Wednesday 1 November 2017

राजनीति अपराधी नेताओं से मुक्त हो

इंग्लैंड में एक उक्ति काफी प्रचलित है कि राजा कभी गलती नहीं कर सकता (किंग कैन डू नो रॉंग) इस तरह उसे कानून से ऊपर रख दिया गया है। लेकिन इंग्लैंड में राजा को जो दर्जा प्राप्त है उस पर हमारे देश में नेता नामक नये राजाओं ने कब्जा कर लिया है जिसके तहत भले ही उन पर अपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिये जावें परन्तु उनका निपटारा करने में लंबा समय लग जाता है और इस दौरान वे तबियत से वीआईपी बने रहते हैं। गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय में इस संबंध में विचाराधीन याचिका पर आसंदी ने केन्द्र सरकार पर गुस्सा होते हुए पूछा कि प्रकरण का फैसला होने में 20 साल लग जाने पर तो नेताजी आराम से सांसद या विधायक के तौर पर चार कार्यकाल पूरे कर सकते हैं। उसके बाद उनके चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगाने का औचित्य ही नहीं बचा रहता। खबर है चुनाव आयोग चाहता है कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही किसी व्यक्ति पर चुनाव लडऩे से रोक लगाई जावे किन्तु सरकार इसके लिये राजी नहीं है। उसका अभिमत है आरोपी नेता को भी न्यायपालिका में अपील करने का अधिकार है। महज आरोप पत्र के आधार पर चुनाव लडऩे से रोकना अव्यवहारिक होगा। सरकार का तर्क अपनी जगह ठीक है किन्तु याचिकाकर्ता ये दलील भी विचारणीय है कि न्याय प्रक्रिया में होने वाली असाधारण देरी का लाभ उठाकर अपराधी तत्व संसद और विधानसभा में घुस जाते हैं जिससे समूची प्रजातांत्रिक व्यवस्था कलंकित हो रही है। चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए हलफनामे से ये पता चलने लगा कि चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी पर कितने अपराधिक प्रकरण चल रहे हैं वरना पहले तो सब दबा-छिपा रहता था। अपराधियों के राजनीति में खुलकर आने का सिलसिला कब से प्रारंभ हुआ ये पक्के तौर पर कहना मुश्किल है परन्तु इसका बीजारोपण हुआ राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने हेतु, बाहुबलियों सहित अपराधिक कारोबारियों की मदद लेने से। अपने इलाके से किसी को जिताने वाले दादा किस्म के लोगों को धीरे-धीरे महसूस होने लगा कि जब इन कुर्ता और टोपीधारियों को वह जिता सकते हैं तो खुद क्यों न जीत जाएं और यही सोच सियासत में अपराधी तत्वों के प्रवेश और वर्चस्व का आधार बनी और छुटभैये गुंडों से बढ़ते-बढ़ते बात फूलन देवी के सांसद बनने तक आ पहुंची। चुनाव के समय नामांकन के साथ नेताजी द्वारा दिये जाने वाले शपथ पत्र में उनकी करतूतों का जिक्र तो होता है परन्तु जीतकर वे मंत्री तक बन जाते हैं क्योंकि मात्र प्रकरण चलने से उनको अयोग्य और अपराधी नहीं माना जाता। संदर्भित याचिका की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की ये टिप्पणी काबिले गौर है कि 20 साल तक अपराधिक प्रकरण लंबित रहने की स्थिति में दागी नेता चार-चार बार सांसद विधायक बन जाते हैं। उसके बाद उनके चुनाव लडऩे पर रोक से असली उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती। याचिकाकर्ता की ये मांग यद्यपि अव्यवहारिक हो सकती है कि एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा हो परन्तु उसकी कोई अवधि तो तय करनी ही पड़ेगी। इस हेतु विशेष न्यायालय गठित करने का सुझाव भी विचाारणीय है। हर बात में वीआईपी होने का लाभ लेने वाले सम्माननीय नेताओं के अपराधिक प्रकरणों का निपटारा भी वीआईपी ट्रीटमेंट के तौर पर होना चाहिए। यदि राजनीति को वाकई स्वच्छ और सम्माननीय बनाना है तो नेताओं के चेहरे ही नहीं दामन भी दाग रहित होना जरूरी है। अच्छे लोगों के राजनीति में आने की अपेक्षा तो हर कोई करता है किन्तु जब तक अपराधिक छवि वाले नेता मौजूद रहेंगे तब तक शरीफ और सज्जन किस्म के लोगों के लिए गुंजाईश कम ही है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment