Monday 9 March 2020

कमलनाथ : मजबूत से मजबूर बने



मप्र की कमलनाथ सरकार पर मंडराते संकट के लिए कांग्रेस ने भाजपा पर जो आरोप लगाये थे वे उसी के गले पड़ते जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस मामले में सबसे ज्यादा मुखर रहे। उनने भाजपा पर कांग्रेस सहित कुछ और  विधायकों को बंधक बनाने और 30-35 करोड़ रूपये में खरीदने का आफर देने की बात कहते हुए दावा  किया कि वे इसका प्रमाण भी दे देंगे। कांग्रेस, सपा, बसपा और कुछ निर्दलीय  विधायक जिस तरह से गायब हुए उससे उनकी बातें सही भी लगीं। उनमें से कुछ को गुरुग्राम के एक होटल से छुड़ाकर लाने की कवायद भी हुई। लेकिन अनेक विधायक फिर भी हाथ नहीं आये। इस पर कहा गया कि उन्हें भाजपा ने बेंगुलुरु में छिपाकर रखा हुआ है। बीते दो दिनों में एक-एक करके विधायक लौट रहे हैं। परसों शेरा लौटे और गत दिवस बिसाहूलाल सिंह नामक पूर्व मंत्री भी आ गए। इस दावे को नकारना जल्दबाजी होगी कि इस सब में भाजपा का हाथ था लेकिन ये भी उतना ही सही है कि गायब हुए जो भी विधायक लौटकर आये उनमें से एक ने भी ये नहीं कहा कि उन्हें किसी ने जबर्दस्ती रोके रखा था या खरीदने की कोशिश की गई। सभी ने स्वेच्छा से जाने की बात कहते हुए साफ कर  दिया कि उनकी पूरी कोशिश मंत्री पद हासिल करने के लिए दबाव बनाने की है। सपा, बसपा, निर्दलीय सहित कांग्रेस के गायब हुए विधायकों में से लगभग सभी ने मंत्री बनने की इच्छा जताते हुए खुलकर अपना असंतोष व्यक्त किया। कल बेंगुलुरु से लौटकर आये बिसाहूलाल ने तो साफ़  कहा कि वे मंत्री नहीं बनाये जाने से नाराज थे और अपनी मर्जी से तीर्थयात्रा पर गये थे। जो भी विधायक अज्ञातवास से लौटकर आये उनमें से किसी ने भी दिग्विजय सिंह और दूसरे कांग्रेस नेताओं द्वारा खरीद फरोख्त के आरोप की पुष्टि नहीं की। कुछ ने तो उनके आरोप का मखौल तक उड़ाया। बिसाहूलाल को जिन दिग्विजय सिंह के गुट का माना जाता है उनने भी उनके तमाम आरोपों को हवा में उड़ा दिया। अभी भी कांग्रेस के दो विधायक लापता हैं। उनके बेंगुलुरु में भाजपा के कब्जे में होने की बात कही जा रही है। इस उठापटक के पीछे राज्यसभा के चुनाव को कारण माना जा रहा है। भाजपा चाहती है वह दूसरी सीट पर कांग्रेस को न जीतने दे। अभी तक जो कुछ भी हुआ वह नाटक से कम नहीं था। भाजपा पर ऑपरेशन लोटस चलाने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस भी दावा कर रही है कि भाजपा के दर्जन भर विधायक उसके संपर्क में हैं। इसका साफ मतलब है कि जिस खरीद फरोख्त का आरोप वह भाजपा पर लगा रही है वही उसके द्वारा भी किया जा रहा है। नारायण त्रिपाठी और शरद कोल नामक दो भाजपा विधायक तो खुलकर कांग्रेस की गोद में बैठे हुए हैं। यदि रहस्यमय ढंग से गायब हुए विधायक भाजपा के दबाव या लालच में गये थे तो वे  इतनी आसानी से कैसे लौटे  ये बड़ा सवाल है। ये भी खबर है कि विधानसभा के बजट सत्र के पहले कमलनाथ उनमें से अधिकतर को मंत्री पद देकर ठंडा कर लेंगे। उनके अलावा भी कई विधायकों ने पार्टी में असंतोष की बात कही। राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने तो पार्टी का पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष नहीं होने को समूचे  विवाद की वजह बताते हुए जल्द इस पद पर नई नियुक्ति की बात उछाल दी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या दिग्विजय सिंह भाजपा पर लगाये आरोप वापिस लेंगे? इस दौरान भाजपा ने जो और जैसे भी किया उससे वह भी दूध की धुली नहीं कही जा सकती। ये आरोप भी गलत नहीं है कि वह शुरुवात से ही कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने में लगी हुई है लेकिन उसका दांव सही नहीं बैठ रहा जिसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। अव्वल तो उसके भीतर नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और दूसरा उसके  सभी शीर्ष प्रादेशिक नेता बड़बोलेपन की बीमारी से ग्रसित हैं। सरकार गिराने जैसे काम अखाड़े की कुश्ती जैसे सबके सामने तो होते नहीं हैं। बीते कुछ  दिनों में कांग्रेस और सरकार समर्थक कुछ  विधायकों का अज्ञातवास पर जाना भाजपा द्वारा प्रायोजित था या नहीं लेकिन उसके दामन पर छींटे जरुर पड़ गए। बहरहाल प्रदेश सरकार पर संकट अभी बना हुआ है। कमलनाथ नए मंत्री बनाने के लिए मौजूदा में से जिसकी छुट्टी करेंगे कल को वह नाराज नहीं  होगा इसकी गारंटी नहीं है। इसी तरह राज्यसभा में जाने के इच्छुक अनेक नेताओं में भी इस बात पर असंतोष है कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षा उनके राजनीतिक भविष्य को चौपट कर रही है। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि मप्र कांग्रेस में जबर्दस्त अंतर्कलह है जिसके चलते पार्टी के बड़े नेताओं ने कमलनाथ को मजबूत से मजबूर नेता बनाकर रख दिया। जो विधायक अभी तक मुख्यमंत्री के सामने कुर्सी पर बैठने की हिम्मत तक नहीं करते थे वे ही उनकी आँख में आँख डालकर बातें करने का साहस कर रहे हैं। कमलनाथ यूँ भी  मप्र के नैसर्गिक नेता कभी नहीं रहे। उनके गुट में भी ऐसे लोग नहीं हैं जो प्रदेश तो क्या आंचलिक वजनदारी भी रखते हों।  ऐसे में जो कुछ भी राजनीतिक उठापटक बीते कुछ दिनों से चली आ रही है उसके लिए कांग्रेस और उसके पदलोलुप नेता ही पूर्णत: जिम्मेदार हैं। अपने बेटे और  भाई-भतीजे को स्थापित करने के बाद भी दिग्विजय सिंह की भूख नहीं मिट रही और उसी के कारण उनने  कमलनाथ सरकार पर संकट पैदा करते हुए अपना उल्लू सीधा करने की बिसात बिछाई। कहना गलत नहीं  होगा कि भाजपा भी कुछ हद तक उसमें उलझकर रह गयी। हाँ, ये बात जरूर है कि दिग्विजय द्वारा छेड़ा गया ये छद्म युद्ध कमलनाथ की सरकार के लिए घातक साबित हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस की कमजोरी उजागर होने से भाजपा के मुंह में भी पानी आने लगा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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