स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जो आप देते हैं वही आपके पास रहता है । उनका यह कथन भारतीय दर्शन के उस विचार का प्रतिपादन ही था जिसके मुताबिक दान ही वह पुण्य है जो मरणोपरांत व्यक्ति के कर्मफल के आकलन का आधार बनता है । स्वर्ग-नर्क की अवधारणा कपोल-कल्पित हो सकती है क्योंकि किसी जीवित मनुष्य ने आज तक उन्हें देखा नहीं है । बड़े -बड़े साधु-सन्यासी भी मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में सप्रमाण कुछ नहीं बता सकते । इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करने के लिए पाप-पुण्य या स्वर्ग-नर्क जैसी धारणाएं प्रचलित की गईं होंगी । लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि मानव जीवन की सार्थकता और सभ्य समाज के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति में सम्वेदनशीलता रहे । दान के पीछे का मनोभाव भी इसी पर आधारित है। हमारे देश में दानशीलता के एक से एक बढ़कर उदाहरण मिलते हैं। जिनमें पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही हैं । कालांतर में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न अनेक व्यक्तियों ने जन कल्याण के उद्देश्य से अपनी कमाई का एक हिस्सा दान किया । ये प्रवृत्ति आज भी जारी है लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास बेशुमार दौलत होने के बाद भी वे किसी को कुछ देने में हिचकते हैं । ऐसे ही लोगों के लिए कभी विश्व के सबसे धनी व्यक्ति वारेन बफेट ने तंज कसा था कि भारत में धनकुबेर अपनी कमाई को लोक कल्याण हेतु खर्च करने के मामले में बहुत पीछे हैं । उससे प्रेरित होकर विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेम जी ने अपनी हजारों करोड़ की दौलत का बड़ा भाग दान कर दिया। गत दिवस इंफोसिस की स्थापना में नारायण मूर्ति के साथ रहे नन्दन नीलेकणि ने अपनी संपत्ति का आधा भाग दान कर दिया है। विश्व के सबसे अमीर बिल गेट्स के आह्वान पर श्री नीलेकणि ने उक्त कदम उठाया । उद्योगपतियों द्वारा दान करना नई बात नहीं है लेकिन अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा समाज कल्याण के लिए अर्पित करने की ये परम्परा निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है। नन्दन नीलेकणि एक सुशिक्षित उद्योगपति हैं । उनकी सोच आधुनिक है जिसकी वजह से वे अपने सामाजिक दायित्व को समझ रहे हैं जो अच्छा संकेत है । वॉरेन बफेट का कटाक्ष देर से ही सही यदि काम कर जाए तो माना जा सकता है कि समाज के प्रति धनकुबेरों में दायित्वबोध जागृत हो रहा है । सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियां सामुदायिक सेवा हेतु अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा प्रति वर्ष प्रदान करने हेतु बाध्य होती हैं किंतु अपनी संपत्ति का आधा या उससे ज्यादा हिस्सा दान कर देना निश्चित रूप से प्रशंसनीय है । नन्दन नीलेकणि टाटा,बिरला, अम्बानी, अडानी ब्रांड उद्योगपति तो हैं नहीं। उनकी कमाई जिस व्यवसाय से हुई उसका स्वरूप परंपरागत उद्योगों से सर्वथा भिन्न होने से उनकी सोच भी परिष्कृत और प्रगतिशील है। उम्मीद की जा सकती है कि श्री नीलेकणि से प्रेरित होकर समाज का सम्पन्न वर्ग बड़ी संख्या में उनका अनुसरण करेगा । सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ देने की प्रवृति त्यागकर अगर सम्पन्न वगज़् अपने दायित्व के प्रति सजग हो जाए तो बहुत सी समस्याएं हल हो सकती हैं।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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