Friday 27 March 2020

अच्छा कदम : बशर्ते राहत गरीबों तक पहुंचे



जब राजा - महाराजाओं का शासन होता था तब किसी भी विपदा के समय अन्न के भण्डार खोलकर प्रजा के उदरपोषण की व्यवस्था के अलावा राहत कार्य प्रारम्भ कर श्रमिकों को मजदूरी भी दी जाती थी। आज के ज़माने में ये काम चुनी हुई सरकार करती है। जिसका ताजा उदाहरण गत दिवस केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित किया गया कोरोना राहत पैकेज है। 1.70 लाख करोड़ रु. की मदद से देश के करोड़ों गरीब लोगों के जीवन यापन को आसान बनाने की कोशिश इसके जरिये की गयी है जिसका विवरण समाचार माध्यमों से कल ही प्रचारित हो चुका था। इस पैकेज को राहुल गांधी ने भी सराहा और पहला अच्छा कदम बताया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संकट की इस घड़ी में सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया है। 21 दिन का राष्ट्रीय लॉक डाउन घोषित होने के बाद करोड़ों गरीबों और दिहाड़ी मजदरों के समक्ष रोजी-रोटी का जो संकट उत्पन्न हो गया था उसे लेकर विपक्ष ही नहीं बल्कि गैर राजनीतिक तबके ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया। ये भी कहा गया कि प्रधानमन्त्री ने बिना किसी पूर्व तैयारी के देश को तीन हफ्ते तक घरों में रहने की हिदायत तो दे दी लेकिन उनकी दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति कहां से होगी इसका कोई ध्यान नहीं रखा गया। उसका परिणाम ये हुआ कि प्रधानमंत्री का संबोधन खत्म होते ही जनता बाजार में टूट पड़ी। यही आलम दूसरे दिन सुबह भी जारी रहा। हालंकि उसके फौरन बाद प्रशासन हरकत में आया और अब जो खबरें आ रही हैं वे आशा जगाती हैं लेकिन अभी भी सब्जी मंडियों में भीड़ अनुशासन का पालन नहीं कर रही। सरकार ने किराना और दवाई दुकानों के साथ ही दूध तथा पेट्रोल डीजल की आपूर्ति निर्बाध बनाये रखने के लिए उनके विक्रय केंद्र खुले रहने की व्यवस्था भी कर दी जिससे मारामारी थोड़ी कम हुई है लेकिन रसोई गैस सिलेंडर घर-घर पहुँचाने का काम अभी भी अव्यवस्थित है जिससे गैस डीलरों के गोदामों में जनता टूटी पड़ रही है। बावजूद इस सबके लॉक डाउन की वजह से अधिकतर लोग घरों में सिमटकर रह गये जिसके कारण ये विश्वास पैदा हुआ कि भारत इस महामारी पर काबू पाने में कामयाब हो जाएगा। चूंकि सारी दुनिया ये मान चुकी है कि कोरोना को रोकने का एकमात्र तरीका लोगों को आपस में मिलने से रोकना है इसलिए भारत के सामने भी दूसरा रास्ता नहीं था। कम आबादी वाले यूरोपीय देशों तक में जब कोरोंना का कहर टूट पड़ा तब भारत जैसे विशाल आबादी और घनी आवासीय व्यवस्था वाले देश में तो उसको रोक पाना बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन भले ही कोई कुछ भी कहे पर सरकार ने समय रहते सख्त कदम उठाकर महामारी के विस्फोट पर तो फिलहाल नियंत्रण कर लिया। अभी तक की रिपोर्ट ये बताती है कि नए संक्रमित लोगों की संख्या बढऩे का प्रतिशत घटा है और जिनका इलाज चल रहा है उनमें से बहुत ही कम की स्थिति चिंताजनक है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पचास से ज्यादा लोग ठीक भी हुए हैं। लेकिन इसके साथ ही गरीबों और रोज कमाने रोज खाने वालों को राहत देना जरूरी था। इस काम में और देरी होने पर अराजकता फैलने का भय भी था। इसलिए सरकार द्वारा गत दिवस की गयी घोषणाएं न केवल गरीबों के लिए वरन समूचे देश के लिए सुकून देने वाली हैं। इसके कारण दिहाड़ी मजदूर, निराश्रित वृद्ध और बेरोजगार गरीबों को जो सहायता मिलेगी उसकी वजह से समाज में शांति और कानून व्यवस्था बनी रहेगी। इस राहत पैकेज का सबसे बड़ा लाभ ये है कि गरीबों को न सिर्फ मुफ्त और अतिरिक्त राशन बल्कि आगामी तीन महीनों तक नि:शुल्क रसोई गैस दिए जाने के साथ ही उनके बैंक खाते में निश्चित धन राशि जमा करने की व्यवस्था की गयी है। मोदी सरकार ने जब गरीबों के जन - धन खाते खोले थे तब उनके औचित्य और आवश्यकता पर तरह-तरह के सवाल दागे गये किन्तु कोरोना से उत्पन्न हालातों में इन खातों की उपयोगिता प्रमाणित हो गयी। सरकार का काम भी आसान हो गया वरना जरुरतमंदों के हाथ में नगद रूपये पहुंचाने में होने वाली अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की कल्पना सहज रूप से की जा सकती है। लेकिन सरकार का काम इतने मात्र से खत्म नहीं होगा। बैंकों में नगद राशि तो आसानी से जमा हो जायेगी किन्तु मुफ्त राशन और रसोई गैस का वितरण समस्या पैदा कर सकता है। इसकी वजह सर्वविदित है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली जिन राशन दुकानों से संचालित होती है वे भ्रष्टाचार की नर्सरी हैं। इसी तरह रसोई गैस वाले भी ग्राहकों को परेशान करने के लिए कुख्यात हैं। स्थानीय प्रशासन यदि इस व्यवस्था को दुरुस्त कर ले गया तब राहत पैकेज की सफलता सुनिश्चित हो जायेगी और इससे लॉक डाउन को सफल बनाने में भी मदद मिलेगी। एक और मोर्चा जहां सरकार को ध्यान देना होगा वह है लॉक डाउन के दौरान जरूरी वस्तुओं की मुनाफाखोरी को रोकना। सब्जी, फलों तक तो बात समझ में भी आती हैं लेकिन दवाओं पर भी यदि मुनाफाखोरी हो तो ये एक अक्षम्य अपराध होना चाहिए। इसके अलावा निजी अस्पतालों में भी जनता का सस्ता इलाज हो सके इसका प्रबंध भी किया जाए तो सरकारी अस्पतालों का बोझ थोड़ा कम होगा। वैसे इस समय निजी अस्पतालों को भी कमाई की बजाय मानव सेवा के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सरकार जो राहत दे रही है वह सरकारी योजनाओं से जुड़े गरीबों तक ही पहुंच पायेगी। ऐसे में ये समाज का सामूहिक दायित्व है कि वह ऐसे गरीब लोगों को जो अभी तक सरकारी योजनाओं से बाहर हैं, कम से कम भोजन ही प्रदान करता रहे जिससे कोई भूखा न सोये। कोरोना ने देश को एक नया अनुभव और उसके साथ एक अवसर भी दिया है, परोपकार के आदर्श रूप को प्रस्तुत करने का। सरकार और समाज जब एक साथ जुट जाते है तब बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना आसानी से किया जा सकता है। विश्वास है भारत ऐसा कर दिखाएगा क्योंकि ये उसकी परम्परा भी है और स्वभाव भी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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