Friday 13 March 2020

गनीमत है कोरोना भारत से शुरू नहीं हुआ वरना ....

....

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित करने के बाद अमेरिका जैसे देश तक ने उसे खतरनाक मानते हुए यूरोप से आने वाले लोगों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री भी  कोरोना पीडि़त हो गए हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति तो एक विदेशी राष्ट्र प्रमुख के स्वागत में नमस्कार करते दिखाई दिए। ईरान सरकार के अनेक  बड़े नेता इस बीमारी की चपेट में आकर जान गँवा बैठे। इटली भी कोरोना  से हलाकान है। वहां सभी लोगों को घर में रहने कह दिया गया है। अनेक देशों में कर्मचारियों को घर में रहकर ही काम करने की सुविधा दे दी गयी है। चीन में अब नये मरीजों की संख्या में तो कमी आई है लेकिन अनेक देशों में कोरोना से लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं। चूँकि अभी तक इसका कोई टीका नहीं बना इसलिए इसको रोकने  के बारे में चिकित्सा जगत भी असहाय है। केवल इजरायल ने ये दावा किया है कि वह कोरोना को रोकने वाली दवाई बनाने के करीब पहुंच चुका है। इस बीच भारत की संसद में गत दिवस स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कोरोना  को लेकर  जो जानकारी प्रस्तुत की वह वाकई उत्साहवर्धक है। चीन के साथ भारत के व्यापार सम्बन्ध होने से वहां आना जाना बढ़ा है। बीमारी के चरमोत्कर्ष के वक्त भी उसके मुख्य केंद्र वुहान में सैकड़ों भारतीय थे जिन्हें सुरक्षित निकाल लिया गया। ईरान में कार्यरत भारतीय भी सुरक्षित बुला लिए गये। जबकि वहां के हालात बेहद चिंताजानक हैं। यही नहीं तो भारत सरकार ने कोरोना  की जांच हेतु एक आधुनिक लैब के उपकरण ईरान भेजे हैं जिन्हें उसे भेंट में दे दिया जावेगा। एहतियातन भारत में भी हाई एलर्ट कर दिया गया है। हवाई अड्डों पर विदेशों से आने वालों की सघन जाँच हो रही है। दिल्ली सहित अनेक राज्यों में स्कूल 31 मार्च तक बंद कर  दिए गये हैं। दिल्ली सरकार ने तो सिनेमा घरों में भी तालाबंदी करवा दी। वहीं आईपीएल मैच बिना दर्शकों के करने कहा गया है। आम जनता को कोरोना से बचाने के लिए सावधानी बरतने हेतु सरकारी प्रचार किया जा रहा है। संचार माध्यम भी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। भारत सरकार  ने 15 अप्रैल तक सभी वीजा रद्द कर दिए हैं। इसके कारण पर्यटन, होटल, उड्डयन व्यवसाय चौपट होने लगा है। तथा पहले से चली आ रही आर्थिक मंदी और भी खतरनाक स्तर तक जा पहुँची है। भारत में हालाँकि कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या अभी तक 100 से भी कम है और सऊदी अरब से लौटे  एक वृद्ध की कल हुई मौत के अलावा अभी तक किसी और के मरने की जानकारी नहीं आई है। लेकिन आर्थिक क्षेत्र में कोरोना का जबर्दस्त असर हुआ है। अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक है। चीन से आयात रुकने की वजह से कच्चे माल की किल्लत हो रही है। जिसका असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा। चेहरे पर लगाने वाले मास्क और हाथ धोने वाले एल्कोहल युक्त सैनेटाईजर खत्म हो चुके हैं या उनकी कालाबाजारी हो रही है। लेकिन इस बारे में सबसे बड़ी बात एक आर्थिक विशेषज्ञ ने कही जिसके अनुसार यदि ये बीमारी चीन की बजाय भारत से शुरू हुई होती तो हालात भयावह हो जाते। चीन में महामारी का हमला बेहद भयानक था। इसके पहले कि कुछ समझ में आता तब तक हजारों लोग संक्रमित हो चुके थे और बड़ी संख्या में मौतें हो गईं। ये भी माना जाता है कि साम्यवादी सरकार होने के नाते वहां कोरोना से मारे गये लोगों की सही जानकारी नहीं दी गई। करोड़ों लोग लम्बे समय तक घरों में कैद जैसे रहे किन्तु हल्ला नहीं मचा। हफ्ते भर के भीतर हजारों मरीजों की क्षमता वाले अस्थायी अस्पातल की व्यवस्था भी वुहान में कर ली गयी। उस दृष्टि से  भारत में अचानक आने वाली ऐसी किसी महामारी से निपटने के इंतजाम बहुत ही कम हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने जिस तरह के कदम उठाये उसकी वजह से बीमारी का प्रकोप ज्यादा नहीं फैला। सरकारी आंकड़ों को सही न मानें तब भी इटली और ईरान की अपेक्षा भारत ने काफी बचाव कर  लिया। विदेशों  से आने वालों की सघन जाँच और जरा भी लक्षण पाए जाने पर पूरी सावधानी बरतने के साथ ही देश भर में तकरीबन 50 लैब के अलावा उतने ही कलेक्शन सेंटर स्थापित करना काफी सहायक बना। जनता को जागरूक भी समय रहते कर  लिया गया। भारतीय मौसम और बाकी  परिस्थितियों के मद्देनजर कोरोना का बहुत ज्यादा असर शायद नहीं पड़े लेकिन इस बहाने हमें अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के आकलन का एक अच्छा अवसर मिल गया। सरकार के आलोचकों ने भी ये माना कि केंद्र सरकार ने कोरोना को लेकर अभी तक जो कुछ भी किया वह संतोषजनक कहा जा सकता है। लेकिन इसी के साथ ये बात भी स्वीकार करनी होगी कि प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला सरकारी खर्च समय और जरूरत के मुताबिक बहुत ही कम है। चंद अपवादों को छोड़ दें तो सरकारी चिकित्सा सुविधाएँ ही बीमार हैं। मोदी सरकार ने जिस आयुष्मान योजना को लागू किया वह मुख्य रूप से शहरों में ही कारगर है क्योंकि वहां सरकारी के साथ ही निजी अस्पतालों की भरमार है किन्तु छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में हालात बहुत ही दयनीय हैं। किसी भी तरह की विपत्ति उससे लडऩे के तरीकों की खोज का आधार बनती है। महामारी के बाद ही उसका इलाज खोजा  जाता है। लेकिन भारत में इस बारे में आत्मनिर्भरता का अभाव है क्योंकि चिकित्सा जगत में शोध की स्थिति वैश्विक स्तर के हिसाब से  बहुत ही मामूली है। केंद्र  और राज्यों के बजट में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च के आंकड़े बढ़ती जरूरत को पूरा नहीं करते। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक की दशा को काफी सुधारा और मुफ्त इलाज की सुविधा भी प्रदान की किन्तु किसी बड़ी महामारी से लडऩे की योग्यता और क्षमता हमारे देश के चिकित्सा तंत्र में नहीं है। मौजूदा संकट तो आने वाले कुछ दिनों में तापमान बढ़ते ही खत्म हो जाएगा लेकिन कोरोना दोबारा नहीं लौटेगा इसकी गारंटी क्या है? इसी के साथ यदि इसी तरह का कोई नया और अपरिचित वायरस कहीं भारत में आ धमका तब क्या होगा उसकी तैयारी भी होनी चाहिए।  फर्ज करें यदि कोरोना का प्रकोप चीन के बजाय भारत से प्रारम्भ हुआ होता तो जो हालात बनते उसकी कल्पना मात्र से रूह कांपने लगती है। हर साल चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत को रोक पाने में विफल हमारे चिकित्सा तंत्र को स्वस्थ और तंदुरस्त बनाने के लिए उसे देश की सुरक्षा जैसी सर्वोच्च प्राथमिकता देना समय की मांग ही नहीं जरूरत भी है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment