Tuesday 3 March 2020

केजरीवाल : अपने हुए पराये



जो अरविन्द केजरीवाल कुछ समय पहले तक भाजपा विरोधी समाचार चैनलों की आंख के तारे हुआ करते थे वे अचानक खलनायक बन बैठे। कांग्रेस भी दिल्ली चुनाव के बाद उनकी बलैयाँ लेती नहीं थक रही थी। लेकिन ज्योंही दिल्ली सरकार ने कन्हैया कुमार और उनके साथियों पर राजद्रोह का आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति पुलिस को दी त्योंही अरविन्द क्रांतिकारी से फासिस्ट माने जाने लगे। वामपंथी प्रचारतंत्र श्री केजरीवाल द्वारा चार साल पहले किये गये ट्वीट को उछाल रहा है जिसमें उन्होंने कन्हैया के भाषण को शानदार बताया था। उन पर ये आरोप लग रहे हैं कि दिल्ली दंगों के दौरान जनता से कटे रहने की वजह से खराब हुई छवि को सुधारने के लिए उन्होंने कन्हैया को लेकर अपनी नीति बदल डाली। ये भी कहा जा रहा है कि बीते दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद अरविन्द ने यू टर्न ले लिया। सच्चाई तो वे खुद ही बता सकेंगे लेकिन कन्हैया पर आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति के बाद वे अपने ही समर्थकों की आलोचना के शिकार होने लगे हैं। कहने वाले तो यहाँ तक कह रहे हैं कि भाजपा के साथ उनकी कोई गोपनीय डील हुई है। वैसे श्री केजरीवाल को जानने वाले ये मानते हैं कि इसके पीछे भी उनकी कोई दूरगामी राजनीति है। दरअसल बीते पांच साल में वे केंद्र सरकार से पंगा लेकर काफी परेशानी महसूस करते रहे हैं। इसीलिये चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पर कोई राजनीतिक हमला भी नहीं किया। उन्हें लगता है कि बिजली, पानी, अस्पताल और स्कूल के बारे में वे आगे ज्यादा कुछ नहीं कर पायेंगे। ऐसे में अगली बार जनता के सामने जाने के लिए उन्हें कुछ बड़े काम भी करने होंगे जिनके लिए केंद्र की मदद लगेगी। लोकसभा चुनाव तो अभी बहुत दूर हैं लेकिन दिल्ली के आगामी नगर निगम चुनाव में उन्हें भाजपा से मुकाबला करना पड़ेगा। पिछले चुनाव में भाजपा ने आम आदमी पार्टी का सफाया कर दिया था। वर्तमान में शाहीन बाग और दिल्ली के दंगों की वजह से श्री केजरीवाल की छवि हिन्दू विरोधी नेता की होती जा रही थी। दंगों के दौरान उनकी अनुपस्थिति से हिन्दुओं को ये लगा कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराकर वे ठगे रह गए। ऐसे में श्री केजरीवाल के आत्मसमर्पण नुमा इस कदम से राजनीति के जानकार जहां सन्न हैं वहीं भाजपा इसे पसंद करने के बाद भी सतर्क है क्योंकि वे कब कौन सा पैंतरा चल जाएँ ये कोई नहीं जानता। कन्हैया पर आरोप पत्र दाखिल किये जाने की अनुमति देकर उन्होंने अपने ऊपर नक्सली होने के आरोप को भी धो डाला है। यद्यपि अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन श्री केजरीवाल ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे सामाजिक कार्यकर्ता की छवि से आगे बढ़कर अब विशुद्ध राजनेता बन चुके हैं जिसका हर निर्णय राजनीतिक नफे-नुकसान से प्रेरित होता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment