Wednesday 1 November 2017

भावांतर : नौकरशाही पर अत्यधिक निर्भरता घातक

किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मय मुनाफे के दिलवाने की प्रतिबद्धता के साथ शुरू भावांतर योजना जिस तरह भंवरजाल में फंसकर रह गई उससे किसानों को राहत तो मिली नहीं उलटे वे और सरकार दोनों मुसीबत में फंस गये। विदेश यात्रा से लौटते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कैबिनेट की बैठक के साथ ही जिलाधीशों से वीडियो मंत्रणा के माध्यम से भावांतर के अमल में आ रही व्यवहारिक कठिनाईयों को दूर करने के उपाय तलाशना शुरू कर दिया। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन का ये कहना कम महत्वपूर्ण नहीं है कि किसानों को वाजिब दाम न मिलने देने के लिये व्यापारियों ने गिरोहबंदी कर ली है। जाहिर है कि ऐसा तभी हो सकता है जब कृषि उपज मंडी सहित अन्य संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी भी उनके साथ मिल गये हों। दूसरी बात मुरैना के भाजपा सांसद अनूप मिश्रा द्वारा लिखे गये पत्र में कही गई कि भावांतर की योजना सचिवालय में बैठकर अधिकारियों ने तैयार कर ली जिसमें व्यवहारिक पक्षों को नजरंदाज कर दिया गया। प्रदेश के कई हिस्सों से मिल रही खबरों के अनुसार किसान बुरी तरह नाराज हैं। मुख्यमंत्री की सदिच्छा पर भले ही सवान न उठाया जा सके परन्तु ऐसा लगता है लगभग डेढ़ अशक की सत्ता के बाद भी भाजपा के नीति- निर्माता तदर्थवादी सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे। इसका परिणाम नौकरशाही के हावी होने के रूप में देखने मिल रहा है। शिवराज सिंह चौहान के अलावा मंत्री मंडल में कोई दूसरा मंत्री ऐसा नहीं है जो दृढ़ता के साथ अपनी बात रख सके। मुख्यमंत्री के चारों तरफ मंडराती चंद अधिकारियों की चौकड़ी ने समूचे तंत्र को अपने इशारों पर नाचने मजबूर कर रखा है। ऐसा लगता है कि शिवराज जी इन चालाक अधिकारियों की बातों में कुछ ज्यादा ही आने लगे हैं। इसकी वजह से उनका पार्टी संगठन तथा आम जनता के साथ संवाद पहले जैसा जीवंत नहीं रहा। चाहे प्याज या दलहन खरीदी हो या फिर भावांतर। ये सभी परिस्थितियों के बिगडऩे के बाद लिये गये निर्णय होने के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके। मुख्यमंत्री ये बात भूल जाते हैं कि जिन अफसरों को उन्होंने अपना विश्वासपात्र बना रखा है वे तो अपनी नौकरी कर रहे हैं। उन्हें चुनाव तो लडऩा नहीं है अत: वे बजाय सही सलाह देने के शिवराज जी को केवल समस्या का एक पक्ष ही बतलाते हुए तात्कालिक उपाय सुझाते हैं। इस कारण कोई निर्णय समस्या का समाधान करने की बजाय उसे और जटिल बनाकर रख देता है। शिवराज जी का ये कहना सही है कि किसानों को लाभ पहुंचाना उनका मकसद है किन्तु उन्हें ये याद रखना चाहिए कि वे नौकरशाही पर यदि इसी तरह आंख मूंदकर भरोसा करते रहे तो 2018 की जंग जीतना आसान नहीं रहेगा। पार्टी का किसान मोर्चा और रास्वसंघ का किसान संघ, किसानों के बीच कार्य करता है। ऐसा लगता है सरकार और इनके बीच संवाद टूट चुका है। इसकी वजह भी अधिकारी वर्ग ही है जो सरकार और संगठन के बीच सामंजस्य नहीं बनने देता तथा अपने किताबी ज्ञान के अनुसार नीतियां बनाकर सरकार और मुख्यमंत्री दोनों की फजीहत करवा देता है। भावांतर सतही तौर पर एक अच्छी योजना हो सकती थी किन्तु मुख्यमंत्री की अन्य योजनाओं की तरह वह भी मात्र कुछ कदम चलकर ही जिस तरह हांफने लगी उससे शिवराज सरकार की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फंूक-फंूककर पीता है किन्तु किसानों का जबर्दस्त असंतोष और गुस्सा झेल चुके मुख्यमंत्री ने बजाय गलती सुधारने के उसे फिर दोहराने की जो भूल की उसके लिये नौकरशाही पर उनकी जरूरत से ज्यादा निर्भरता ही जिम्मेदार है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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