दूरगामी कार्ययोजना का हिस्सा था। हो सकता है किसी गड़बड़ी की वजह से दूसरों के लिए गड्ढा खोदने के फेर में वह खुद भी उसी में गिर गया। वैसे चीन में मानवीय जि़न्दगी हमेशा कीड़े मकोड़े जैसी रही है जिसकी वजह से उसे मरने वालों को लेकर लेशमात्र भी सहानुभूति या दु:ख नहीं हुआ। यहाँ तक कहा जा रहा है कि जिन बुजुर्गों को कोरोना संक्रमण हुआ उन्हें बिना इलाज ही मरने दिया गया। वैसे भी चीन में कोई काम नहीं करने वाले बुजुर्गों को शहरों के बजाय सुविधाविहीन गाँवों में भेजने की आघोषित नीति है। एक बात और जो पूरी दुनिया को परेशान किये हुए है वह है कोरोना का असर चीन के बहुत ही छोटे से हिस्से तक सीमित रहना। कहते हैं वह वुहान से आगे नहीं निकला। यद्यपि वुहान वैसे भी बहुत विशाल प्रान्त है जिसकी आबादी यूरोप के अनेक देशों से भी ज्यादा है। तानाशाही व्यवस्था के कारण चीन ने लॉक डाउन से भी बढ़कर तो लोगों के घर के सामने लकड़ी के पटिये ठोंककर उनका बाहर निकलना पूरी तरह से बंद कर दिया। उनकी जरूरतों की कोई चिंता भी वहां की सरकार ने नहीं की जैसी प्रजातांत्रिक देश कर रहे हैं। ये सब देखते हुए सवाल उठ रहा है कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद चीन के साथ अमेरिका और उसके समर्थक माने जाने वाले देश किस हद तक व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे ? सोचना तो भारत को भी पड़ेगा क्योंकि कोरोना को लेकर चीन की नीयत में खोट होने के अंदेशे के बाद भारत को सतर्क होना चाहिए। ये बात भी सामने आने लगी है कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था के चौपट होने का लाभ लेने की विस्तृत कार्ययोजना चीन ने तैयार कर ली है। ये भी खबर है कि वैश्विक पूंजी बाजारों में आई गिरावट के दौरान चीन ने बड़ी मात्रा में शेयरों की खरीदी करते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर नियंत्रण का दांव चल दिया है। ऐसा करके वह पश्चिमी देशों की आर्थिक रीढ़ तोड़ते हुए विश्व व्यापार पर एकाधिकार के अपने मास्टर प्लान को लागू करने की योजना पर आगे बढ़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर भारत जैसे देश पर पड़ेगा। इसलिए बेहतर होगा यदि हम संकट के इस दौर में ऐसा कुछ करें जिससे घरेलू उद्योग देश को आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम हो सकें। किसी भी मुसीबत के समय बुद्धिमान लोग भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न होने पाए इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। चीन उससे भी एक कदम आगे बढ़कर काम कर रहा है। चूँकि भारत का असली मुकाबला उसी से है इसलिए लॉक डाउन के इस कालखंड में देश के आर्थिक चिंतकों और व्यवसायिक प्रबंधकों को कोरोना के बाद की आर्थिक परिस्थितियों के बारे में ठोस सुझाव और कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। चिकित्सा सुविधाओं में क्रांतिकारी सुधार भी आर्थिक विकास की नींव होती है और भारत में इसकी क्षमता विकसित करनी होगी। विश्व व्यापार संगठन से बंधे होने के बाद भी भारत को अपनी औद्योगिक और व्यापारिक नीतियों का भारतीयकरण करना होगा। ये कहना गलत नहीं है कि 135 करोड़ का देश यदि अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ मैदान में उतर जाये तो इस संकट के बाद भी कम समय में अपनी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे संकट के बादलों को छांटने में कामयाब हो जायेगा। कोरोना निश्चित रूप से अकल्पनीय मुसीबत लेकर आया है लेकिन जो देश प्रधानमन्त्री के कहने पर एक निश्चित समय पर थाली और ताली बजाकर अपनी एकजुटता दिखा सकता है वह असम्भव को संभव बनाने की क्षमता भी रखता है। लॉक डाउन का ये दौर चिंता से ऊपर उठकर चिन्तन का समय है। सभी विचारशील लोगों से निवेदन है कि वे इस समय का देशहित में उपयोग करते हुए सार्थक विचार प्रस्तुत करें। हमारे देश में कुछ नहीं हो सकता जैसी अवधारणा को दफनाने का ये बेहतरीन अवसर है। कोरोना निश्चित रूप से बड़ा खतरा है लेकिन मुसीबत से डरकर भागने की बजाय उसका सामना करने के साथ ही भविष्य के लिए पूरी तरह सुरक्षित होने का प्रयास करना ही किसी कौम और देश के भविष्य को तय करता है। भारत के पास भी अपने भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाने का अवसर कोरोना ने दिया है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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