Wednesday 1 November 2017

छात्रसंघ : जीतने वालों में मेधावी कितने

म.प्र. में कई बरस बाद हुए महाविद्यालयीन छात्रसंघ के चुनाव में मुख्य रूप से भाजपा समर्थित अभाविप तथा कांग्रेस की छात्र इकाई भाराछासं के बीच टक्कर हुई। दोनों अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं किन्तु मोटे तौर पर जो देखने मिला उसके मुताबिक सत्ता में रहने का लाभ उठाकर अभाविप ने अधिकांश महाविद्यालयों पर अपना झंडा फहरा दिया। हॉलांकि कई महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों में उसे पराजय भी झेलना पड़ी। छात्रों को लोकतांत्रिक पद्धति से अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार निश्चित रूप से एक स्वस्थ प्रक्रिया का हिस्सा है जिसके माध्यम से विद्यार्थी जीवन से ही उनमें संगठित होकर सामूहिक हित के निर्णय करने की प्रवृत्ति के साथ भावी नेतृत्व का भी विकास होता है। लेकिन छात्रसंघ चुनावों पर पडऩे वाली राजनीति की छाया ने इसका स्वरूप विकृत कर दिया है। प्रदेश भर से कई स्थानों पर अभाविप तथा भाराछासं के बीच हिंसक मुठभेड़ की खबरें आईं। मतदान केन्द्र पुलिस छावनी बन गये। ऐसा प्रतीत होने लगा मानो महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव न होकर दो गुटों में संपत्ति कब्जाने हेतु सशस्त्र संघर्ष हो रहा हो। जाहिर है इसका कारण दलगत राजनीति का खुला तथा निर्लज्ज हस्तक्षेप है। महाविद्यालयीन छात्रों के बीच अपनी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करना गलत नहीं कहा जा सकता परन्तु छात्रसंघ चुनावों पर किसी पार्टी की छाप लग जाने से वे अपना मूल उद्देश्य खो बैठते हैं। छात्रों की समस्याओं का हल कराने के लिये जिस सुलझे हुए नेतृत्व की जरूरत होती है उसकी बजाय तमाम ऐसे चेहरे बाहुबल एवं पैसे के जोर पर चुनकर आते हैं जिन्हें न तो शिक्षा की गुणवत्ता से कोई सरोकार होता है और न ही छात्रों की समस्याओं से। यही वजह है कि चुने हुए प्रतिनिधि छात्र हित की बजाय अपना हित साधने में लग जाते हैं। म.प्र. में छात्रसंघ चुनाव के परिणामों के बाद अब देखने वाली बात ये होगी कि जीते हुए प्रतिनिधियों में मेधावी छात्र कितने हैं क्योंकि इन्हीं के बीच से कई भावी सांसद-विधायक बनने वाले हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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