Tuesday 3 March 2020

काश, निर्भया के आंसुओं के बारे में भी सोच लेते



जो न्यायपालिका किसी एक मामले में आशा की किरण बनकर सामने आती है वही दूसरे में अपनी लाचारी से निराशा पैदा कर देती है। निर्भया काण्ड के दोषियों की फाँसी की तारीख फिर बढऩे के बाद देश भर से जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं उनमें गुस्सा साफ देखा जा सकता है। न्याय शास्त्र की प्रसिद्ध उक्ति है कि भले ही सौ गुनहगार छूट जाएं किन्तु किसी बेगुनाह को सजा नहीं होना चाहिए। निश्चित रूप से ये एक आदर्श स्थिति है। नीर - क्षीर विवेक पर आधारित न्याय ही सही माना जाता है। इसीलिये अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचने से पूर्व न्याय प्रक्रिया विभिन्न पायदानों से गुजरती है। साक्ष्यों के बयान , उनका प्रति परीक्षण , परिस्थितियों का विश्लेषण और कृत्य के पीछे निहित भावना भी देखी जाती है। अपराधिक प्रकरण में तो और भी सावधानी बरतनी होती है। लेकिन एक बार निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद भी यदि सजा टलती जाए तो फिर उसकी गम्भीरता के साथ ही कानून और दंड प्रक्रिया का भय कम होता जाता है। हमारे देश में अपराध करने वालों के मन में ये बात गहराई तक जगह बना चुकी है कि कानून को वे अपनी उँगलियों पर नचा सकते हैं। इस सोच को वे अधिवक्ता भी मजबूती प्रदान करते हैं जो अपराधी के बचाव में तरह - तरह के पेंच फंसाते रहते हैं। ताजा संदर्भ निर्भया काण्ड के दोषियों के मृत्युदंड की तारीख फिर से टल जाने का है। आज उन्हें फांसी दी जानी थी। गत दिवस उनमें से एक की याचिका पर अदालत ने रहम दिखाते हुए न्याय की निष्पक्षता का हवाला देते हुए भगवान के यहाँ तक का हवाला दे दिया। न्याय में निष्पक्षता हर हाल में जरूरी है लेकिन उसकी गम्भीरता नष्ट हो जाये तो वह निरर्थक हो जाता है। निर्भया प्रकरण ने हमारे देश की दंड प्रक्रिया में सुराखों को उजागर कर दिया है। जहां तक बात अधिवक्ताओं के जमीर की है तो उसे उनकी पेशेगत जिम्मेदारी मानकर हवा में उड़ा दिया जाता है किन्तु किसी कू्रर अपराधी के साथ जब कानून रियायत और रहमत दिखता है तो समाज पर उसका बुरा असर पड़ता है। संदर्भित प्रकरण में अभी तक जो कुछ भी हुआ वह निराश करने वाला है। फांसी होगी ये तो हर कोई जानता है लेकिन जिस तरह उसकी तारीख बार-बार आगे बढ़ती जा रही है उससे न्यायपालिका के प्रति सम्मान और भरोसा भले ही कम नहीं हुआ लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि वह हंसी का पात्र बनती जा रही है। भगवान के यहाँ जाकर अपराधी कानून के  निष्पक्ष न होने की शिकायत न कर सके इसकी चिंता करने वाले न्यायाधीश महोदय को ये भी सोचना चाहिए था कि भगवान के पास बैठी निर्भया हमारी न्याय प्रणाली पर आंसू बहा रही होगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी



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