Wednesday 4 March 2020

सांसदों - विधायकों की आड़ में लोकतंत्र का सौदा



जब भी कहीं जनप्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त होती है तब उसे हॉर्स ट्रेडिंग (घोड़ों का व्यापार) कहा जाता है। सांसद और विधायक को घोड़ा कहना उनका सम्मान है या अपमान इस पर अभी तक बहस नहीं हुई। बिकने और खरीदने वालों की तरफ  से भी इस व्यापार को कोई और नाम देने की मांग अब तक नहीं उठी। लेकिन गत दिवस सोशल मीडिया पर किसी की ये टिप्पणी ध्यान खींचने वाली रही कि जनप्रतिनिधियों की खरीदी-बिक्री को घोड़ों से जोड़कर इस समझदार  और वफादार पशु का अपमान न किया जाए। इस बारे में एक बात और काबिले गौर है कि विज्ञान में घोड़े को शक्ति का प्रतीक मानकर ही हॉर्स पॉवर नामक मानदंड स्थापित किया गया। वैसे अब घोड़ों का उपयोग सीमित हो चला है। तांगे और बग्गियों का चलन खत्म हो चला है। घुड़ दौड़ का आकर्षण भी दिन ब दिन कम हो रहा है। ऐसे में सांसदों - विधायकों की खरीदी को हॉर्स ट्रेडिंग कहना लगता तो अटपटा ही है लेकिन पशु संरक्षण में अग्रणी मेनका गांधी ने भी कभी इस नामकरण पर आपत्ति नहीं व्यक्त की। इस चर्चा का ताजा-तरीन संदर्भ मप्र में चल रही राजनीतिक हलचल है। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बीते दो तीन दिनों से लगातार ये आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा कमलनाथ की सरकार को गिराने के लिए बसपा-सपा, निर्दलीय सहित कुछ कांग्रेस विधायकों को 30 से 35 करोड़ देकर तोडऩा चाह रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी इसकी पुष्टि की है। एक दो कांग्रेस विधायकों ने भी ये दावा किया कि उन्हें भाजपा से वैसा ऑफर मिला है। गत दिवस श्री सिंह ने ये कहकर सनसनी पैदा कर दी कि कुछ विधायकों को विशेष विमान से दिल्ली ले जाकर एक पांच सितारा होटल में ठहराया गया है। ये खबर भी आई कि दिग्विजय खुद पतासाजी करने उस होटल जा पहुंचे और आरोप लगाया कि उन्हें होटल में जाने नहीं दिया गया। इसी के साथ उन्होंने ये भी फरमाया कि विधायकों से उनकी बात हो गयी है और वे लौट आएंगे। इधर बसपा विधायक के पति ने कांग्रेस के आरोपों का खंडन किया है। मप्र कांग्रेस की आन्तरिक राजनीति में दिग्विजय और कमलनाथ से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बहरहाल इस समूचे घटनाक्रम से अनभिज्ञता जाहिर की है। ज्ञातव्य है श्री सिंधिया इस समय कोप भवन में हैं और उनके बगावत किये जाने की अटकलें लग रही हैं। मप्र में व्याप्त राजनीतिक आनिश्चितता किस मुकाम पर पहुंचेगी ये फिलहाल कोई नहीं बता सकता। वैसे भाजपा में चलने वाली चर्चाएं ये संकेत जरूर करती रही हैं कि वह कमलनाथ सरकार को गिराने का इरादा रखती है और मौका लगते ही अपनी कार्ययोजना को अंजाम देगी। हालांकि ऐसा होना कोई अजूबा नहीं होगा। हमारे देश में सरकार बनाने और गिराने के अलावा राज्यसभा चुनाव में भी विधायकों की खरीदी की परम्परा है। झारखंड में तो खुले आम ऐसा होता रहा। विधायकों को खरीदकर राज्यसभा में जाने वालों में विजय माल्या और उन जैसे अन्य उद्योगपति भी रहे हैं। छोटी पार्टियां अपने अतिरिक्त मत बेचकर धनकुबेरों और नामी गिरामी वकीलों को उच्च सदन का सदस्य बनने में मददगार होती रही हैं। कर्नाटक में बीते साल कुमारस्वामी सरकार गिराने की लिए भाजपा ने डेढ़ दर्जन सत्ताधारी विधायकों से इस्तीफा दिलवा दिया। बाद में उपचुनाव जीतकर वे सभी येदियुरप्पा सरकार में मंत्री पद पा गये। विचारणीय है कि दलबदल कानून के बाद भी ये कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा। दिग्विजय सिंह का आरोप कितना सही है ये तो वे ही जानें लेकिन उन जैसे अनुभवी नेता द्वारा 30-35 करोड़ का भाव खोलने से ये संदेह भी मजबूत हुआ है कि क्या कमलनाथ सरकार के लिए बहुमत जुटाने बसपा-सपा और कुछ निर्दलियों को भी मोटी रकम दी गई थी ? कांग्रेस ने भाजपा के दो विधायकों को भी तोड़ रखा है। तो क्या उनका ह्रदय परिवर्तन भी नोटों की गड्डियां दिखाकर किया गया ? पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को संसद भवन की भीतर लाखों की घूस दी गई थी। उसके बाद भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते और अशोक अर्गल संसद में नोटों की गड्डियां लेकर आये और ये कहकर सनसनी मचा दी कि वह रकम उन्हें दलबदल के लिए दे गयी। चुनाव में निर्धारित खर्च सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च होना किसी से छुपा नहीं है। हाल ही में छत्तीसगढ़ में आयकर छापों के दौरान जो जानकारी आई उसके अनुसार तो काले धन का उपयोग राजनीतिक कामों के लिए होता था। मुख्यमंत्री की उपसचिव पर आयकर वालों ने छापा मारा।  उनके अलावा और भी अनेक नेताओं और कारोबारियों पर दबिश दी गई। चूंकि वे सभी कांग्रेस के करीबी हैं इसलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भन्ना उठे और भागे-भागे दिल्ली गये । सवाल ये है कि राजनीति में इतना पैसा आता कहां से है ? सरकार बनाना और गिराना प्रजातंत्र का हिस्सा है। दलबदल यदि वैचारिक आधार या नीतिगत मतभेदों पर आधरित हो तब तो बुरा नहीं लेकिन प्रलोभन के कारण हो तब वह प्रजातंत्र का अपमान है। मप्र में ये पहला अवसर नहीं है जब विधायकों के पाला बदलने का खेल हो रहा हो। पिछली शिवराज सरकार के पास पर्याप्त बहुमत होने पर भी भाजपा कांग्रेस के विधायकों की तोडफ़ोड़ किया करती थी। दिग्विजय सिंह के आरोप कितने सही हैं ये आगामी कुछ दिनों में साफ हो जाएगा। राज्यसभा के चुनाव से भी इसे जोड़कर देखा जा रहा है। श्री सिंधिया की नाराजगी भी इसके पीछे हो सकती है। लेकिन एक विधायक को 30-35 करोड़ में खरीदे जाने का आरोप मामूली नहीं है। सबूत मांगे जाने पर दिग्विजय ने समय आने पर साबित करने की बात कही। यद्यपि उनके बयान गंभीरता से नहीं लिए जाते और इस आरोप के पीछे राज्यसभा में दोबारा जाने की उनकी अपनी रणनीति भी हो सकती है किन्तु सरे आम इस तरह के आरोपों से नेताओं और जनप्रतिनिधियों की इज्जत का जो होता हो सो होता हो लेकिन जनता ये सुनकर खुद को अपमानित महसूस करती है कि उसने जिन्हें मत देकर माननीय बनाया वे उसके विश्वास का सौदा करते घूम रहे हैं। दिग्विजय सिंह के आरोप बेहद गम्भीर हैं। उनका खुलासा होना चाहिए क्योंकि सवाल कुछ नेताओं का नहीं लोकतंत्र का है।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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